छत्तीसगढ़ में धान की नई कस्टम मिलिंग नीति जारी होने के बाद हड़कम्प….. चांवल उद्योग बंद होने की कगार पर, मुख्यमंत्री से मांगा समय , मुख्य सचिव से आज चर्चा में समाधान की उम्मीद

Chief Editor
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बिल्हा । छत्तीसगढ़ शासन की ओर से धान की नई कस्टम मिलिंग नीति जारी होने के बाद से प्रदेश के राइस मिलर्स में हड़कम्प का माहौल है। पहले से ही घाटे के सौदे के साथ काम कर रहे राइस मिलर की नई नीति ने कमर तोड़कर रख दी है। जिस तरह मिलिंग दर में सीधे- सीधे कटौती की गई है, उससे मिलर अब आगे  काम करने की स्थिति में भी नहीं हैं और नया पंजीयन नहीं कराने का फैसला किया है। प्रदेश के कई जिलों में मिलर्स ने कलेक्टर को लिखित देकर कस्टम मिलिंग के पंजीयन के लिए अपनी असमर्थता जताई है। छत्तीसगढ़ राइस मिलर्स एसोसिएशन ने इस बारे में अपनी बात रख़ने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से समय मांगा है। साथ ही प्रदेश के सभी विधायकों को पत्र लिखकर सहयोग और समर्थन मांगा है। इस बारे में बात करने के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव ने एसोसिएशन को 15 नवंबर को शाम पांच बजे का समय दिया है। राइस मिलर्स को उम्मीद है कि इस मुलाक़ात में मुद्दे का कोई सार्थक हल निकल आएगा।

छत्तीसगढ़ में धान की फ़सल करीब तैयार हो चुकी है। किसान अपनी फ़सल खेत से ख़लिहान लाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके साथ ही धान ख़रीदी को लेकर भी तैयारियां होने लगी हैं। किसानों को ज़ायज़ दाम देने के लिए सरकार कवायद कर रही है। लेकिन प्रदेश में धान की अर्थव्यवस्था की बैलगाड़ी का दूसरा पहिया चांवल उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। यह उद्योग चरमरा रहा है और बंद होने की कगार पर है। प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद राइस मिलर्स को उम्मीद थी कि सरकार उन्हे राहत देगी और नई कस्टम नीति में उन्हे रियायत मिलेगी । जिससे वे बेहतर ढ़ंग से अपना काम कर सकेंगे। लेकिन नई नीति ज़ारी होने के बाद न केवल उन्हे बड़ी निराशा हुई है, बल्कि उनका रोष बढ़ गया है। अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि कस्टम मिंलिंग दर बढ़ाने की बजाय कम कर दी गई है। प्रदेश में जब से कस्टम मिंलिंग की जा रही है, तब से ही सरकार की ओर से प्रति क्विंटल तीस से चालीस रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाती रही है। यह एक तरह से मिलर्स की मज़दूरी है। समय के साथ ख़र्चे बढ़े हैं। इस लिहाज़ से मज़दूरी में भी बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन इसमे कमी कर दी गई है। इसी तरह मिलर्स के पुराने लंबित भुगतान आदि के बारे में भी कोई निर्णय नहीं किया गया है। इस बारे में राइस मिलर्स की ओर से सरकार के सांमने अपना पक्ष रखा गया था और प्रक्रिया के सरलीकरण सहित कई सुझाव भी दिए गए थे । लेकिन इन सुझावों – मांगों पर भी गौर नहीं किया गया है। ज़िससे चांवल उद्योग के सामने गहरा संकट खड़ा हो गया है।

