कहीं भारी ना पड़ जाए,शिक्षा नवाचार.. संक्रमितों की संख्या 20 हजार पार.. शिक्षक और बच्चों पर मंडराया खतरा

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—-देश कोरोना की मार से लहुलुहान है। संक्रमण की रफ्तार थमने का नाम नही ले रही है।, हालात नियंत्रण से बाहर होने को हैं। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य में आज कोरोना ने अपने पैर बड़ी तेजी से पसार लिया है और आंकड़ा 19 हजार को छू रहा है। लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य शिक्षा विभाग को यह दिखाई नही दे रहा है। अपने नित नए प्रयोगों के साथ शिक्षक और बच्चो को संक्रमण मे मुंह में झोंकने से बाज नहीं आ रहा है। 
 
                  छत्तीसगढ़ राज्य शिक्षा विभाग ने कोरोना संक्रमण काल मे सर्वप्रथम महंगे निजी स्कूलों की तर्ज पर “पढ़ाई तुहार द्वार” योजना लागू की। लेकिन योजना बनाने वाले अफसरान शायद भूल गए कि निजी स्कूलों के बच्चो और सरकारी स्कूलों के बच्चों की आर्थिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर होता है। सरकारी स्कूलों का विस्तार प्रदेश के दूरस्थ अंचलों तक है। यहां मोबाइल कनेक्टिविटी का अभाव है। इसके अलावा जग जाहिर है कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नही होती है। उनके पास इतनी ताकत भी नहीं है कि अपने बच्चो को 4G मोबाइल खरीद कर दे सकें। और महंगा नेट पैक भरवा सके। जिस घर में एक से अधिक बच्चे पढ़ने वाले हो.. तो समझा जा सकता है कि उस अभिभावक की स्थिति क्या होगी।
 
               एक अभिभाव शिक्षक ने दर्द जाहिर करते हुए कहा कि कोरोना काल मे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है। ऐसे में सरकारी स्कूलों के बच्चो के अभिभावकों की आर्थिक स्थिति अच्छे से समझी जा सकती है। यही कारण है कि स्कूलों की ऑनलाइन शिक्षा को टक्कर देने वाली  योजना औंधे मुंह गिरती दिखाई दे रही है।
 
                               नवाचारों को बढ़ावा देने वाले  राज्य शिक्षा विभाग आलाधिकारी ने ऑनलाइन शिक्षण के फ्लाप प्रयास की कड़ी में “बुलेट शिक्षक”, “पढ़ाई तुहंर पारा” , लाऊड स्पीकर शिक्षण के नए नवाचार प्रारम्भ किये है।  आलाधिकारी ने खुद और विभाग के बचाव के लिए बाकायदा आदेश जारी किया है कि इस तरह के नवाचार में शामिल होना पुर्ण रूप से  शिक्षक की मर्जी पर निर्भर है। यानि जो शिक्षक इन नवाचारी गतिविधियों में शामिल होना चाहे वे हो.. ना होने वाले पर कोई दबाव नहीं है।
 
           मामले में एक शिक्षक ने पीड़ा जाहिर किया कि आलाधिकारी आदेश जारी कर खुद को बचा रहे हैं। लेकिन सच्चाई बिलकुल अलग है। प्रत्येक शिक्षक की ऑनलाइन मॉनिटरिंग हो रही है। बाकायदा सभी शिक्षकों को क्लास लेते हुए फ़ोटो..विभिन्न विभागीय व्हाट्सएप ग्रुप में डालना होता है। कोरोना संक्रमण की राष्ट्रीय गाइड लाइन के बावजूद विशेष विशेष निर्देश पर अधिक उम्र के शिक्षक , गर्भवती महिला शिक्षिका ,भी गॉव गांव गली मोहल्ले में क्लास लेने को मजबूर है।
 
            शिक्षक ने बताया कि कुछ शिक्षिका तो मजबूरी में अपने साथ अपने दुध मुंहे बच्चो को साथ ले जाने मजबूर हैं। यदि वह यदि ऐसा नहीं करती हैं तो नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा। जानते हुए भी कि कोरोना का तेजी से फैलाव हो रहा है। शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि यह नवाचार खतरनाक साबित हो सकता है। क्योंकि बच्चों के समूह के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाना कठिन है।  सेनेटाइजर और मास्क के लिए कोई वितीय प्रावधान नहीं है। ऐसे में भगवान भरोसे सभी शिक्षक और बच्चे नवाचारों की प्रयोगशाला बनने को मजबूर हैं।
 
                 शहर के ही एक नामचीन  स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक ने बताया कि विभाग के निचले स्तर के अधिकारी खतरे को अच्छी तरह से समझ रहे है। लेकिन उच्य अधिकारियों के आदेश के आगे जिन्दगी खतरे में डालने को मजबूर हैं। आदेश नहीं मानने पर नौकरी जाने का खतरा है।
 
               वरिष्ठ शिक्षक ने बताया कि शिक्षकों में एकता नहीं है। शिक्षक संघ कई गुटों में बटा है। सभी संघो के प्रमुख पदाधिकारियों को आम शिक्षको की चिंता से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारियों से संबंध ज्यादा महत्वपूर्ण है।यही कारण है कि सभी शिक्षक नेता मुखर विरोध दर्ज कराने से बचते नजर आ रहे हैं।
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