किस्सा-ए-रंगा बिल्ला

Shri Mi
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personalबेहतरीन फोटोग्राफी के फन मे माहिर हमारे पत्रकार साथी सत्यप्रकाश पाण्डेय (सत्या भाई) की लेखनी भी उतनी ही सधी हुई है। हल्के-फुल्के और चुटीले अंदाज में किसी गंभीर बात को दिल में उतार देना – उनके कलम की खूबी है।
होलाष्टक शुरू हो गया है और कुछ होलियाना अंदाज में सत्या ने अपने दोस्तों की ” जीवन शैली” पर   अपनी कलम चलाई है और सोशल मीडिया पर साझा किया है। जिसे हम यहां जस का तस पेश कर रहे हैं –

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                                                       “झुठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते हैं,
                                                     तरक्की के बाज़ की उडान में आवाज़ नहीं होती ”     
ये किस्सा नहीं हकीकत है दो नकारा, निक्कमे मित्रों की । मित्र कम दुश्मन ज्यादा, दोनों के मन और विचारों का कोई तालमेल नहीं । बेसरम की सुखी डाल की तरह दोनों की दोस्ती हैं, ये दोनों कभी भी अलग होकर एक दूसरे के कपडे बाजार में उतारने लगते हैं । दरअसल नंगे दोनों हैं, दिल-दिमाग और ख्यालात से । रंगा कभी सरकारी मुलाजिम था, सरकारी डफली बजाते-बजाते उसे कवि बनने का शौक चर्राया । दो लाइनों की कविता का कवि रंगा देखते ही देखते लोगों के भाग्य का भविष्य वक्ता बन बैठा । कुछ दिन ज्योतिष की जुबान बोलता बाज़ार में घूमता दिखा । इस दौर में उसके साथ बिल्ला कम ही दिखाई देता था क्योंकि रंगा का गुरु कोई और था । धीरे धीरे रंगा सरकारी काम के बोझ को उठाने में खुद को अक्षम महसूस करने लगा,  इधर न कोई कविता सुनने वाला मिला ना किसी ने इस भविष्यवक्ता से अपने भाग्य की लकीरों की खबर ली । क्या करता, मन से हारा दिमाग से थका रंगा पत्रकारिता के पेशे में भी हाथ आजमाने के ख्वाब संजोने लगा । इस ख्वाब को उसका साथी बिल्ला दिखा रहा था जिसे आज तलक हिंदी की वर्णमाला का ज्ञान नहीं है ।
                            रंगा का जानी यार बिल्ला मुँह का काफी धनी है । इस धन के अलावा उस बेचारे के पास कुछ भी नहीं, जो है बाप का कमाया हुआ । एक समाचार चैनल के लिए कुछ साल कैमरा चलाकर बाज़ार में खुद को बतौर पत्रकार स्थापित करने की कोशिश में बिल्ला आज तक लगा है । बिल्ला दिमागी दिवालियेपन का शिकार है । बाते बनाकर नए शिकार फांसना, फिर उनका इस्तेमाल करना बिल्ला बखूबी जानता है । अफ़सोस बिल्ला ज्यादा दिन किसी को इस्तेमाल नहीं कर पाता क्योंकि उसकी मक्कारी और चालबाज़ी चंद दिनों में चेहरे पर झलकने लगती है । रंगा बिल्ला बाज़ार में अफवाहें फैलानें में उस्ताद हैं। इनकी उस्तादी और नटवरलाली के किस्से वो लोग सिलसिलेवार सुनाते हैं जिनको ये अपना शिकार बना चुके हैं।
