जंगल में लूटतंत्र (चिकित्सा)

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डाक्टर लकड़बग्घा मंत्री जामवंत को धमकी देता रहा, उधर कुछ ही देर में आईसीयू में भर्ती सिंह कुछ चैतन्य हुआ, उसने अपने आपको नलियों के जाल में फंसा पाया। शरीर जकड़ा हुआ महसूस हुआ, राजा ने अपने पैरों को हिलाने का प्रयास किया, पैर बड़ी मुश्किल से हिले, दर्द से सिर फटा जा रहा था।

स्वयं की यह हालत देख सिंह चिंतित हो गया, वह विचार करने लगा कि थोड़ी सी घबराहट और तनाव की इतनी जटिल चिकित्सा कैसे की जा रही है। उसने आसपास खड़े लकड़बग्घे कर्मचारियों से कुछ पूछना चाहा, उन्होंने इशारे से उसे चुप करा दिया।

सिंह को डाक्टर की नीयत पर कुछ संदेह हुआ, वह समझ गया कि यहां कुछ गड़बड़ी हो रही है। कुछ देर बाद उसे कुछ हल्का महसूस हुआ और पैर हिलने लगे, इसलिए वह नलियों को फेंककर बाहर जाने का प्रयास करने लगा, आईसीयू में मौजूद कर्मचारी उसे रोकने लगे, परन्तु नाराज सिंह ने उन पर हमला कर दिया, सिंह के छलांग लगाते ही वे घबराकर भाग खड़े हुए।

उन्हें खदेड़कर सिंह बाहर निकला तो देखा बूढ़े जामवंत खड़े हैं, पास खड़ा डाक्टर उन्हें धमकी पर धमकी दिए जा रहा है। सिंह को सामने देख लकड़बग्घा नाराजगी व्यक्त करने लगा। वह कहने लगा- तुम बहुत सीरियस हो, इसलिए अंदर चलकर इलाज कराओ, नहीं तो बिल का भुगतान करो।

भड़के सिंह ने लकड़बग्घे की गर्दन पर सवार होकर कहा- सच बता मुझे क्या हुआ है। साक्षात मौत को सामने देख लकड़बग्घे को सांप सूंघ गया, परन्तु वह यही कहता रहा कि तुम बहुत बीमार हो, तुम्हारी हालत ठीक नहीं है….

सिंह ने डाक्टर से कहा- मुझे यहां इलाज नहीं कराना है, मैं बिल का भुगतान भी नहीं करूंगा। उसके बाद उसने उससे उन सभी मरीजों को बाहर निकालने कहा, जिनका अस्पताल में जबरिया इलाज किया जा रहा था।

डरे सहमे लकड़बग्घों ने अस्पताल में भर्ती स्वस्थ मरीजों को बाहर निकालना शुरू किया, देखते ही देखते पूरा हास्पिटल खाली हो गया। सिंह ने भविष्य में लूट का धंधा नहीं करने की चेतावनी देते हुए लकड़बग्घे को अपने पंजों से आजाद कर दिया।

डाक्टर की क्लीनिक से बाहर निकलकर वे एक पुराने मकान के पास पहुंचे। मकान के सामने बैठा बूढ़ा डाक्टर बैल एक बीमार गधे को चिकित्सकीय सलाह दे रहा था। सिंह ने बैल के निकट जाकर उसे अपना भी रोग बताया। डा. बैल राजा को अपनी छोटे से चिकित्सालय में ले गया, कुछ हल्की जांच के बाद बैल ने हंसते हुए कहा- किसने कहा आप अस्वस्थ हैं, मुझे तो लगता है आप पूरी तरह स्वस्थ हैं।

क्रोधित होने के कारण आपका मानसिक तनाव बढ़ गया है। आप आराम से लेटकर शरीर को ढीला छोड़ दीजिए, गहरी सांसें लीजिए, सब ठीक हो जाएगा। उसने सिंह को खाने के लिए कुछ गोलियां दीं।

गोलियां खाकर सिंह लेट गया, उसने शरीर को ढीला छोड़ दिया, साथ ही विचारों को विराम देकर गहरी सांसें लेने लगा। कुछ देर में उसका तनाव दूर हो गया, धड़कनें भी सामान्य हो गईं। उसने मंत्री से चिकित्सक को रुपए देने कहा, परन्तु चिकित्सक ने रुपए लेने से इनकार कर दिया। अति आग्रह करने पर उसने कुछ रुपए लिए।

राजा ने सज्जनता की प्रशंसा करते हुए चिकित्सक से पूछा- क्या आप सभी मरीजों की निःशुल्क चिकित्सा करते हैं ? डाक्टर ने कहा नहीं, हम मरीजों की बीमारी के अनुसार शुल्क लेते हैं। कोई बीमार नहीं होता तो बिना शुल्क लिए उसे संतुष्ट कर विदा कर देते हैं, कुछ दवा देने से ठीक होने वाले मरीज से थोड़ा बहुत शुल्क लेते हैं। गंभीर रोगी से इलाज में आने वाले खर्च के हिसाब से रुपए लेते हैं।

सिंह ने कहा- आप डाक्टर होकर भी इतने सेवाभावी क्यों हैं ? चिकित्सक ने कहा- हे सिंह, यह पेशा सेवा से संबंधित है, इसमें पेशे पर जोर दो तो सेवा गायब हो जाती है, ध्यान धन पर चला जाता है, परन्तु सेवा पर जोर दो तो धन गायब हो जाता है, ध्यान सेवा पर ही रहता है…डाक्टर के पास दोनों विकल्प मौजूद रहते हैं, हमने सेवा का विकल्प चुना, क्योंकि समाज और सामाजिकता की मांग सेवा है…धन नहीं…
( क्रमशः )

( आगे है शिक्षा की दुकानों के सामने फीके पड़े विद्यालय )

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