जब पालकों ने कहा लूट की हो गयी हद…सिंडिकेट बनाकर स्कूल प्रबंधन की खुले आम डकैती..प्रशासन की मौन स्वीकृति?

BHASKAR MISHRA
10 Min Read

बिलासपुर—नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही निजी स्कूलों में फीस अैार किताबों के नाम पर लूट शुरू हो गई है। अधिकांश स्कूलों में 30 से 40 प्रतिशत तक फीस बढ़ा दी गई है। नियमों के तहत 10 प्रतिशत से अधिक फीस नहीं बढ़ाई जा सकती है। कोई भी स्कूल या संस्था किसी बच्चे को प्रवेश देते समय प्रति छात्र शुल्क (कैपिटेशन फीस), एडमिशन फीस, री-एडमिशन फीस और डोनेशन नहीं ले सकते हैं। ट्यूशन फीस समेत शिक्षा विभाग के निर्देशानुसार 12 मदों में ही लिया लिया जा सकता है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। निजी स्कूल संचालक सिंडिकेट बनाकर वार्षिक शुल्क के नाम पर लाखों रुपए लूट रहे हैं। हर छात्र से 10 हजार के करीब सिर्फ एनूअल चार्ज के रुप में लिया जा रहा है। एनसीईआरटी की किताबों को दरकिनार कर निजी प्रकाशकों की किताबें मंहगे दामों में खरीदने को मजबूर किया जा रहा है। आलम यह है कि एनसीआरटी की जो किताबें 250 से 300 रुपए में मिल जाती हैं। वही किताबें बाजार में 2500- 4000 रुपए में मिल रहीं हैं। मजेदार बात है कि कई बार शिकायत के बाद भी जेब में डाका डालने वाले निजी स्कूल संचालकों को प्रशासन ना केवल देख रहा है। बल्कि मौन ऊी साधे हुए हैं।

