जब बैंकरों ने कहा..बरबाद हो जाएगी भारत की अर्थनीति…बैंक एकीकरण का किया विरोध..सरकार पर साधा निशाना

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— बैंको के विलय या एकीकरण से देश, समाज, आमजनता, कर्मचारी और बैंको को लेशमात्र भी फायदा नहीं हुआ। उल्टा देश को नुकसान ही उठाना पड़ेगा। यूनाइटेड फोरम ऑफ़ बैंक यूनियंस के आव्हान पर आज शाम बैंकरों के साथ विरोध कर रहे यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के संयोजक ललित अग्रवाल ने कही। अग्रवाल ने विरोध प्रदर्शन के दौरान बताया कि बैंकों का एकीकरण देश के लिए भस्मासुर साबित होगा।

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             बैंकिग समय कार्य के बाद देश के बैंक कर्मचारी और अधिकारियों ने अपने शहर में एकीकृत होकर बैंक विलय का विरोध किया। देना , बैंक ऑफ बडौदा और विजया बैंक के एकीकरण के विरोध में जंगीय प्रदर्शन कर अपने मंसूबों को सरकार के सामने जाहिर किया।  बिलासपुर के बैंकरों ने विरोध प्रदर्शन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के संयोजक ललित अग्रवाल अगुवाई में की। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फ़ेडरेशन छतीसगढ़ के सहायक महासचिव ललित अग्रवाल ने बताया कि सरकार के बैंक एकीकरण के फैसले से देश की अर्थनीति तबाह हो जाएगी।
            एसबीआई ऑफिसर्स फेडरेशन के डीजीएस डी के हाटी, एसबीआई वर्कमेन यूनियन  के डीजीएस राजेश रावत ने बताया कि विलय या एकीकरण से देश, समाज, आमजनता, कर्मचारी और बैंको को लेशमात्र भी फायदा नहीं होने वाला है। यदि ऐसा किया गया तो देश को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा। एक तरफ देश के कमोबेश सभी बैंक घाटे में जा रहें है। दूसरी जानकबूझकर देश की अर्थनीति को तबाह करने का आत्मघाती फैसला लिया जा रहा है।
              बैंक अधिकारियों ने कहा कि पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने ग्लोबल ट्र्स्ट बैंक का उद्घाटन किया था। घाटे में होने के कारण बाद में बैंक को ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में विलय कर दिया गया। बावजूद इसके बैंक को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। एलआईसी और आईडीबीआई का भी यही हाल होने वाला है।
             ललित अग्रवाल समेत सभी अधिकारियों ने जानकारी दी कि 2008 की वैश्विक मंदी में अमेरिका जैसे अनेको पूंजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गयी थी। विकास का दावा करने वाले देशों की चूलें हिल गई थी। लेकिन उस समय राष्ट्रीयकृत बैंकों की बदौलत भारतीय अर्थव्यवस्था सिरमौर बनी रही। इन सबसे सबक लेकर पश्चिमी देशों में भी बैंको के राष्ट्रीयकरण की संकल्पना की जा रही हैं। इधर हमारे देश मे एकीकरण के नाम पर निजीकरण की साजिश रची जा रही हैं। दुनिया भर के आंकड़े बता रहे है कि सदैव विलय के 70 से लेकर  90 फीसदी मामले फेल हुए हैं।
                     सीजीबीईए के अध्यक्ष अशोक ठाकुर,  सचिव एन वी राव ने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ इँडिया पहले फायदे में चल रहा था। लेकिन सहयोगी बैंको के विलय के बाद न केवल घाटे में चला गया, बल्कि एनपीए भी बढ़ गया है.
           लोगों को अपने संबोधन में बैंक ऑफ बडौदा ऑफिसर्स फेडरेशन के अनुराग बजाज, विजया बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के विनिल गुप्ता, देना बैंक ऑफिसर्स फेडरेशन के एम के पटसानी ने बताया कि पंजाब नैशनल बैंक पहले फायदे में चल रहा था। न्यू बैंक ऑफ इंडिया के एकीकरण के बाद वह भी घाटे में चला गया।
                          एस बी सिंह, जितेंद्र शुक्ला, शरद बघेल, दीपा टन्डन कमोबेश सभी प्रदर्शनकारियों ने सरकार की नीतियों पर संदेह जाहिर करते हुए कहा कि एक तरफ सरकार बैंको का विलय/एकीकरण कर बड़ा बैंक बनाना चाहती है। दूसरी ओर नये छोटे पेमेंट बैंक को लाइसेंस भी दे रही है। मोबाईल बैंकिंग, केशलेश ट्रांजेक्शन, ई वालेट से बैंको को और छोटा करते जा रही है। बैंको के विलय/एकीकरण से कर्मचारी को कम आम जनता को ज्यादा नुकसान होगा।  कई शाखाए बंद होंगी। देश की अर्थनीति तबाह होने से नये रोजगार के अवसर कम हो जायेंगे।
         धरना प्रदर्शन में प्रमुख रूप से प्रल्हाद अग्रवाल, एस बी सिंह, जितेंद्र शुक्ला, पी के महानन्द, अनूप साहू सहित बड़ी सँख्या में बैंकर्स मौजूद थे।
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