कोरोना संकट – आर्थिक मंदी से उबरने ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनर्निमाण का समयः आनंद मिश्रा

Chief Editor
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जाने-माने समाजवादी विचारक और किसान हित के चिंतक आनंद मिश्रा इन दिनों मुंगेली जिले के अपने गांव लिम्हा में है । कोरोना  संकट के दौर में तालाबंदी का वक्त गांव में गुजार रहे आनंद मिश्रा से फोन पर लंबी बातचीत हुई । उन्होंने देश दुनिया के हालात पर विस्तार से बातचीत की।  कोरोना  के संक्रमण से बचाव के साथ ही उन्होंने आर्थिक मंदी से उबरने को लेकर बहुत सी बातें कहीं । उनका मानना है कि  संकट के इस काल में अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए भी कारगर उपायों की जरूरत है । ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संरचना का पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए । जो अतिरिक्त श्रम आ रहा है ,उसका उपयोग कम लागत से पूंजी पैदा करने में किया जाना चाहिए । कृषि के क्षेत्र में यह संभव है । मंदी के दौर से उबरने के लिए यही एकमात्र सही तरीका हो सकता है ।

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आनंद मिश्रा बताते हैं की छत्तीसगढ़ में रबी  की फसल खत्म हो चुकी है । इस बार पहले से ही बेमौसम बारिश ओलावृष्टि के कारण फसल को भारी नुकसान हुआ है ।  तिवरा की फसल खराब हो चुकी है । चना की पैदावार नहीं के बराबर है । गेहूं में पानी पड़ गया है । जिस दौरान फसल के नुकसान का आकलन हो रहा था …. रिपोर्ट तैयार हो रही थी ,उस दौरान ही कोरोना का संकट आ गया । जिससे किसानों के सामने विकट स्थिति है।  उन्हें नुकसान की भरपाई हो पाएगी या नहीं इसकी बड़ी चिंता है।  छत्तीसगढ़ में किसी तरह धान की फसल व्यवस्थित कर दी गई थी।  लेकिन किसानों को समर्थन मूल्य के अंतर की राशि कब मिल पाएगी । यह समझ नहीं आ रहा है । केंद्र सरकार ने बड़ी-बड़ी कंपनियों के लिए तो राहत पैकेज दिए हैं । लेकिन किसानों के हिस्से में अब तक कुछ नहीं आया है ।

आनंद मिश्रा इस बात पर भी चिंता जता रहे हैं  कि संकट के इस दौर में लोगों के बीच मानवीय संबंध खत्म हो रहे हैं ।  इस दौर में गांव का कोई आदमी साइकिल से काम करने जाता है तो लोग उसे गांव में घुसने नहीं देते । शिकायत बाजी होती है । पहले लोग बीमार होते थे तो संवेदना व्यक्त कर की जाती थी । लेकिन अब ऐसा लगता है कि जैसे बीमार आदमी दुश्मन हो गया है।  उन्होंने कहा कि कोरोना  दिसंबर -जनवरी में ही आउटब्रेक हो गया था  । लेकिन सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं थी ।  यहां लोग नागरिक का कानून बनाने में लगो थे ।  और सरकार अपना एजेंडा लागू कर रही थी ।  इसके बाद बिना किसी तैयारी के लॉक डाउन कर दिया गया । जिसमें समाज का गरीब, कमजोर और मध्यमवर्गीय तबक़ा  संकट में आ गया ।  मध्यमवर्गीय परिवारों की स्थिति दयनीय  है । वह कहां खड़ा है यह भी समझ नहीं आ रहा है । पूरी व्यवस्था में अफसरशाही का दिमाग चल रहा है और कभी भी कहीं भी कंप्लीट लॉक करने से लोगों की परेशानी बढ़ रही है ।

उन्होंने कहा कि यह भारतीय समाज की विडंबना है की दुनिया में कहां क्या घटित हो रहा है इसकी खबर नहीं लग पाती और हम उसकी चिंता भी नहीं करते । इतिहास गवाह है कि आपस की लड़ाई में व्यस्त रहने के कारण पहले दूसरे देश के लोगों ने भारत पर कब्जा किया और इस समय कोरोना  वायरस को लेकर भी हम गंभीर नहीं हो सके । दुनिया में कोरोना फैल रहा था और यहां रैलियां चल रही थी । हिंदू – मुस्लिम चल रहा था। संकट का दौर शुरू होने के बाद भी व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों ने विज्ञान सम्मत कोई बात आम जनता के बीच नहीं रखी । जिसे जो मर्जी आया वह करता गया।  जिससे लोगों की परेशानियां बढ़ी है।  यह भारतीय समाज की विशेषता है कि लोग एक दूसरे को मदद कर रहे हैं । बड़ी संख्या में जरूरतमंदों को भोजन कराने में जुटे हैं।