                           जिन दिनों रंगा बाजार में स्थापित होने के लिए शक्लो सूरत बदलता कभी कवि तो कभी बाबा ज्योतिष बने घूम रहा था, उन दिनों बिल्ला के हाथ में एक कैमरा और एक चैनल की पहचान थी ।  रंगा अक्सर बिल्ला के साथ बाज़ार में खबरनवीस बना नज़र आने लगा । रंगा लिखना जानता है, ज्ञान के मामले में भी बिल्ला से आगे है । इन दिनों बिल्ला की पत्रकारिता मुँह जुबानी इतना नाम कमा चुकी थी कि कई बार प्रदेश के बड़े बड़े सरकारी फैसले बिना बिल्ला की सलाह के नहीं लिए जाते थे । ऐसा बिल्ला अक्सर लोगों से कहता फिरता है । बिल्ला अपनी हरकतों और बड़बोले होने की सजा भी पा चुका है, मगर मोटी चमड़ी वालों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता । इन दिनों रंगा-बिल्ला एकदम नल्ले हैं । काम आता नहीं, इसलिए माँगना भी नहीं चाहते । रंगा बिल्ला, एक थाली के चट्टे बट्टे । दोनों एक दूसरे के लिए खंजर रखते हैं मगर साथ होते ही दूसरों के कमीज की सफेदी झाँकने लगते हैं । अपनी ठीक से घो नहीं पाते पर दूसरों को धोने की सलाह देकर चाय, नाश्ते का जुगाड़ बना लेते हैं ।
                             पिछले कुछ समय से रंगा बिल्ला कैमरा थामे नदी नालों के इर्द गिर्द नज़र आते हैं । कभी पक्षी तो कभी प्राणी विशेषज्ञ । पल पल बयान बदलती जुबान की वैसे तो बाज़ार में कोई कीमत नहीं, ये रंगा बिल्ला भी जानते हैं । इसीलिए एक दूसरे की पीठ थपथपाकर खोखली हंसी चेहरे पर यदाकदा ले आते हैं । रंगा बिल्ला बाज़ार में बड़े फोटोग्राफर है । हाँ ये बात दिगर है कि कभी जरूरत पड़े तो उन तस्वीरों को बनवाया नहीं जा सकता फिर भी मुंह से फ़ोटो की दुनिया के इन जानकारों का मानना है की वो स्थापित हो चुके हैं । हकीकत कुछ और है । रंगा बिल्ला यानी ठलहाइ का दूसरा बड़ा नाम । कोई काम नहीं सिवाय चापलूसी और हवा हवाई बातों के । दोनों यहां वहां, इसको उसको चेटिंग फिटिंग के जरिये पहले फन्दे में फांसो फिर उसकी पीठ पर लद जाओ । वैसे इन नललों (निठल्लों) का बोझ कोई देर तक नहीं सह पाता । नकारा, निकम्मे रंगा बिल्ला दूसरों की ख़ुशी से व्यथित नज़र आते हैं । तनाव, पीड़ा की वजह से दिल की बिमारी भी हो गई मगर झूठ,फरेब जुबां से नहीं हटा । हर पल दांव देने और एक दूसरे को हराने की जुगत में रहने वाले रंगा बिल्ला फिलहाल तो साथ हैं, मगर कितने दिन दोनों नहीं जानते। दोनों की एक बड़ी खासियत जहां थूकते हैं मौक़ा देखते ही उसे चाटने का जिगरा भी रखते हैं । कइयों बार, कइयों के साथ थूके फिर चाट लिया । अब तो लोग कहने लगे हैं बड़े वाले चाटू हैं ।
                                                    दरअसल मुझे जो समझ आता है, रंगा बिल्ला का ना ईमान है, ना कोई जात । सिर्फ मौक़ा परस्ती । वैसे इनकी सूरत और सीरत जो पढ़ लेगा वो तमाम सावधानियाँ बरतेगा क्योंकि ना जाने किस मोड़ पे आपको तमाशा बना दोनों आगे बढ़ जाएँ ।
                 सावधान रहिये, अगले मोड़ पर कहीं रंगा-बिल्ला आपका इंतज़ार ना कर रहें हों । 
By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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