वार्तालाप करते राजा और मंत्री गहन वन से निकलकर दूसरे नगर के समीप पहुंचे। इस नगर से कुछ मील आगे सिंह की गुफा थी। अकस्मात् उन्हें एक बड़े मैदान पर गधे, घोड़े, गेंडे, बैल, लकड़बग्घे, लोमड़े, लोमड़ियां, भेंसे, कौवे, चील, बगुले, नाग सहित हजारों अन्य वन्यप्राणी बैठे नजर आए। एक विशाल मंच पर अनेक सियार बैठे दिखे।
राजा ने मंच की ओर संकेत करते हुए पूछा ये सियार कौन हैं? जामवंत ने कहा- राजन् ये विभिन्न जनपदों के प्रधान व वन्यप्राणियों के नेता हैं। नंदन वन में नई व्यवस्था लागू होने के बाद जनपदों में वन्यप्राणियों की सरकारें बनने लगीं । आरंभ में आम सहमित के आधार पर सरकारें बन जाती थीं। इनमें सभी प्रकार के योग्य वन्यप्राणी सम्मिलित रहते थे।
ये वन्यप्राणी नैतिकता के आधार पर आम सहमित से विकास की नीतियां बनाते थे, विकास कार्य भी कराते थे, परन्तु इस तंत्र में नेता बनने के लिए किसी तरह की विशेषज्ञता आवश्यक नहीं होती। वन्यप्राणियों के हितचिंतकों, वास्तविक सेवकों, त्यागियों के अलावा सफेदपोश डाकू, चोर, लुटेरे, माफिया भी अपना ऊपरी आवरण चमकाकर चुनाव लड़ सकते हैं, इसलिए धीरे धीरे स्थिति बिगड़ती गई।
सत्ता के आवरण में लूट की छूट मिलने से राजनीति का उद्देश्य ही बदलता गया, यह सर्वोत्तम धंधा माने जाने के कारण इसमें गलाकाट प्रतिस्पर्धा आरंभ हो गई, चुनाव होने लगे, इसमें विजय प्राप्ति के लिए पैंतरेबाजी की प्रतियोगिता होने लगी। सियार अति चतुर होते हैं, अतः चतुराई के बल पर उन्होंने सभी अन्य चिन्तनशील व त्यागी वन्यप्राणियों को पछाड़ दिया। अब वर्षों से सभी जनपदों की सरकारों पर अलग अलग दल के सियारों का ही कब्जा है।
ये सियार अपने राजनैतिक कला कौशल के सहारे वन्यप्राणियों को भ्रमित करते हुए उन पर लदे रहते हैं, भ्रम के शिकार वन्यप्राणी इन्हीं की जय जयकार करते हैं, घोटालों के शिकार होकर इन्हें ढोते भी रहते हैं, मुझे लगता है आज कोई विशेष बात है, इसीलिए अलग अलग दल के सियार एक ही मंच पर दिखाई दे रहे हैं।
पेड़ की आड़ में खड़े राजा व मंत्री वार्तालाप कर ही रहे थे, इसी समय एक सियार ने वन्यप्राणियों की सभा को संबोधित करना आरंभ किया। कौतूहलवश वे कान लगाकर सुनने लगे।
सियार ने सभी वन्यप्राणियों का अभिवादन कर भाषण देना आरंभ किया। उसने कहा- हे सम्माननीय वन्यप्राणियों, आज का दिन ऐतिहासिक है, वर्षों विचारमंथन करने के बाद आज हम सभी दलों के सियारों ने एकदलीय मंच बनाया है, साथ ही हम यहां आपके समक्ष एक महत्वपूर्ण मांग के संबंध में चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं, यह मांग नंदन वन में संपूर्ण लूटतंत्र लागू करने की है।
हे बुद्धिमान वन्यप्राणियों, हम विकास की दौड़ में मनुष्यों से भी आगे जाना चाहते हैं, परन्तु लंगड़ा लूटतंत्र हमारे विकास के मार्ग में बाधा बना हुआ है। वर्षों पूर्व राजा सिंह ने जंगल में लूटतंत्र लागू करने का आदेश दिया, मंत्री जामवंत को आदेश देकर राजा ध्यानस्थ हो गया।
आदेशानुसार नंदन वन में संपूर्ण लूटतंत्र लागू किया जाना था, परन्तु चालाक जामवंत ने लूटतंत्र की दो टांगें ही वन्यप्राणियों को सौंपी, उसने चालाकी से दूसरी दो टांगों पर अपना आधिपत्य बनाए रखा।
जामवंत ने जनपदों का गठन कर वन्यप्राणियों को व्यापक अधिकार तो दे दिए। इससे नंदन वन के विकास का रास्ता खुला, तेजी से विकास कार्य भी होने लगे, परन्तु वन्यप्राणियों की केंद्रीय सरकार बनाने के लिए उन्होंने चुनाव नहीं कराया। अब तक जामवंत स्वयं केंद्रीय सरकार बनकर सभी जनपदों पर शासन कर रहा है।
केंद्रीय सरकार नहीं बनने से नंदन वन का असमान विकास हो रहा है। उग्रवाद भी पनपने लगा है। महतवपूर्ण बात यह है कि सत्ता में पूर्ण भागीदारी नहीं मिलने से वन्यप्राणी असुरक्षित हैं।
कुछ माह पूर्व राजा का ध्यान भंग हो चुका है। राजा के सक्रिय होते ही जामवंत की चालाकियां चरम् पर पहुंच गई हैं। हमें पता चला है कि वह राजा को भड़काकर इस लंगड़े लूटतंत्र के भी क्रियाकर्म की तैयारी कर रहा है। अब तो इसके संकेत भी मिलने लगे हैं……
(आगे है राजा की आलोचना…)