जयंती पर ही याद आतें हैं बापू,चरखा और खादी

BHASKAR MISHRA
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IMG_20150930_150108(भास्कर मिश्र) बिलासपुर—चरखा केवल यंत्र नहीं…खादी मात्र कपड़ा नहीं…चरखा और खादी एक विचार है। मानवीय भावना है.,निष्ठा है..और पीछे छूट रही भारतीय संस्कृति के लिए संजीवनी है। चरखा और खादी का कार्य समाज में लोगों को इंसान बनाने का क्राम करता है। गांधी जी ने चरखा को आर्थिक और क्रांतिकारी परिवर्तन का एक आदर्श प्रतीक माना था। लेकिन अब..चरखा और खादी को केवल गांधी जयंती पर ही याद किया जाता है।

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               दो अक्टूबर आते हि लोगों का गांधी और खादी के प्रति अनुराग बढ़ जाता है। इस दिखावे ने खादी अर्थशास्त्र को बहुत नुकसान पहुंचया है। सच्चाई तो यह है कि खादी जीवन के जीने का ढंग हैं। खादी शरीर के साथ-साथ मन में अपनाने की वस्तु है। लेकिन खादी ग्रामोद्योग उप संचालक राघवेन्द्र शर्मा कहते हैं कि खादी अब दिखावा बनकर रह गया है। महात्मा गांधी की जन्मतिथि आते ही खादी की बिक्री बढ़ जाती है। लोगों को दिखाना होता है कि वे गांधी के सच्चे अनुयायी हैं।

                 देश के कोने कोने में खादी ग्रामोद्योग का नेटवर्क है। बावजूद इसके साल भर खादी की दुकान पर कोई पैसे वाला नहीं दिखता। दिखता वही है जिसके पास ब्रांडेड कपड़े खरीदने का सामर्थ्य नहीं है। राघवेन्द्र शर्मा का मानना है कि जब तक खादी को मन से नहीं अपनाया जाएगा तब तक खादी ग्रामोद्योग का विकास संभव नहीं है। लोग बाहर से खादी धारण तो कर लेते हैं लेकिन मन से ब्रांडेड कंपनियों के सेवक रहते हैं।

                   प्रदेश में इस समय कुल 27 खादी ग्रामोद्योग की दुकाने हैं। इन दुकानों से सरकार को कोई लाभ नहीं है। सरकार की पालिसी है इसलिए खादी ग्रामोद्योग चल रहा है। हां इतना जरूर है कि यदि खादी की दुकानों से लाभ नहीं तो नुकसान भी नहीं है। दुख इस बात का है कि लोग खादी मजबूरी में खरीदते हैं। खुशी से नहीं।

IMG_20150930_150104                 उप संचालक का कहना है कि खादी के कार्यक्रम को जिस तरह से आजीवका साधन बनाया जाना चाहिए था उस तरह का स्वरूप आज भी नहीं बन पाया है। चैनलों पर बड़ी बड़ी कंपनियों के विज्ञापन दिखाई देते हैं। लोग प्रभावित होकर उन कपड़ों को खरीदते हैं। लेकिन खादी के साथ ऐसा नहीं होता है। यहां लोग कपड़े तो खरीदते हैं लेकिन मजबूरी में। क्योंकि खादी सस्ता है। जबकि खादी में कई वेरायटियां हैं। जिनके बारे में किसी को शायद ही पता हो। यदि खादी की बिक्री बढाना है तो इसके प्रचार प्रसार में भी ध्यान देना होगा। सिर्फ छूट देने से नहीं होगा।

                   खादी ग्रामोद्योग के कर्मचारी बेहार कहते हैं कि यदि कार्यालयों में वर्दी के लिए कपड़े नहीं जाएं तो दुकान का किराया निकालना मुश्किल हो जाए। लेकिन बेहार का कहना है कि बीच के कुछ सालों में खादी के प्रति लोगों की रूझान घटी थी लेकिन अब खादी को पसंद करने वालों की संख्या बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि खादी ग्रामोद्योग सिर्फ पहनने के लिए ही नहीं बल्कि दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले सभी कपड़ों का उत्पाद करता है। ये उत्पाद थोडे खुरदुरे रहते हैं। लोगों की इस धारणा ने भी खादी के विक्रय को प्रभावित किया है। लेकिन लोगों में यह गलत धारणा है कि खादी दुकान में सुन्दर और महीन कपड़े नहीं मिलते।

                         राघवेन्द्र कहते हें कि जब तक लोग मन से खादी को नहीं स्वीकार करेंगे तब तक खादी के कपड़े सिर्फ नुमाइश बनकर रहेंगे। उन्होंने बताया कि जब तक हम खादी को हित के साथ नहीं जोड़ेंगे तब तक हम खादी के साथ न्याय नहीं कर पायेंगे।

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