कानन में मिली कैमलियान को पनाह….

BHASKAR MISHRA
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IMG-20150823-WA0002 बिलासपुर— कोरबा में बालकों के  लेमरू क्षेत्र में पाई जाने वाली गिरगिट की विशेष प्रजाति कैमलियान को डा. चन्दन ने रेस्क्यू कर लाया गया था। अब वह स्वस्थ है। उसे स्नैकपार्क में पर्यटकों का मनोरंजन कर रहा है।  कैमलियान कानन पेण्डारी के लिए नई प्रजाति है। यह जंगलों में पाया जाता है,।  इसमें वातावरण के अनुकूल रंग बदलने की ङमता होती है।
इसके पैर तोते की तरह होते है । जो  पेड़ों की डगाल में अच्छी पकड़ बना सके। इसकी आंख अलग अलग नियंत्रित होने वाली स्टीरियोटाईप होते हैं,। यह दोनों आंख को एक ही समय पर अलग अलग दिशाओं मे घुमा कर देखने में ये सक्षम होता हैं। आंख की उपरी एवं निचली पलक मिलकर एक छिद्र शेष रह जाती है जिससे ये देख भी सकते हैं। ये 5 10 मीटर की देरी फर भी सूक्ष्म कीड़ों को भी आसानी से देख लेता है।
इनके जीभ की अग्रभाग बल्बस बाल के रुप में मांसपेशी होने से अपने शिकार को दूर से ही अपने शरीर से डेड़ अथवा दोगुने लम्बाई में सक्सन कप की तरह बाहर निकालकर पकड़ते हुए मुंह के अन्दर ले जाऩे की क्षमता होता है। इनकी कान नहीं होते परन्तु सर्प की तरह 200 से 600Hz ध्वनी तरंगों को भी सुनने की क्षमता होती है।
इसका घुमावदार पकड़ बनाने की क्षमता वाले पूंछ  की मदद से पैर के पंजों के साथ पूंछ से भी डगाल को पकड़ बना लेता हैं।
यह कानन के लिए नया और विलक्षण क्षमता वाले गिरगिट प्रजाति के वन्यप्राणी है। इसका भोजन कीट पतंगे होते हैं। कभी कभी घास के कोमल पत्ते भी खा लेता हैं। इसे भारतीय कैमलियान के नाम से जाना जाता है । इसका वैज्ञानिक नाम कैमिलीयो जिलेनिकस है। विश्व में इसकी 160 प्रजातियां हैं जिनमें से अधिकांशत: मेडागास्कर एवं आफ्रीका में पाई जाती है। वर्ष 2015 की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर इनकी 202 प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती है।

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