सरकार की नई कस्टम नीति सामने आने के बाद राइस मिलर्स ने एक तरह से अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि सरकार का रुख़ व्यावहारिक और न्यायोचित नहीं है। सरकार के रवैये से लगता है कि वह ख़ुद राइस मिलों पर तालाबंदी करना चाह रही है। इसीलिए राहत दोने की बज़ाय राइस मिलर्स के साथ दमनपूर्ण रवैया अपनाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में मिलर्स मजबूर हैं और कस्टम मिंलिंग से ख़ुद को  अलग करने के  अलावा उनके सामने और कोई रास्ता नहीं है। लिहाज़ा राइस मिलर्स अपने ज़िलों में कलेक्टर को लिखित सूचना दे रहे हैं कि वे अपना पंजीयन  नहीं कराएंगे। जबकि शासन ने पंजीयन के लिए 20 नवंबर तक का समय दिया है।  छत्तीसगढ़ राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश रुंगटा का कहना है कि  आज हमारा राइस मिल उद्योग बहुत ही कठिन समय से गुजर रहा है। शासन द्वारा जारी वर्ष 2019-20 की कस्टम नीति राइस मिल विरोधी नीति है ।  हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं ।यह समय एकजुट होकर समस्याओं का हल निकालने का है। मैंने पूरी निष्ठा से संगठन के अन्य पदाधिकारियों , सेंटर-अध्यक्षों और मिलर साथियों के सहयोग से  स्थितियों को राइस मिल उद्योग के हित में करने हेतु हर संभव भरसक प्रयास किया है ।  हमने शासन से तालमेल बैठा कर कार्य करने की कोशिश की  । इसमें शासन और मिलर दोनों का ही का हित था।शासन द्वारा भी समय- समय हमे आश्वासन दिया जाता रहा कि नीतियां और परिस्थितियों राइस मिलर के हित की होंगी ।किन्तु आज शासन के हाथों हमे निराशा ही हुई है। 2019-20 की राइस मिलर विरोधी नीति के विरूद्ध हमे एक जुट होकर लड़ना है और पूर्व में आम सभा मे पारित निर्णय अनुसार कस्टम मिलिंग पंजीयन नही कराना है।सभी सेंटर अध्यक्ष अपने अपने जिले के कलेक्टर को इस राइस मिलर विरोधी कस्टम मिलिंग नीति में कार्य न कर पाने का ज्ञापन देकर इस नीति का विरोध दर्ज कराएंगे  । जैसे कि बालोद, कुरुद, राजनांदगांव जिलो ने किया है।आगे की रणनीति के लिए जल्द ही एक आम बैठक रखी जायेगी  ।

इस सिलसिलें में सोशल मीडिया पर भी पोस्ट डाले जा रहे हैं और सभी से एकजुटता की अपील की जा रही है। कई राइस मिलर्स ने प्रदेश राइस मिल एसोसिएशन बोर्ड के समस्त सदस्यों से निवेदन किया  है कि तत्काल महासंघ की जनरल बैठक बुलाई जाए । मिलर को भी यह समझ नहीं आ पा रहा है की इस वर्तमान पॉलिसी में कितना आर्थिक नुक़सान होगा और इसके दूरगामी परिणाम क्या होगा  । क्योंकि एक बार कस्टम मिलिंग कार्य का रेट कम होता है तो  भविष्य में किसी भी सरकार  में दर बढ़ने का कोई चांस नहीं रहेगा ।  मिलर्स के बीच से यह प्रतिक्रया भी सामने आ रही है कि सरकार का रवैया पूरी तरह से असहयोगात्मक और अव्यावहारिक है। सरकार राइस मिलर्स को राहत दने की बज़ाय उन्हे मिलने वाली मजदूरी भी कम कर रही है। ऐसी स्थिति में मिलर्स अपना घर बेचकर काम नहीं कर सकेंगे।

