रूद्र अवस्थी।अपने कॉलेज के दिनों में 1981 के आस-पास एक हिंदी फिल्म काफी मशहूर हुई थी। जिसका नाम था ‘ एक दूजे के लिए ‘…..। अपने तरह की एक अलग प्रेम कहानी और गानों की वजह से उस जमाने की युवा पीढ़ी इस फिल्म की दीवानी थी। पूरी फिल्म सपना और वासू की प्रेम कहानी पर केन्द्रित थी । लेकिन कहानी में ऐसा मोड़ भी आता है कि फिल्म के हीरो कमल हासन ( वासू ) की जिंदगी में एक संध्या नाम की लड़की आती है। जिसके पति की मौत हो चुकी है और इसी वजह से वह अपने माथे पर बिंदी नहीं लगाती है। लेकिन जब कमल हासन उसकी जिंदगी में आता है तो वह उसके साथ सपने बुनने लगती है। इसी बीच फिल्म में एक सीन आता है कि कमल हासन के साथ नई जिंदगी शुरू करने की उम्मीद में संध्या आइने के सामने जाक़र , आइने में एक बिंदी लगाती है और अपने माथे को इस पोजीशन पर ले जाती है कि बिंदी उसके माथे पर लगी हुई दिखाई दे। जबकि सच में बिंदी आइने पर लगी होती है, उसके माथे पर नहीं….।यह सीन अभी – अभी याद आ गया ..। जब खबर आई कि बिलासपुर नगर निगम महापौर का पद इस बार सामान्य है और इस चुनाव में कोई भी अपनी किस्मत आज़मा सकता है। खबर आने के बाद से कई लोग अपनी किस्मत आज़माने के सपने बुनने लगे हैं एक दूजे के लिए फिल्म की उस अदाकारा की माफ़िक आइने में महापौर पद की बिंदी लगाकर अपने माथे को उसके साथ सेट करने की कोशिश में लग गए हैं।
फिल्म की कहानी तो कुछ इस तरह थी कि आइने की बिंदी को अपने माथे की बिंदी समझने वाली संध्या को वासू आखिर नहीं मिल पाता….। अब रीयल लाइफ की इस कहानी में आइने के सामने खड़े होकर महापौर बनने का सपना देख रहे लोगों में से किसके साथ सिनेमा की कहानी दोहराई जाएगी , यह देखना अब दिलचस्प होगा।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
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यकीनन 2004 के बाद पहली बार बिलासपुर नगर निगम महापौर की सीट सामान्य हुई है। बीच के दस साल आरक्षण के दौर से गुजरे । लिहाज़ा पन्द्रह साल के बाद हर किसी को महापौर पद के लिए दावेदारी का मौका मिल गया है। यही तो हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है। जिसमें मौक़ा मिलने पर हर किसी को अपना दावा पेश करने का हक़ मिल जाता है। यह बात अलग है कि आने वाले दिनों में पार्टी मौका देगी या नहीं…… या शहर की पब्लिक मौक़ा देगी या नहीं। लेकिन तब तक के लिए आइने के सामने खड़े होने से कोई किसी को रोक तो नहीं सकता….।
तभी तो शहर के हर एक वार्ड में महापौर का कम से कम एक दावेदार जरूर दिखाई दे रहा है। इस पद के लिए दावेदार तो पहले भी ख़ूब रहे हैं। लेकिन इस बार की बात कुछ और ही है। दरअसल नगर निगम का दायरा बढ़ने और आसपास इलाकों के जुड़ने की वज़ह से दावेदारों की तादात भी बढ़ गई है। पहले सिर्फ़ शहर के भीतर से ही दावेदार होते थे।
अब आसपास के गाँवों से भी कोई महापौर के लिए खड़े हो सकता है। नगर निगम महापौर के पिछले दो चुनाव ऐसे गुज़रे कि कभी महिला तो कभी पिछड़ा वर्ग के लिए रिज़र्व होने की वज़ह से कई लोग खुद को आइने के सामने खड़े होने के लायक नहीं समझ पाते थे । अब सभी के लिए मौका है। लिहाज़ा जोर आजमाइश शुरू हो गई है। बाज़ी किसके हाथ लगेगी यह आने वाला वक्त बताएगा।
लेकिन बिलासपुर नगर निगम के चुनाव में कुछ चीजें एक दम नई होने वाली हैं। मसलन शहर का दायरा बढ़ने के बाद पहली बार चुनाव होने जा रहे हैं। जिसमें हम छत्तीसगढ़ के दूसरे सबसे बड़े शहर का ऐसा महापौर चुनने जा रहे हैं, जिसकी पहचान एक नहीं…. पाँच – पाँच विधायकों के बीच से होगी । चूँकि बिलासपुर नगर निगम में अब बिलासपुर सहित बेलतरा, मस्तूरी, बिल्हा और तखतपुर विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा भी शामिल हो गया है। दूसरी अहम् बात यह भी है कि बिलासपुर को स्मार्ट सिटी ( ? ) का दर्जा हासिल होने के बाद पहली बार चुनाव होने जा रहे हैं। जिसमें लोग शायद इस बात का ख्याल करके भी वोट डालेंगे कि सही में हम कितने स्मार्ट हुए हैं या स्मार्ट होने की तरफ आगे बढ़े हैं। इस नज़रिए से देखें तो यह मौक़ा है कि सियासत करने वालों को हम अपने फैसले से यह बता सकते हैं कि सही में हम कितने स्मार्ट हैं। इसके लिए महापौर पद का फैसला करते समय यह जरूर देखा जाना चाहिए कि जिसे हम वोट दे रहे हैं , वह खुद भी कितना स्मार्ट है….? वह सही में बिलासपुर के लिए किस तरह की सोच रखता है…? उसके पास बिलासपुर की तरक्की के लिए कोई ब्लू प्रिंट – कोई रोडमैप है या नहीं…? शहर की तरक्की को सही रास्ते पर ले जाने के लिए दिमाग में कोई ख़ाका है या नहीं……?
