जब नेहरू ने कहा अटल देश के भावी प्रधानमंत्री….बॉबी पड़े भारी…कवि हृदय ने बिछाया सड़कों का जाल.

BHASKAR MISHRA

बिलासपुर—दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्षी नेताओं की एक रैली थी. रैली 4 बजे शुरू हो गई थी। लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी की बारी आते आते रात के साढ़े नौ बज गए थे। जैसे ही वाजपेयी बोलने के लिए खड़े हुए, वहाँ मौजूद हज़ारों लोग भी खड़े हो कर ताली बजाने लगे। वाजपेयी ने फिर अपनी आंखें बंद कीं. फिर एक लंबा पॉज़ लिया और मिसरे को पूरा किया, ‘ कहने सुनने को बहुत हैं अफ़साने। इस बार तालियों का दौर लंबा हो गया। शोर रुका तो वाजपेयी ने एक और लंबा पॉज़ लिया और दो और पंक्तियाँ पढ़ीं, ”खुली हवा में ज़रा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आज़ादी कौन जाने?”

                   हज़ारों हज़ार लोग कड़कड़ाती सर्दी और बूंदाबांदी के बीच वाजपेयी को सुनने के लिए जमा हुए थे। बावजूद इसके तत्कालीन सरकार ने उन्हें रैली में जाने से रोकने के लिए दूरदर्शन पर 1973 की सबसे हिट फ़िल्म ‘बॉबी’ दिखाने का फ़ैसला किया था।  लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ था. बॉबी और वाजपेयी के बीच लोगों ने वाजपेयी को चुना। उस रात उन्होंने सिद्ध किया कि उन्हें बेबात ही भारतीय राजनीति का सर्वश्रेष्ठ वक्ता नहीं कहा जाता.”

संसद में हिंदी के सर्वश्रेष्ठ वक्ता

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष अनंतशयनम अयंगार ने एक बार कहा था कि लोकसभा में अंग्रेज़ी में हीरेन मुखर्जी और हिंदी में अटल बिहारी वाजपेयी से अच्छा वक्ता कोई नहीं है। जब वाजपेयी के एक नज़दीकी दोस्त अप्पा घटाटे ने उन्हें यह बात बताई तो वाजपेयी ने ज़ोर का ठहाका लगाया और बोले, “तो फिर बोलने क्यों नहीं देता। हालांकि, उस ज़माने में वाजपेयी बैक बेंचर हुआ करते थे, लेकिन नेहरू बहुत ध्यान से वाजपेयी के उठाए गए मुद्दों को सुना करते थे.

नेहरू थे वाजपेयी के मुरीद

किंगशुक नाग ने ‘अटलबिहारी वाजपेयी- ए मैन फ़ॉर ऑल सीज़न’ में लिखते हैं कि एक बार नेहरू  ने भारत यात्रा पर आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री से वाजपेयी को मिलवाते हुए कहा था, “इनसे मिलिए। ये विपक्ष के उभरते हुए युवा नेता हैं. हमेशा मेरी आलोचना करते हैं। लेकिन इनमें मैं भविष्य की बहुत संभावनाएं देखता हूँ.। एक बार एक दूसरे विदेशी मेहमान से नेहरू ने वाजपेयी का परिचय संभावित भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी कराया था।

साउथ ब्लॉक में नेहरू का चित्र वापस लगवाया

                     1977 में जब वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में अपना कार्यभार संभालने साउथ ब्लॉक स्थित दफ़्तर गए। उन्होंने नोट किया कि दीवार पर लगा नेहरू का एक चित्र ग़ायब है। उन्होंने तुरंत अपने सचिव से पूछा कि नेहरू का चित्र कहां है, जो यहां लगा रहता था। उन्होने तत्काल आदेश दिया कि उस चित्र को वापस लाकर उसी स्थान पर लगाया जाए जहां वह पहले लगा हुआ था। विदेश मंत्री बनने के बाद उन्होंने नेहरू के ज़माने की विदेश नीति में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं किया।