उधर राइस मिलर्स एशोसिएशन ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी मुलाक़ात करने का समय मांगा है। जिसे देखकर लगता है कि उन्हे अभी भी पूरी उम्मीद है कि वास्तविक स्थिति सामने आने पर मुख्यमंत्री कोई ठोस पहल करेंगे। इसके साथ ही प्रदेश के सभी 90 विधायकों को भी पत्र भेजकर इस मुद्दे पर उनके सहयोग औऱ समर्थन की अपील की गई है। जिसमें कहा गया है  कि जब से प्रदेश में कस्टम मिलिंग का कार्य प्रारंभ हुआ है, तब से ही मिलिंग चार्ज के रूप में शासन की ओर से प्रोत्साहन राशि दी जाती रही है। समय के साथ खर्चों में बढ़ोतरी हुई है और नई सरकार बनने के बाद राइस मिलर्स को भी उम्मीद थी कि उन्हे शासन के द्वारा रियायत प्रदान की ज़ाएगी, जिससे वे सुचारु रूप से धान की मिलों का संचालन कर सकेंगे। लेकिन नई नीति में रियायत दिए जाने की बज़ाय कस्टम मिलिंग दर के साथ दी जाने वाली तीस रुपए प्रति क्विंटल प्रोत्साहन राशि को भी बंद किए जाने का निर्णय लिया गया है। जिससे मिलर्स को प्रति क्विंटल सिर्फ दस रुपए मिलिंग चार्ज मिलेगा । जो कि व्यावहारिक और न्यायोचित नहीं है। राइस मिलर्स प्रक्रिया के सरलीकरण की अपेक्षा कर रहे हैं।साथ ही 2018 -19 के लंबित भुगतान का भी निराकरण होना चाहिए। यदि राइस मिलर्स की समस्याओँ के निराकरण की दिशा में तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो राइस मिलों का संचालन असंभव हो जाएगा।  प्रदेश के

सभी जिलों व कस्बों में लगभग 1800 चावल उद्योग कार्यरत  है, इन चावल उद्योगों में शत-प्रतिशत स्थानीय लोगों को रोजगार दिया जाता है ।  लगभग एक लाख से अधिक मजदूर इन उद्योगों में कार्यरत है । चावल उद्योग के  बाय प्रोडक्ट से कई उद्योग संचालित होते हैं  । इनमें सॉल्वेंट प्लांट, पावर प्लांट, ईटा भट्टा ,डिस्टलरी, पोल्ट्री फॉर्म, कैटल फील्ड आदि उद्योग है । यहां  भी अधिकांश स्थानीय लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।  शासन ने धान उत्पादक किसानों को खुशहाल और समृद्ध बनाने के लिए धान की खरीदी मूल्य 2500 प्रति क्विंटल, विद्युत छूट, ऋण माफी  जैसे अनेक योजनाएं की सौगात दी है  । वहीं धान से चावल उत्पादन करने वाले उद्योगों को भी प्रोत्साहन की आवश्यकता है ।  धान उत्पादक किसान एवं चावल उत्पादन करने वाले उद्योग एक बैलगाड़ी के दो पहियों की तरह है एक पहियों को शासन ने मजबूती दी है । वहीं दूसरे पहिय कमजोर हो रहा है  । जबकि आर्थिक खुशहाली के लिए प्रदेश हित में दोनों पहियों का साथ साथ चलना आवश्यक है । 

इस तरह के कदम उठाते हुए भी राइस मिलर्स ने सरकार से आस नहीं छोड़ी है। उन्हे लग रहा है कि जिस तरह से धान के मामले में किसानों को उनका हक़ दिलाने के लिए सरकार ठोस पहल कर रही है। उसी तरह राइस मिलर्स के लिए भी समय रहते कदम उठाए जाएँगे। क्योंकि ऐसा नहीं होने पर राइस मिलों में तालेबंदी के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा । जिससे प्रदेश के लाखों परिवार प्रभावित होंगे।

इस सिलसिले में एसोसिएशन की पहल पर मुख्य सचिव ने बातचीत के लिए 15 नवंबर को शाम चार बजे का समय दिया है। राइस मिलर्स को उम्मीद है कि इस बातचीत में पूरी परिस्थितियों पर विचार किया जाएगा और कस्टम मिलिंग नीति में संशोधन के साथ ही व्यावहारिक समस्याओँ का हल निकल सकेगा। जिससे राइस मिलर्स के सामने तालाबंदी की नौबत नहीं आएगी।

सुरेश केडिया , बिल्हा

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