जिस देश का बचपन भूखा हो……

Shri Mi
3 Min Read

caption_pranchaddhaप्राण चड्ढा।{11जुलाई विश्व जनसंख्या दिवस}आज़ादी के बाद भारत की जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ी उससे लगता है, मानो आजादी इसके लिए ही मिली थी, आज़ादी के समय 36 करोड़ थे,आज 127 करोड़ हैं। पर काफी की अक्ल ठिकाने आ गई है, जबकि बाकी को जनाधिक्य की हानि पता लगना अभी शेष है।टाइग्रेस का एक बच्चा हुआ तो भी वह् अपने जंगल का राजा बनता है और गधे के कई बच्चे हुए फिर भी सब के सब बोझ उठाते हैं ।पहले की बात और थी, संयुक्त परिवार थे, सबकी परवरिश हो जाती, अब बदलाव की गति साफ दिख रही है। छोटे परिवार सुखी परिवार का कान्सेप्ट घर कर चुका है। मगर दूर जंगल के गावों में आज भी बच्चों को भगवान की देन माना जाता है, चार पांच बच्चे वॉले परिवार आम हैं।जितनी गरीबी उतने बच्चे, गोद खाली नहीं होतीं औऱ अगला कोख में।

             
Join Whatsapp Groupयहाँ क्लिक करे

                                       bachpan_file_1मेडिकल साइंस ने औसत उम्र में इज़ाफ़ा किया,पर महंगाई और अभाव का बुरा असर कुपोषण और गरीबी के रूप में बना है। जहां शिक्षा की कमी गरीबी और जनाधिक्य वहां दिख रहा है। चीन जनाधिक्य की समस्या से निपटने एक बच्चा ही का सन्देश देश में दिया, और बढ़ती आबादी के साइड इफेक्ट से छुटकारा पा लिया, अब जब चीन में एक के बजाय दो बच्चे का आव्हान किया,पर सब दम्पतियों ने इस पर अमल नही किया औऱ एक बच्चा ही परिवार का सदस्य बन रहा है।

                                    भारत के दूरस्थ इलाके जनाधिक्य की समस्या से बलजूझ रहे हैं । उनके लिए स्कूल कम और दूर हैं। परिवार की आय कम है,बिजली,पानी की कमी है,भारत की सारी योजनाएं जनाधिक्य के भार से कुचली जा रहीं हैं। हम कैसा भारत चाहते हैं, औऱ कैसा अपना परिवार,और अपने बच्चों की परवरिश, ये हमें सोचना है।

                                      लड़के की चाह रखने वाले,ये जाने बेटी बोनस में दामाद लाती है और सदा,मां बाप की होती है, खेल कूद, और दंगल में बेटी ने ही परिवार और देश का नाम ऊंचा किया है। कुछ हैं,जो बड़े खूब बच्चे पैदा करो की वक़ालत खौफजदा करते हुए देश मे कर रहे है, वो किसीं के नहीं, ना देश के ना ही कौम के। छोटा और मजबूत परिवार, देश का आधार है,इससे इनको कोई सरोकार नहीं। उनको अनसुना करें वक्त की नज़ाकत को समझें सुदृढ परिवार बनाएं, मज़बूत देश स्वयं बन जाएगा।

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close