Join Our WhatsApp Group Join Now
                               आज निजी स्कूल संचालकों की मनमानी के खिलाफ पालकों ने प्रेस वार्ता कर स्कूल संचालकों के सिंंडिकेट के खिलाफ जमकर बोला। पालकों ने कहा कि हमने कलेक्टर से लेकर कई बड़े अधिकारियों के सामने गुहार लगाई लेकिन कोई अर्थ नहीं निकला है। लाचार हम लोग लुटने के लिए मबबूर हैं। लेकिन प्रशासन कोई ठोस कदम नही उठा रहा है। पालकों ने बताया कि हम चाहते है कि प्रशासन हमारी तकलीफों को समझे। पालकों ने बताया कि हम मध्यम वर्गीय पालकों को निजी स्कूल संचालकों ने जीना मुश्किल कर दिया है। जरूरी है कि प्रशासन निजी स्कूल संचालकों की मनमानी पर लगाम कसे। बढ़ी हुई फीस तत्काल वापस लेने का दबाव बनाए। एनूअल जार्च के नाम पर ली जा रही फीस बंद करे। एनसीईआरटी की किताबें ही निजी स्कूलों में लागू हों। सभी स्कूलो में प्रबंधन के साथ पालकों की समिति बनाई जाए। स्कूलो में 12 महीने की फीस वसूली पर रोक लगाई जाए। शिक्षा विभाग हर साल स्कूलों का आडिट करे जिसमें पालक संघ भी शामिल हो। ट्रांसपोर्ट के नाम पर भी ली जा रही अधिक राशि पर रोक लगे। वाहनों में बच्चों की सुरक्षा जाली लगाई जाए।
                            पत्रकारों से पालकों ने बताया कि जिले समेत प्रदेश में निजी स्कूलों की फीस पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है। हाल यह है कि राज्य में इंजीनियरिंग और मेडिकल की शिक्षा के लिए फीस तय करने के लिए फीस विनियामक समिति तो है, लेकिन निजी स्कूलों में इंजीनियरिंग से अधिक फीस पालकों से ऐंठी जा रही है। पिछले सालों में सरकारों ने स्कूली फीस को नियंत्रित करने के लिए कमेटी बनाने का सिर्फ दावा किया लेकिन ठोस प्रयास नहीं किया गया। नतीजा हर साल निजी स्कूलों में 30 से 40 प्रतिशत फीस बढ़ रही है।
इन मदों में ही निजी स्कूल ले सकते हैं फीस
                       पालकों ने जानकारी दी कि स्कूल शिक्षा विभाग ने निजी स्कूलों की फीस के लिए शिक्षा संहिता नियम 124 के तहत 12 मद निर्धारित किया है। इनमें से शिक्षण (कंप्यूटर शिक्षा सहित), परीक्षा, क्रीड़ा (स्पोर्ट्स), क्रियाकलाप, रेडक्रॉस, स्काउट एंड गाइड, विज्ञान, पुस्तकालय, शाला विकास, निर्धन छात्र-छात्रा, स्वास्थ्य बीमा (यदि छात्रों को स्वास्थ्य बीमा सुविधा दी जाती है तो) और बागवानी (यदि शाला परिसर में बागवानी की जाती है) शामिल हैं। इसके अलावा अन्य मदों में ली जाने वाली फीस कैपिटेशन की श्रेणी में आएगी जो कि गलत है।
सरकार के पास निगरानी सिस्टम नहीं
                      कई निजी स्कूल ऐसे हैं जहां विवरण पत्रिका 500 से 1000 रुपए तक में बिक रही है। इस पर निगरानी के लिए कोई सिस्टम नहीं है। दरअसल प्रदेश में तीन तरह के निजी स्कूल संचालित हैं। इनमें एक रसूखदारों का स्कूल है, जहां पर न्यूनतम फीस 50 हजार रुपए से शुरू होकर सवा लाख रुपए तक है। दूसरे मध्यम स्कूल हैं जहां फीस 30 से 70 हजार रुपये तक है और सबसे निचले स्तर पर निजी स्कूलों में फीस न्यूनतम 10 हजार रुपए वार्षिक से लेकर 35 हजार रुपए तक है। सबसे अधिक संख्या निचले स्तर के स्कूलों की है, जहां सबसे अधिक पालक फीस दे रहे हैं।
पहली कक्षा के बच्चे का खर्च 25 हजार
                सीबीएसई स्कूलों की मनमानी ऐसी है कि कई शुल्क ऐसे लिए जा रहें हैं जिसमें बच्चों की ट्यूशन फीस से कोई लेना-देना नहीं है। सीबीएसई स्कूलों में अगर अभिभावक एक या दो बच्चों को पढ़ा रहे हैं तो उन्हें सालभर में एक से डेढ़ लाख रुपए तक खर्च करने पड़ेंगे। अगर शहर के कुछ स्कूलों की बात करें तो पहली कक्षा की सालभर की फीस करीब 25 हजार रुपए तक पहुंच जा रही हैं। इन सीबीएसई स्कूलों में हर साल एनूयअल चार्ज के नाम पर भी बच्चों से फीस ली जा रही है।
10 महीने में 12 माह की फीस
       निजी स्कूलों में पालकों को अंग्रेजी का आकर्षण दिखाकर कक्षाएं तो 10 महीने ही लगा रहे हैं, लेकिन फीस 12 महीने तक की वसूल रहे हैं। इन स्कूलों में सीबीएसई की किताबें पढ़ाकर बच्चों को अप्रैल में गर्मी में ही कक्षाएं लगाई जा रही हैं। इसके एवज में निजी स्कूल मई और जून की भी फीस वसूलेंगे। ध्यान देने वाली बात है कि छुट्टी के दौरान मार्च से मई तक बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं, फिर भी उन्हें ट्रांसपोर्ट और ट्यूशन फीस देनी होती है।
किताबें अलग , 3 महीने की अतिरिक्त फीस
                   सत्र की शुरूआत में निची स्कूलों में एडमिशन फीस के साथ  तीन से 6 महीने की मासिक फीस एडवांस में ले ली जाती है। इसके बारे में कहीं उल्लेख भी नहीं किया जाता। जब दाखिले के लिए अभिभावक जाते हैं तो स्कूल उनसे ट्यूशन, एक्टिविटी और डेवलेपमेंट फीस तीनों ही कई गुना वसूल लेते हैं। साथही हर स्कूल में अलग-अलग किताबें हैं, जबकि सिलेबस लगभग एक जैसा है। एनसीईआरटी से सस्ती किताबें मुहैया कराने के बजाय बाजार से महंगी किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। जिसके चलते अभिभावकों को पांचवीं कक्षा के लिए 5 से 6 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं।
शिक्षा विभाग को जानकारी नहीं देते स्कूल
      निजी स्कूलों द्वारा संबंधित नोडल प्राचार्यों से प्रमाणित कराकर लिए जाने वाले फीस की जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को दिया जाना अनिवार्य है। लेकिन कोई भी निजी स्कूल ऐसा नहीं करता। कड़ाई किए जाने के बाद इक्का-दुक्का स्कूलों द्वारा इन नियमों का पालन किया जाता है। जबकि नियमों के तहत निजी स्कूल कोई भी गुप्त फीस नहीं ले सकता। स्कूलों को फीस निर्धारित करना जरूरी होने के साथ ही अपने सालाना ऑडिट में दर्शाना भी अनिवार्य है। शिक्षा का अधिकार के तहत कैपिटेशन फीस लेने वाले स्कूलों पर प्राप्त रकम से 10 गुना राशि से दंडित किया जा सकता है।
सोया है जिला प्रशासन, अधिकारियों की मिलीभगत
                           पालकों ने बताया कि पूरे मामले में प्रशासन अैार जिला शिक्षा विभाग की मिलीभगत साफ दिखाई दे रही है। किताब यूनिफार्म, ट्रांसपोर्ट, बिल्डिंग क्षतिपुर्ति आदि के नाम पर मनमानी ढंग से वसूली की जा रही है। प्रयोगशाला, खेल का मैदान का अभाव है लेकिन फीस ली जा रही है। इसका विरोध करते हुए 10 से अधिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के पालकों ने कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी तक से शिकायत की है लेकिन कहीं से कोई आश्वासन नहीं मिला है। हर जगह हमारी आवाज को दबाने की कोशिश की जा रही है।
                         पत्रकार वार्ता में सामाजिक कार्यकर्ता प्रियंका शुक्ला के अलावा पालकों की तरफ से रंजीत उपाध्याय, हार्दिक गुहा, बेगम निशा,तामक्रकार और अनिल गुहा ने जानकारी दी।
close