 आनंद मिश्रा मानते हैं कि पहले लोगों के दिमाग से भय दूर किया जाना चाहिए ।  साथ ही आम लोगों की जिंदगी की भी चिंता होनी चाहिए । मौजूदा हालात में भूख़ की वजह से भी अपनी जान दे सकते हैं । उनका यह भी मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को एक दूसरे से अधिक मदद मिल रही है । लेकिन शहरी इलाकों में कमजोर मध्यमवर्गीय लोगों के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है । कोरोना संकट के साथ ही अर्थव्यवस्था के हालात पर चिंता जाहिर करते हुए आनंद मिश्रा ने कहा कि केंद्रीकृत अर्थव्यवस्था के कारण हालात अधिक ख़राब हुए हैं । सोचा जाना चाहिए कि मजदूर अर्थव्यवस्था की रीढ़ है । आज गांव में हिंदुस्तान बचा है । आज गांव नहीं होते तो मुंबई -नोएडा के लोग आखिर कहां जाते ….?  पिछले 25 साल से गांव के मजदूरों को निकालकर शहरों में ले जाया गया ।  क्योंकि उन्हें सस्ते मजदूर चाहिए । जिनके सहारे रियल वर्ल्ड खड़ा किया गया । लेकिन आज आभासी विकास साबित हो रहा है । रियल वर्ल्ड से पेट नहीं भरा जा सकता । पेट तो चावल से भर रहा है । पहले भी गांव की अर्थव्यवस्था ने देश को बचाया था । महात्मा गांधी कहते थे देश भले ही गुलाम है पर गांव गुलाम नहीं थे । लेकिन पिछले 25 सालों में व्यवस्था ऐसी हुई थी गांव के ढांचे को नष्ट करने का काम किया गया । उनका कहना है कि अर्थव्यवस्था तो कोरोना संकट से भी पहले भी मंदी की ओर जा रही थी । आज हालात और खराब हो रहे हैं।  लेकिन सरकार बड़ी कंपनियों के कर्ज माफ कर रही है और उन्हें पैकेज दे रही है।  जबकि आम लोगों के हाथ में पैसा आना चाहिए ।  बैंकों की हालत भी खराब है । जीएसटी लगाकर सारा पैसा केंद्र सरकार ले जा रही है । स्वायत्तता खत्म की जा रही है  । लेकिन अस्पताल जैसी सुविधाएं बढ़ाने की ओर कोई ध्यान नहीं है ।

आज के वक्त में यह सोचना चाहिए कि एक वायरस ने आपकी सारी सभ्यता को ही सवालों के दायरे में ला खड़ा किया है । दुनिया हथियारों की दौड़ और मिसाइल बनाने में लगी रही । आज क्या परमाणु बम की ताकत से वायरस को खत्म किया जा सकता है….?  प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर आनंद मिश्रा कहते हैं कि राज्यों को तय करना चाहिए कि उनके मजदूर किन किन राज्यों में है । देश के स्तर पर इसका व्यापक सर्वे होना चाहिए फिर स्पेशल ट्रेन चलाकर उन्हें अपने घर पर छोड़ना भी चाहिए । और घर तक छोड़ने से पहले अस्पतालों की सुविधा देकर सभी का परीक्षण और इलाज किया जाना चाहिए । इतनी बड़ी संख्या में मजदूर आएंगे तो उनके स्वास्थ्य परीक्षण और चिकित्सा आदि की व्यवस्था के लिए डोम बनाए जा सकते हैं । जब प्रधानमंत्री की रैली के लिए कुछ दिन के भीतर बड़े बड़े डोम तैयार हो सकते हैं तो मजदूरों के लिए भी इसकी व्यवस्था हो सकती है।

 आनंद मिश्रा कहते हैं कि बाहर से आ रहे मजदूर हमारे अपने हैं । उन्हें ऐसी जगह काम दिया जाना चाहिए, जिससे रोजगार भी पैदा हो और पूँजी भी तैयार हो । मिसाल के तौर पर खेतों में मेड़बंदी और तालाब खुदाई का काम कराया जा सकता है । उनका मानना है कि जो अतिरिक्त श्रम राज्य में आ रहा है ,उसे इस तरह नियोजित किया जाए की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संरचना का पुनर्निर्माण हो सके।  हमें बंद इकॉनामी के चक्कर में पड़ने की बजाय खुली इकॉलामी का रास्ता अख्तियार करना चाहिए ।  लोगों को काम भी मिले और उनके हाथ में पैसा भी आए । यही मंदी से उबारने का एकमात्र तरीका है । साथ ही यह पैसा उत्पादक कार्यों में लगे ।  उन्हें ऐसा काम दिया जाए ,जिससे पूंजी उत्पन्न हो । कम लागत के साथ नई पूंजी पैदा हो ।  तब नव निर्माण में सहायता मिल सकती है।  कृषि क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है, जिसमें अल्प समय में असीमित रोजगार पैदा किया जा सकता है।  सभी राज्य सरकारों को चाहिए कि गांव की तरफ देखें और गांव को मजबूत करें । जो मजदूर आ रहे हैं, उनका अपना गांव- घर है । वह उस परिवेश से पहले भी जुड़े रहे हैं।  उनके लिए किसी कॉलोनी के निर्माण की जरूरत नहीं होगी । सरकार को चाहिए कि वह पंचायत ,सोसाइटी जैसी अपनी संस्थाओं को मजबूत करें और लोगों को राशन के साथ ही अन्य सुविधाएं मुहैया कराने में इन संस्थाओं का इस्तेमाल किया जाए।  आनंद मिश्रा मानते हैं कि यह समय चुनौतियों भरा है । लेकिन हम यदि अपने श्रम और संसाधनों का बेहतर ढंग से इस्तेमाल करें तो इस हालात का मुकाबला भी कर सकते हैं और आगे का रास्ता भी तय कर सकते हैं।

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