बिलासपुर— भारत से अच्छा कोई देश नहीं…। भारत दिव्य भूमि है..। यहां के लोगों पर प्रकृति का भरपूर आशीर्वाद है…। प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामाजिक आर्थिक और भौतिक उत्तरदायित्व का ऋण जरूर चुकाना चाहिए। जिम्मेदारियों के साथ ऋण का भुगतान करना ही देशभक्ती की निशानी है। यह बातें नूतन चौक स्थित विशाल रामकथा वाचन के समय स्वामी चिन्मयानन्द स्वामी ने कही। स्वामी चिन्मयानन्द ने कहा कि देश का एक एक व्यक्ति को अपने समाज, धर्म, देश, मिट्टी, माता, पिता,और स्कूल का ऋण होता है। जिसने भी इन ऋणों को चुकाता है वही सच्चा देशभक्त है। इस दौरान स्वामीचिन्मयानन्द ने मर्यादा भगवान राम और लक्ष्मण के जनकपुरी आगमन पर कथा वाचन कर लोगों को गदगद कर दिया।
स्वामी चिन्मयानन्द ने कहा कि भगवान राम और कृष्ण में युग के साथ स्वभाव में भी अन्तर था। भगवान राम मर्यादा पुरूषोत्मक थे। भगवान कृष्ण को हमेशा अनुशासन का पाठ याद दिलाना होता था। भगवान राम की मुस्कुराहट से सारी समस्याएं खुद ब खुद दूर जाती हैं। जबकि कृष्ण ने समस्याओं को न केवल उखाड़कर फेंका। बल्कि विकास के नए स्वरूप का सृजन भी किया। स्वामी जी ने बताया कि कृष्ण प्रकृति के सबसे बड़े ज्ञानी और पुजारी थे। हमारा संस्कृति…हमारा धर्म प्रकृति प्रधान है। उन्होने ही बताया कि प्रकृति की सेवा में ही देवताओं का दर्शन है।
स्वामी जी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जनकपुरी भ्रमण में निकले राम और लक्ष्मण का दर्शन करने नगर की काम काज छोड़कर सड़क पर आ गयी। उनके कंचन रूप को देखकर लोगों ने समझ लिया कि यह कोई आम राजकुमार नहीं बल्कि देव गंधर्व है। जबकि महाराजा जनक ने अपने दिव्य दृष्टि से पता लगा लिया था कि जनकपुरी में सीता को व्याहने कोई राजकुमार नहीं बल्कि खुद भगवान ने कदम रखा है।
महाराज स्वामी चिन्मयानन्द ने इस दौरान सीता राम की फुलवारी भ्रमण का सचिव चित्रण किया। लक्ष्मण के बड़े भाई के प्रति सेवाभाव को बहुत ही मधुरता के साथ सबके सामने रखा। स्वामी जी ने मानव समाज की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान राम ने अवतार लेकर बताया कि मानव अपने कर्तव्यों का यदि ईमानदारी से निर्वहन करे तो वह भगवान के समकक्ष पहुंच जाता है।
इस दौरान उन्होने कई उदाहरणों को लेकर भगवान के उद्दात चरित्र पर खुलकर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि जिसने भी मानस का पूर्ण मनोभाव के साथ अध्ययन या स्मरण किया वह इंसान मानव जगत के लिए अराध्य बन जाता है।