जिला शिक्षा विभागः पर उपदेश कुशल बहुतेरे…शाला प्रमुखों को बांटते ज्ञान..अपनी ही गंदगी से छिपा रहे मुंह

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— जिले के स्कूली बच्चों को स्वच्छता की शपथ दिलाने वाला विभाग ही स्वच्छता की जंग लड़ रहा है। लड़ना क्या…बल्कि गंदगी से मुंह छिपा रहा है। मजेदार बात है कि प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान के बहुत पहले से शिक्षा प्रशान स्कूली बच्चों को हाथ धोने का पाठ प्रदेश स्तर पर करता आ रहा है। लेकिन बिलासपुर शिक्षा विभाग में यह सारी बातें महज खाना पूर्ती से ज्यादा कुछ नहीं है।
                       देश प्रदेश में इन दिनों स्वच्छता अभियान की धूम है। अच्छा खासा बजट स्वच्छता  अभियान के नाम पर खर्च किया जा रहा है। बावजूद इसके स्वच्छता अभियान की बोझ ढोने वाला बिलासपुर का जिला शिक्षा विभाग खुद अपनी गंदगी के बोझ में दबता नजर आ रहा है। स्थिति रामचरित मानस में लिखित तुलसीदास की पंक्तियों जैसी है…पर उपदेश कुशल बहुतेरे जैसी नजर आती है। बताते चलें कि जिला शिक्षा विभाग पुरानी कम्पोजिट बिल्डिंग के कई कमरों से संचालित होता है। जानकारी हो कि तीन साल पहले शासन की तरफ से पुरानी कम्पोजिट बिल्डिंग की स्वच्छता को लेकर तात्कालीन सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग गायत्री नेताम को सम्मानित भी गया था।
                           दरअसल बिलासपुर जिला शिक्षा विभाग अपनी ही गंदगी की बोझ से परेशान है। बाबजूद इसके जिले में स्वच्छ हाथ रखने के साथ स्कूलों में स्वच्छता अभियान के तहत साफ सफाई का ढिंढोंरा पीट रहा है।  कहने का मतलब जमाने को सफाई का पाठ पढ़ाने वाला विभाग खुद अपने भवन को साफ रखने में असमर्थ है। स्थिति यह है कि खुद शिक्षा विभाग के पुरूष कर्मचारी अपने ही विभाग के गंदे शौचालय के उपयोग से बच रहे हैं। लेकिन महिलाओं को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
                          जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय का शौचालय गंदगी का पर्याय है। पान की थूक, गंदा वाश बेसिन , कई रंगों में तब्दील हो चुका है। विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि मामले में कई शिकायत की जा चुकी है। लेकिन इससे ज्यादा हम कर ही क्या सकते हैं। कम्बोर्ड की तरफ देखने की हिम्मत नहीं होती है। बिना पाइप का गन्दा टॉयलेट, टूटा दरवाजा कोने कोने में गुटखे के पीक, टूटी हुई खिड़कियां, टूटा दरवाजा, बगल में भरा कबाड़ शिक्षा के शौचालय की बन चुकी है। शौचालय से उठने वाला दुर्गध जानलेवा है। लेकिन हम काम करने को मजबूर हैं। हम शिकायत तो करते हैं…अपनी पीड़ा को एक बार नहीं बल्कि दर्जनों बार कह चुके हैं…लेकिन इसका कोई अर्थ अब नहीं निकला है।
                                           स्कूल खुलने के पहलेे जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से स्कूलो में शौचालयो को स्वच्छ रखने के निर्देश दिया गया है। कोई यहां आकर देखे कि जिस विभाग ने आदेश जारी किया है वहां के शौचालय की क्या हालत है। स्वच्छता का फरमान जारी करने वाले विभाग के कार्यलय का शौचालय कितना गंदा है। कर्मचारी ने बताया कि विभाग के अधिकारी समय समय पर स्कूलो का आकस्मिक निरीक्षण करने जाते हैं। शौचालय गंदा देखकर आग बबूला हो जाते हैं। कई बार तो शिक्षकों की सामत आ जाती है। निरीक्षण के दौरान गंदगी पाए जाने पर अधिकारी स्पष्टीकरण की मांग करता है। जूबकि उसे खुद मालूम है कि विभाग के शौचालय की क्या स्थिति है। जहां गंदगी इतनी है कि उठने वाली गंध से कई कर्मचारियों को कई बार अस्पताल का चक्कर काटना पड़ा है।
                    लापरवाही इस कदर है कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय बिलासपुर में काम करने वाले कर्मचारी अब तो शौचालय का उपयोग करना ही बन्द कर दिया है। बावजूद इसके मामले को नज़र अंदाज किया जाना स्वास्थ्य को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को गंभीर चुनौती भी है।
                                जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय लगता है कि स्वच्छता की शपथ सिर्फ कागजों में ही हुई है। यहाँ आने जाने वाले शिक्षक, प्राचार्य और अन्य लोग यहाँ से स्वच्छता का क्या संदेश लेकर जाते होंगे। यह चिंता का विषय है।
    बताना जरूरी है कि बिलासपुर जिला शिक्षा विभाग से जिले के करीब 2700 से अधिक प्राथमिक शाला,माध्यमिक शाला , हाईस्कूल , हायर सेकेंडरी स्कूल आते हैं। जिला शिक्षा विभाग में करीब दर्जनों अधिकारी और कर्मचारी कार्यरत हैं। रोजाना कमोबेस इतनी ही संख्या में जिले के शिक्षकों का विभाग में आना जाना होता है। बावजूद इसके जागरूक शिक्षकों का कार्यालय शौचालय ना केवल गंदा है.बल्कि प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को ठेंगा भी दिखाते हैं।
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