खुला संवाद में  “सार्थक शिक्षा” पर “सार्थक” बहस……

Chief Editor
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    बिलासपुर । पिछले सोमवार की शाम उस समय सार्थक नजर आई जब  आज  के दौर  में सार्थक शिक्षा कैसी हो – इस मुद्दे पर एक सार्थक बहस हुई । इस मुद्दे पर “खुला संवाद” का आयोजन आधारशिला विद्या मंदिर की ओर से स्कूल परिसर में ही किया गया था। जिसमें   विषय विषेषज्ञ, प्राचार्य, व्याख्याता, शिक्षकगण़, और अभिभावको की मौजूदगी में शिक्षा को लेकर काफी सार्थक बातें खुलकर सामने आईं। इस विचार मंथन में खास तौर पर यह बात सामने आई कि बच्चों को उनकी प्रतिभा के अनुरूप ऐसे माहौल में शिक्षा दी जाए , जिससे वे सहजता के साथ अपनी प्रतिभा का विकास कर सकें।          

 आधार शिला विद्या मंदिर विद्यालय में सोमवार को एक विशेष मंच का आयोजन किया गया ।जिसमें आज की शिक्षा को केन्द्र बिन्दु मानते हुए बातचीत का सिलसिला बहुत ही जीवंत माहौल में  चला। कार्यक्रम के दौरान डा. शिवाजी कुशवाहा सहा. प्राध्यापक शासकीय शिक्षा महाविद्यालय एजुकेशनल सायकोलाजी एवं भाषा विज्ञान के प्रशिक्षक, श्री विवके जोगलकर सी. ई. ओ. सिद्धिविनायक ऐकेडमी, पर्सनालटी डेवलेपमेंट स्पीकर, डा. संजय आयदे व्याख्याता शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, श्री योगेश पाण्डे व्याख्याता, ट्रेनर, रंगकर्मी, श्री रूद्र अवस्थी ‘वरिष्ठ पत्रकार समालोचक’, श्रीमती मौसमी दत्ता प्रायार्चा महर्षि विद्या मंदिर, श्रीमती मीनल चौहान प्राचार्या लिटिल किड्स विद्यालय, श्रीमती सुशीला राना प्रचार्या एप्पल सीड, आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।

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डा. संजय आयदे ने  इस विषय  पर कहा कि शिक्षा ऐसी हो जो विद्यार्थी को हर क्षेत्र में ज्ञान प्रदान करे आंतरिक ज्ञान के साथ ही साथ बाहरी ज्ञान भी बच्चों के लिए आवश्यक है। शिक्षक के लिए सिर्फ अपने पाठ्यक्रम को पूरा करना ही महत्वपूर्ण नहीं है, अपितु यह आवश्यक है कि विद्यार्थी उस क्षेत्र में क्रियात्मक रूप से पूरी तरह से कैसे सीख पाता है ।विद्यार्थी देख के अनुभव करके जल्दी सीखता है। इसलिए उनके कौशल विकास को ध्यान में रखते हुए जिस विषय को पढ़ाया जाना है, उस विषय का जीवंत रूप दर्शाना चाहिए ताकि विद्यार्थी के दिमाग में लंबे समय तक चित्र छप जाए। जिसके उदाहरण स्वरूप हम अपने आस-पास कार्य करने वाले व्यक्तियो जैसे कृषक, मजदूर, मिस्त्री, बढ़ई आदि से रूबरू कराना चाहिए ताकि वे उनके अनुभवों से वे सीख सकें। डा. आयदे ने बताया कि सभी बच्चे अलग होते है सबके सोचने समझने की क्षमता अलग होती है। इसलिए दूसरो बच्चों के साथ इनकी तुलना नहीं की जानी चाहिए।

योगेष पाण्डे ने बताया कि बच्चो को स्वयं करके सीखना चाहिए इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षक उन्हे मौका दे। प्रश्नों  के उत्तर उन्हें स्वयं ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए। विद्यार्थी से उतना ही प्रश्न पूछा जाना चाहिए, जितने का वह हल बता सके आज हम उनके सामने प्रश्नों का ढ़ेर रख देते है। परंतु वो इसका उत्तर पूर्ण तरीके से नहीं ढूंढ पाते है। पत्रकार- समालोचक  रूद्र अवस्थी ने  कहा कि पूरी शिक्षा व्यवस्था मॉडल और उदाहरणों पर आधारित है। ऐसे में पालक और शिक्षकों को भी बच्चों के सामने एक मॉडल के रूप में पेश होना चाहिए। आज ओपन मार्केट , इंटरनेट  और प्रतिस्पर्धा के दौर में लोग अन्य उत्पादों की तरह स्कूल में भी ब्राँड की तलाश कर रहे हैं। जिससे उनका बच्चा बाजार में अन्य बच्चों के मुकाबले खड़े हो सके । जिससे विसंगतिया  पैदा हो रही हैं।  डा. शिवाजी कुशवाहा  ने बहुत ही प्रभावी अंदाज में अपनी बात रखते हुए  कहा कि शिक्षक को अपने हर विद्यार्थी का नाम ज्ञात होना चाहिए। क्योंकि ये उनके लिए एक महत्वपूर्ण चर्चा है। विद्यार्थीयों के लिए यह अनुभव आनंद प्रदान करता है ।

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श्रीमती सोमबाला  ने बताया कि माँ बच्चों की पहली शिक्षिका होती है बच्चा सबसे पहले घर से ही संस्कार सीखता है इसलिए माता-पिता बच्चों विशेष  ध्यान रखे। घर में उनकी गतिविधि को परखे और उजागर करने में उनकी मदद करें। विशेषज्ञों  ने बताया कि विद्यालय छोटा या बड़ा नही होता अपितु वहां के शिक्षक एवं विद्यार्थीयों के बीच शिक्षा को लेकर कैसा संबंध है यह महत्वपूर्ण है। 

इस दौरान अभिभावक ने भी विशेषज्ञों से प्रश्न पूछे  तथा अपने अनुभव उनके साथ साझा किये। साथ ही  यह भी  कहा  कि हम वर्तमान में सिर्फ शहरी वातावरण को देखते है ।जबकि ग्रामीण स्थानों में इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।आधार शिला विद्या मंदिर (एवीएम) का आयोजन शहर में अपने तरह का फहला और अनूठआ आयोजन रहा। जिसमें पाललक, शिक्षक और विषय विशेषज्ञों ने एक ही मंच पर अपनी सोच-समझ को साझा किया और विचार मंथन में कई तथ्य उभरकर सामने आए। कार्यक्रम का संचालन जाने-माने रंगकर्मी सुनील चिपड़े ने किया और आखिर में एबीएम के अजय क्षीवास्तव ने आभार माना।

 

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