कॉर्पोरेट से टकराती प्रेमचंद की कलम 

Shri Mi
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IMG-20160801-WA0000बिलासपुर।प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा आज यहाँ प्रेमचंद जयंती का आयोजन किया गया। इस अवसर पर “इस कॉर्पोरेट समय में प्रेमचंद “विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान देते हुए रायगढ़ की डॉ उषा वैरागकर आठले ने कहा कि यदि प्रेमचंद की वीएसटी को हम आगे ले जाना चाहते है तो प्रेमचंद की तत्कालीन जान समर्थक एवं जनसंघर्षो को आंच देने वाली कलम को उतनी ही सजगता और प्रखरता के साथ आगे बढ़ाना होगा। यही इस कॉपोरेट समय में प्रेमचंद से सीखते हुए उन्हें सच्ची श्रधांजलि देना होगा।

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                       अपने आलेख का पठन करते हुए डॉ उषा ने अनेक मुद्दे उठाये। उन्होंने महान कथाकार प्रेमचंद की कहानियों पंच परमेश्वर ,बूढी काकी सहित गबन आदि के उद्धहरण देते हुए आज के कॉपोरेट समय की जटिलता को रेखांकित किया। साथ ही कहा कि आज गाँव ,किसान ,खेत ये सब साहित्य और अन्य माध्यमों से भी गायब होते जा रहे है। इसे भी समझने की जरुरत है। आलेख पर केंद्रित चर्चा प्रारम्भ करते हुए शीतेंद्र नाथ चौधुरी ने कहा कि प्रेमचंद के समय का यथार्थ आज और भी जटिल रूप में सामने आता है। नन्द कुमार कश्यप का मानना था कि प्रेमचंद के समय लोक संसकृति के केंद्र में श्रम है। आज परिवर्तन की राजनीति अस्तित्व की राजनीति में सिमट गयी है और साहित्य से लोक गायब हो गया है। मंगला देवरस ने कहा कि प्रेमचंद की कहानियां हमें सामाजिक चिंतन के लिए प्रेरित करती है। चर्चा में भाग लेते हुए लाखन सिंह ने कहा कि आज का कॉर्पोरेट चेहरा तो कही से भी मानवीय नहीं रह गया है। सार्वजानिक हितों के कार्यो में उनकी कोई रूचि नहीं रह गयी है। रंगकर्मी सुनील चिपड़े ने कहा कि इस कॉर्पोरेट समय की क्रूरता को समझने और लड़ने का साहस हमें प्रेमचंद से मिलता है।

                              वही रामकुमार तिवारी के अनुसार नयी तकनीक से श्रम को स्वाभाविक रूप से हानि पहुँचती है। आज चीज़ों को पूरी समग्रता के साथ देखने की जरूरत है। शाकिर अली ने कहा कि हमें अपनी बात को गावों और किसानों पर भी केंद्रित करना होगा। प्रताप ठाकुर ने प्रेमचंद के साहित्य की प्रासंगिकता बने रहने की स्थितियों का वर्णन किया। नमिता घोष ने कहा कि प्रेमचंद अपनी रचनाओं के जरिये समय के बहुत आगे देख रहे थे। और आज भी वे हमें रास्ता दिखाते है। युवा साथी प्रियंका शुक्ला ने कहा कि प्रेमचंद सबको रास्ता है। आज की जरुरत यह भी है कि साहित्य और संस्कृति से जुड़े सभी लोग साथ मिलकर इस समय की लड़ाई को लड़े। साथ ही सृजन के साथ ही सड़कों पे आने का माद्दा भी जरुरी है। रफीक खान ने कहा कि समकालीन कथा साहित्य में ग्रामीण चित्रण लगातार कम हो रहा है।

                              अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में नथमल शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद पर चर्चा राजनैतिक दृष्टिकोण के साथ की जानी चाहिए। प्रेमचंद को पूरी समग्रता में याद करना चाहिए। आज का संकट बहुत गहरा है। लेखन हमारी शक्ति है जो रचा जायेगा वही शेष रहेगा। कार्यकम का प्रारम्भ मोहम्मद रफीक (इप्टा )द्वारा जन गीत से हुआ। इवनिंग टाइम्स सभागार में आयोजित इस कार्यकम में चंद्र प्रकाश बाजपेयी ,हबीब खान ,नलिनी पांडेय ,डॉ उषा किरण बाजपेयी ,कपूर वासनिक ,अजय आठले ,अनीश श्रीनाम ,कालूलाल कुल्मी ,नीलोत्पल शुक्ला ,अजय अग्रवाल ,प्रियंका शुक्ल ,मधुकर गोरख ,नवल शर्मा ,प्रथमेश मिश्र ,सविता मिश्रा आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। कार्यक्रम का संचालन डॉ शोभित बाजपेयी ने एवम आभार प्रदर्शन डॉ सत्यभामा अवस्थी ने किया। अंत में २ मिनट का मौन रखकर महाश्वेता देवी को श्रधांजलि दी गयी।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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