जाति प्रमाण पत्र की जिम्मेदारी शिक्षकों के मत्थे मढ़ने से बढ़ी परेशानी, दस्तावेज के अभाव में वापस लौटाए जा रहे आवेदन

Shri Mi
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बिलासपुर।बिल्हा अनु विभाग राजस्व के अंतर्गत 11 जुलाई को जारी पत्र अनुसार विकास खंड कार्यालय से जाति प्रमाण पत्र हेतु शिविरों में प्राप्त 1509  आवेदनों में 1434 फार्म अपूर्ण दस्तावेजों के कारण वापस कर दिए गए हैं । और इसे स्कूल के द्वारा दस्तावेज पूरा करा कर भरे जाने के निर्देश दिए गए है।यही हाल कमोबेश हर जिले में है।अव्वल तो स्कूल शिक्षा विभाग का अमला पेचीदा फॉर्मो को पूर्ण करा ही नही सकता। राजस्व विभाग अपनी जिम्मेदारियों को स्कूल शिक्षा विभाग पर मढ़ दिया है। जिसे शिक्षक छात्रो के आर्थिक लाभ के लिए इस व्यवस्था को स्वीकार भी लिए है। शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी शिक्षक की इस दशा को समझने के बजाय और आदेशो और निर्देशो बनाते रहे है जिससे  शिक्षक समुदाय मानसिक रूप से इस कार्य के लिए तनाव में रहता है।इस बहाने स्कूल के कई मास्टर जाति प्रमाण पत्र बनाने के  लिए  स्कूलों से भी गायब हो जाते हैं। और बच्चों को प्रमाण पत्र भी नहीं मिल पाता। अनेक ईमानदार शिक्षक जाति प्रमाण पत्र के चक्कर में टारगेट पूरा करने भटकते रहते हैं। सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे

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जानकार बताते है कि शिक्षको को शिक्षकिय कार्य मे लगे रहने के लिए 2013 के सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र एवम समस्त दिशा निर्देशों पर तत्काल प्रभाव से सरकार को रोक लगा दी चाहिए जिसमें जा कहां गया था कि स्कूलों में बच्चों को जाति प्रमाण पत्र बना कर दिया जाएगा, यह कार्य राजस्व विभाग के द्वारा शिविर लगाकर स्कूलों के सहयोग से किया जाना था।

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लेकिन स्थिति इसके ठीक उलट है,क्रमशः यह कार्य शिक्षा विभाग के माथे डाल दिया गया है।सभी बच्चो के फॉर्म स्कूल टीचर भरते है,अपूर्ण जानकारी और अधूरे दस्तवेजो के  कारण अनेक फॉर्म वापस हो जाते हैं और कई रिजेक्ट हो जाते हैं केवल कुछ मात्र ही लाभान्वित हो पाते हैं। इन दिनों सबसे बड़ी बाधा जाति प्रमाण पत्र के लिए भरे गए फार्म को ऑनलाइन कर लोक सेवा गारंटी के माध्यम से सक्षम प्राधिकारी की आईडी में पहुंचाने की है जिससे अनुमोदन के बाद प्रमाण पत्र मिलता है। सरकारी स्कूलों में माध्यमिक स्तर पर अधिकांशत कंप्यूटर की सुविधा नहीं है और ना ही गांव के मिडिल स्कूलों में किसी प्रकार की नेट सुविधा। हाई स्कूल एवं हायर सेकेंडरी शालाओं में अधिकतर जगहों पर कंप्यूटर होने के बावजूद ऑपरेटर और नेटवर्क की समस्या के कारण जाति प्रमाण पत्रों के लिए आवेदनों को ऑनलाइन किया  सबसे विकट समस्या है।

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प्रशासन के डंडे के डर से स्कूल का मास्टर हेड मास्टर , प्रिंसिपल से लेकर बी.ओ. और डी. ई. ओ. स्कूली बच्चों के जाति प्रमाण पत्र बनाए जाने के प्रावधान से हलकान है और ऐसे ही दर्जनों गैर शिक्षक के कार्यों से शालाओं में पढ़ाई का स्तर दिनों दिन गिर रहा है। सरकारी स्कूल के मास्टरों का सरा समय ऐसे ही गैरशिक्षकीय कार्यो में जा रहा है।

शासन और प्रशासन को  गंभीरता से इस दिशा में सार्थक पहल करनी चाहिए ताकि जिन बच्चों को प्रमाण पत्र की आवश्यकता है उन्हें सरलीकृत तरीके से शिविर में ही शिक्षकीय प्रयोजनार्थ मैन्युअल जारी कर विद्यालय में उपलब्ध हो जाए एवम बच्चों की पढ़ाई पर विपरीत असर भी ना पड़े।

बिलासपुर के शिक्षक नेता आलोक पाण्डेय  ने इस विषय पर चर्चा में बताया कि छात्रवृत्ति गरीब छात्रो के लिए आर्थिक लाभ का विषय है। भले ही यह शासन का आदेश है। पर शिक्षक अपने स्कूल के बच्चों के खातिर करते है। ताकि बच्चों को तहसील कार्यालय, पटवारी के कार्यालय और चॉइस से सेंटरों के चक्कर लगाना न पड़े । शिक्षा विभाग को इस कार्य से मुक्त किया जाना चाहिए।

शिक्षक नेता विकास सिंह राजपूत ने बताया कि जाति प्रमाण पत्र बनाना उंसकी प्रक्रिया पूर्ण करना राजस्व विभाग का काम है औऱ इसे शिक्षा विभाग के शिक्षक कर्मचारी प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से कर रहे है।इसमें समय काफी लगता है। शिक्षक कई दिन इस प्रक्रिया में उलझे रहते है।जिससे शिक्षा व्यवस्था में व्यवधान पड़ता है।यह शिक्षा विभाग के लिए मंथन का विषय है।अब तक बच्चों के खातिर चुप है…! पर राजस्व विभाग अपनी कार्य शैली की वजह से शिक्षा विभाग के माध्यम से शिक्षको पर धीरे धीरे दबाव बना रहा है।सभी शिक्षक संघो और शिक्षक नेताओ को शिक्षक की इस गैर शिक्षकिय कार्य मे जबरदस्ती सहयोगी बनाने का विरोध करना चाहिए।

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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