पार्टी की टिकट के हिसाब से फ़ैसले पर अपनी मुहर लगाते हुए कुर्सी पर लोग बिठाए जाते रहे। लेकिन क्या शहर की तरक्की का रास्ता उस ओर जाता हुआ नज़र आ रहा है, जिसकी आस सभी को है….। अगर अब तक के फैसले इस कसौटी पर सही उतरे हैं, तब तो इस बार भी यही फार्मूला अपनाया जाना चाहिए ……।
लेकिन अगर लगता है कि अब तक ऐसा नहीं हुआ है तब तो यह सोचने का वक्त जरूर है कि क्या इस बार स्मार्ट सिटी के स्मार्ट वोटर के अंदाज में फैसला नहीं होना चाहिए…..? सोचने का यही सही वक्त है। चूंकि आने वाले कुछ ही दिनों में उम्मीदवार का फैसला होगा । सियासी पार्टियां महापौर पद के लिए उम्मीदवार की तलाश में जुट गईं हैं और किसी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। उनकी तरफ से किसी नाम पर मुहर लगे इसके पहले तक यह मैसेज़ भी जिम्मेदार लोगों तक पहुंचना चाहिए कि इस शहर को किस तरह का उम्मीदवार पसंद है।
यह मैसेज़ जाना चाहिए कि स्मार्ट सिटी को स्मार्ट महापौर पसंद है। स्मार्ट सिटी के एलान के बाद शहर कितना स्मार्ट बन पाया है ….. या इस दिशा में कितने कदम आगे बढ़ा पाया है…. इसे तो पूरा शहर देख रहा है।लेकिन यह वक्त है कि शहर का वोटर इस बात का अहसास करा सकता है कि शहर के स्मार्ट होने पर कोई मुहर लगाए….. कोई शंका जताए …… लेकिन शहर के लोगों की स्मार्ट सोच पर कोई सवाल नहीं खड़े कर सकता है।
दरअसल यह ऐसा मौक़ा है जब हम सब एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में फैसला कर अपने शहर के आने वाले कल की तसवीर बनाने के लिए जिम्मेदारी के साथ फैसला करते हैं। जिसमें सियासत भी खूब होती है और सिर्फ सियासत ही तो होती है। ऊपर बैठे नेताओँ की पसंद और उनकी नज़दीकी के हिसाब से फैसला होता है। जबकि होना यह चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को मौक़ा मिले , जो शहर की पसंद हो और जिसकी इस शहर के साथ नज़दीक़ी हो। बड़े चुनावों में तो हवा के हिसाब से फैसले होते हैं और तब उम्मीदवार के चेहरे की बज़ाय पार्टी के निशान के हिसाब से नतीज़े आते हैं।
लेकिन इस बार नगर निगम के लोकल चुनाव में यह स्मार्ट शहर चाहे तो यह प्रयोग कर सकता है कि ऐसे शख़्स को शहर के प्रथम नागरिक की जिम्मेदारी सौंपे , जो बिलासपुरिया सोच रखता हो। स्मार्ट महापौर की बिंदी उसके ही माथे पर लगे जिसका नाता बिलासपुर के साथ सचमुच ‘ एक दूजे के लिए ‘ की तरह हो……..। नेतृत्व तो लोगों के बीच से ही उभरकर सामने आता है और अभी भी वक़्त है….. तलाश पूरी हो सकती है..