बिलासपुर— जिम में एक विशेष यंत्र होता है जिस पर लोग एक ही जगह खड़े होकर कई किलोमीटर पैदल यात्रा कर लेते हैं। नगर निगम बिलासपुर की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। विकास के ट्रैकमन पर सवार जिम प्रेमियों की तरह निगम भी रोज नया रिकार्ड बना रहा है। अब वह जमा जुबानी खर्च के दम पर स्मार्ट बनने का ख्वाब जनता को दिखा रही है। वहीं बिलासपुर की जनता सफाई व्यवस्था, साफ पानी,बिजली, सड़क यातायात व्यवस्था को लेकर त्रस्त है। निगम का दावा है कि शहर में सब कुछ ठीक ठाक है।
सीजी वाल से निगम के एक कर्मचारी ने बताया कि जहां का निगम प्रशासन सफाई,बिजली,पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं ना दे पाए वहां की जनता स्मार्ट सिटी की उम्मीद कैसे करेगी। आज चार महीने बाद निगम कर्मचारियों के घर में अधूरी खुशी आई है। काफी जद्दोजहद के बाद उन्हें दो महीने का वेतन मिला है। दो माह का वेतन अब भी बाकी है। कब मिलेगा कहना मुश्किल है। यह हाल है हमारे नगर निगम का। कर्मचारियों को देने के लिए खजाने में ढेला नहीं है। लेकिन स्मार्ट बनने के लिए दो करोड़ रूपए फूंक दिये हैं। जिस निगम को जनता और जानवरों में फर्क नहीं..उससे हम स्मार्ट सिटी की क्या उम्मीद करें। हां हमारे निगम कर्मचारी जरूर स्मार्ट हो गए हैं। कहानी कुछ शेख चिल्ली जैसी है। लेकिन सच्चाई भी यही है- कि निगम राज्य के रहमों करम पर जिंदा है। उसके पास फूटी कौड़ी नहीं है।
निगम के पास कोई आइडिया भी नहीं है। आइडिया देने वाले कर्मचारी जनता से पहले अपने हितों को ध्यान में रखते हैं। क्या कभी सुना है कि किसी बड़े कर्मचारी को वेतन का इंतजार करना पड़ा है। शायद नहीं…वेतन का इंतजार कामगारों को करना पड़ता है। जिसके कंधे पर शहर को लकदक बनाने का जिम्मा है। जब उसका ही पेट नहीं भरेगा तो शहर क्या खाक स्मार्ट बनेगा।
बिलासपुर नगर निगम की हालत काफी पतली है। अधिकारी दैनिक काम काज छोड़कर बैठक-बैठक खेल रहे हैं। आम जनता के दुख सुख से उनका कोई सरोकार नहीं है। चेतावनी मिलने के बाद भी हमारा निगम सालाना खर्च के लिए सरकार के सामने भीख मांगने की मुद्रा में खड़ा हो जाता है। डांट फटकार के बाद रकम मिल ही जाती है। आखिर सरकार भी क्या करे।
नाम नहीं उजाकर करने की शर्त पर नगर निगम के एक कर्मचारी ने बताया कि शहर की व्यवस्था रामभरोसे चल रही है। निगम का सलाना खर्च कुल सत्तर करोड़ रुपए है। उसे अपने स्रोत से मात्र 26 करोड सालाना मिलते हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि अकेले निगम कर्मचारियों का स्थापना खर्च 32 करोड़ रूपए सालाना है। हैरान करने वाली बात है कि 26 करोड़ रूपए कमाने वाला निगम अपने कर्मचारियों को 32 करोड़ वेतन कहां से देता है। ऐसा नहीं है कि निगम के पास आय के स्रोत नहीं हैं। लेकिन यह स्रोत होकर भी सरकार के नहीं बल्कि कर्मचारियों के मतलब के हैं।
शहर को स्मार्ट बनाने की कवायद खूब चल रही है। साल भर से सफाई का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। सफाई कहीं दिखाई नहीं दे रही है। दरअसल बिलासपुर से गंदगी कुछ इस तरह से चिपक गयी है कि वह हटने का नाम ही नहीं लेती।
भाजपा के ही एक पार्षद ने बताया कि निगम में कुल तीन सौ पचास सफाई कर्मचारी हैं। उन्हें पिछले कई सालों से हटाने का प्रयास किया जा रहा है। निगम को अब उनका वेतन भारी लगने लगा है। सफाई व्यवस्था पूरी तरह से ठेकेदारों को सौंपने की तैयारी की जा रही है। जाहिर सी बात है जो खुश रखेगा वही खुश रहेगा। सोच सकते हैं कि हमारा कंगाल निगम कितना स्मार्ट है।