जंगल में लूटतंत्र (राजनीति 6)

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चतुर सियारों ने विरोध कार्यक्रम आगे बढ़ाया। मदमस्तों को बिना मांगे मदिरा मिलने लगी, गरीबों के घर तक रुपए व नाना प्रकार की वस्तुएं पहुंचने लगीं। सियारों ने प्राणिगत वैमनस्य पहले ही फैला रखा था, अब उन्होंने वन्यप्राणियों के अलग अलग दलों के मुखिया से संपर्क साधा।

आदर सम्मान करते हुए पैकेज नामक अमोघ अस्त्र का प्रयोग किया, फिर उन्हें वन्यप्राणियों को राजा की खिलाफत के लिए तैयार करने कहा गया। उपकृत मुखिया इसके लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार हो गए। शरणार्थी अपराधियों, डाकुओं, लुटेरों को कुछ दिनों के लिए मूल धंधा छोड़ धर्मात्मा का चोला धारण करने की सलाह दी गई।

कुचक्र के सहारे चतुर सियारों ने नंदन वन में अंदर ही अंदर हलचल मचाना आरंभ कर दिया, उनके आसपास वन्यप्राणियों की भीड़ एकत्रित होने लगी। वे स्वयं को वन्यप्राणियों के हितैषी के रूप में प्रस्तुत करते हुए विशाल सभा आयोजित करने की तैयारी करने लगे।

जामवंत को इन गतिविधयों की जानकारी मिलती जा रही थी। वे समझ रहे थे कि संख्याबल ही सियारों का मुख्य अस्त्र है, चतुर सियार इसके सहारे ही राजा पर दबाव बनाने का प्रयास करेंगे, इसलिए वे सही समय का इंतजार कर रहे थे।

सभा के आयोजन की जानकारी मिलते ही उन्होंने अपने मित्र सत्यनिष्ठ पत्रकार कौवों को बुलाकर उन्हें सम्मानपूर्वक बैठाया। उन्हें सियारों के कुचक्र व उसके दुष्परिणामों की जानकारी दी। मंत्री ने उन्हें नंदन वन के हित में वन्यप्राणियों को सियारों का वास्तविक चेहरा दिखाने के लिए ललकारा। संघर्ष में आनंदित होने वाले कौवे इसके लिए तैयार हो गए।
जामवंत की प्रेरणा से सत्यनिष्ठ कौवों ने सियारों की गतिविधयों का भंडाफोड़ कार्यक्रम आरंभ कर दिया। उन्होंने वन्यप्राणियों को सप्रमाण बताना आरंभ किया कि किस तरह ये सियार वर्षों से अधिकारियों, ठेकेदारों, व्यापारियों से मिलकर भ्रष्टाचार करते आ रहे हैं, कैसे ये कालेधन के सहारे सत्ता पर काबिज हैं। कौवों ने कई धर्मात्मावेषी रंगे सियारों की धुलाई कर उन्हे चौराहे पर खड़े कर दिया, वे किसी को चेहरा दिखाने लायक नहीं रह गए।

उन्होंने जोर देकर बताया कि अब ये सियार केंद्रीय सत्ता पर कब्जा कर पूरे नंदन वन को लूटना चाहते हैं, इसलिए ये आप सभी को भड़काकर राजा से लड़ाने का प्रयास कर रहे हैं, ये स्वयं राजा का सामना नहीं करना चाहते हैं।

सत्यनिष्ठ कौवों की धमाकेदार सूचनाओं से वन्यप्राणी प्रभावित हो गए, वातावरण बदल गया। सभी ने भ्रष्ट सियारों को धिक्कारना आरंभ कर दिया, जगह जगह तर्क वितर्क होने लगा। दूसरी ओर भंडाफोड़ से सियारों में भगदड़ मच गई। वे समझ गए कि पलटवार आरंभ हो गया है, अतः सर्वप्रथम उन्होंने सभा का कार्यक्रम स्थगित किया।

सियारों ने आपात बैठक आहूत कर स्थिति पर विचार विमर्श किया। रणनीति के तहत छवि सुधारने हेतु दिखावे के लिए भ्रष्टतम सियारों को दल से बाहर करने और इसका प्रचार करने का निर्णय लिया गया।

घोषित भ्रष्ट सियारों ने इसका विरोध किया, परन्तु वातावरण बदलते ही उन्हें पुनः दल में शामिल करने का आश्वासन देकर मना लिया गया। इन सियारों को एक अलग दल बनाने की सलाह दी गई।

बैठक के बाद चतुर सियारों ने सत्यनिष्ठ कौवों से संपर्क साधा। उन्हें भ्रष्ट सियारों के निष्कासन की जानकारी देकर अपना साथ देने की गुहार लगाई, तमाम लालच दिए, परन्तु कौवों ने उनका साथ देने से मना कर दिया। टूटे फूटे घोसलों में रहने वाले कौवों ने कह दिया वे सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे।

सियारों ने हार नहीं मानी, उन्होंने अपने पुराने मित्र कौवों व बुद्धिजीवी बगुलों को एकत्रित किया, हैवी पैकेज भेंट कर उनका सम्मान किया, साथ ही कल्पित सत्ता में भागीदारी का पुख्ता आश्वासन देकर अपने सम्मान रक्षा की गुहार लगाई। जीवन का उद्देश्य सफल होते देख ये कौवे व बगुले सियारों की मान रक्षा के लिए मैदान में कूद पड़े।

यही कार्य दल से बहिष्कृत भ्रष्टतम् सियारों ने भी किया, उन्होंने भी अपने मित्र कौवों और बगुलों को सम्मान रक्षा का ठेका दे दिया। इससे सियारों की तरह कौवों के भी तीन दल बन गए…बगुले दो दलों में विभाजित हो गए….

( आगे है… कन्फ्यूजन पालिटिक्स…)

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