भाषणों में मेहनत करते थे

सार्वजनिक भाषणों के लिए वाजपेयी कोई ख़ास तैयारी नहीं करते थे। लोकसभा का भाषण तैयार करने के लिए खासी मेहनत करते थे। देर रात अपने भाषण पर काम करते थे। पूरा भाषण कभी नहीं लिखते थे। लेकिन उनके दिमाग़ में पूरा ख़ाका रहता था। अगले दिन उन्हें

लोकसभा में क्या-क्या बोलना है। वाजपेयी का लाल किले के प्राचीर से भाषण लिखा हुआ पढ़ते थे। क्योंकि  उनके मन में प्राचीर के प्रति पवित्रता का भाव था।

आडवाणी को कॉम्पलेक्स

अटल बिहारी वाजपेयी के काफ़ी क़रीब रहे उनके साथी लालकृष्ण आडवाणी ने बताया था कि अटलजी के भाषणों को लेकर वह हमेशा हीनभावना से ग्रस्त रहे। जब अटलजी चार वर्ष तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके तो उन्होंने मुझसे अध्यक्ष बनने की पेशकश की। मैंने मना कर दिया कि उन्हें बताया कि हज़ारों की भीड़ के सामने आपकी तरह भाषण देना नहीं आता।  उन्होंने कहा संसद में तो तुम अच्छा बोलते हो. मैंने कहा संसद में बोलना एक बात है और हज़ारों लोगों के सामने बोलना दूसरी बात। बाद में पार्टी अध्यक्ष बना, लेकिन मुझे ताउम्र कॉम्पलेक्स रहा कि मैं वाजपेयी जैसा भाषण कभी नहीं दे पाया।

जब वाजपेयी रामलीला मैदान में सोए

                 वाजपेयी हमेशा इस बात का ध्यान रखते ते कि उनकी वजह से दूसरे को कोई परेशानी न हो। बहुत समय पहले जनसंघ का दफ़्तर अजमेरी गेट पर हुआ करता था. वाजपेयी, आडवाणी और जे पी माथुर वहीं रहा करते थे। एक दिन वाजपेयी रात की ट्रेन से दिल्ली लौटने वाले थे।  उनके लिए खाना बना कर रख दिया गया था। रात 11 बजे आने वाली गाड़ी 2 बजे पहुंची.।  सवेरे 6 बजे दरवाज़े की घंटी बजी तो देखा गया कि वाजपेयी सूटकेस और होल्डाल (बड़ा बैग) लिए दरवाज़े पर खड़े हैं। उन्होने बताया कि गाड़ी 2 बजे पहुंची तो आप लोगों को जगाना ठीक नहीं समझा. इसलिए रामलीला मैदान में जा कर सो गया.’

उम्दा खाने के शौकीन

                वाजपेयी को खाना खाने और बनाने का बहुत शौक़ था. मिठाइयां उनकी कमज़ोरी थी. रबड़ी, खीर और मालपुए के वो बेहद शौक़ीन थे. आपातकाल के दौरान जब वो बेंगलुरू जेल में बंद थे तो वो आडवाणी, श्यामनंदन मिश्र और मधु दंडवते के लिए ख़ुद खाना बनाते थे। प्रधानमंत्री रहते सुबह नौ बजे से एक बजे मिलने वालों का तांता लगा करता था। इस दौरान परोसे जाने वाली मिठाइयां चट कर जाते ते। शुरू में वह शाकाहारी थे लेकिन बाद में वह मांसाहारी हो गए। चाइनीज़ खाने का ख़ास शौक था।

सड़कें वाजपेयी ने बनवाईं

अटल बिहारी वाजपेयी के पसंदीदा कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, हरिवंशराय बच्चन, शिवमंगल सिंह सुमन और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ थे। शास्त्रीय संगीत का भी शौक रखते थे।  भीमसेन जोशी, अमजद अली खाँ और कुमार गंधर्व को सुनना पसंंद करते थे। वाजपेयी की पैठ विदेशी मामलों में अधिक थी लेकिन अपने प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने सबसे ज़्यादा काम आर्थिक क्षेत्र में किया। टेलिफ़ोन और सड़क निर्माण में वाजपेयी के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकत। . भारत में आजकल जो हाइवेज़ का जाल बिछा हुआ हैं उसके पीछे वाजपेयी की ही सोच है।

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