जेटली बीमार इसलिए पीयूष गोयल पेश करेंगे बजट, मिला वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार

Shri Mi
6 Min Read

रायपुर।केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की सेहत बिगड़ने के बाद एक बार फिर रेल मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है. पीएम मोदी की सलाह पर पीयूष गोयल को यह जिम्मेदारी दी गई है. वित्त मंत्री अरुण जेटली कैंसर की बीमारी के बाद विदेश में अपना इलाज करा रहे हैं शायद यही वजह है कि पीयूष गोयल इस साल का अंतरिम बजट पेश करेंगे. जेटली की तबियत खराब होने की वजह से अब पीयूष गोयल मोदी सरकार का अंतिम और अंतरिम बजट संसद में पेश करेंग।

Join Our WhatsApp Group Join Now

देश का बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा. हालांकि इस दौरान भी अरुण जेटली ने मंत्री बने रहेंगे लेकिन उनके पास कोई मंत्रालय नहीं होगा. खासबात यह है कि यह पहला मौका नहीं है जब पीयूष गोयल को वित्त मंत्री का अतिरिक्त प्रभार दिया गयो हो.

इससे पहले भी जब वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली अपने किडनी ट्रांसप्लांट के लिए अस्पताल में भर्ती थे तो पीयूष गोयल ने वित्त मंत्रालय का प्रभार भी संभाला था. पीएम मोदी पीयूष गोयल पर बेहद विश्वास करते हैं.

जेटली के गिरते स्वास्थ्य की वजह से ही वो बीते 9 महीने से किसी भी विदेश यात्रा से दूर थे. गौरतलब है कि साल 2014 में अरुण जेटली ने वजन कम करने के लिए बैरियाट्रिक सर्जरी करवाई थी. जेटली की पहले हार्ट सर्जरी भी की जा चुकी है

क्या है अंतरिम बजट (Interim budget 2019)

जब केंद्र सरकार के पास पूर्ण बजट (Budget 2019) पेश करने के लिए समय नहीं होता है तो वह अंतरिम बजट (Interim Budget) पेश करती है. लोकसभा चुनाव (General Election 2019) के वक्त सरकार के पास वक्त तो होता है, लेकिन चली आ रही परंपरा के मुताबिक चुनाव (Lok Sabha Elections) पूरा होने तक के समय के लिए बजट पेश करती है. हालांकि, अंतरिम बजट (Interim Budget) ही पेश करने की बाध्यता नहीं होती है लेकिन परंपरा के मुताबिक इसे अगली सरकार पर छोड़ दिया जाता है. नई सरकार बनने के बाद वह आम बजट पेश करती है.

अंतरिम बजट और आम बजट में अंतर

दोनों ही बजट में सरकारी खर्चों के लिए संसद से मंजूरी ली जाती है, लेकिन अंतरिम बजट आम बजट से अलग हो जाता है. अंतरिम बजट में सामान्यतः सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं करती. हालांकि, इसकी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं होती है. चुनाव के बाद गठित सरकार ही अपनी नीतियों के मुताबिक फैसले लेती है और योजनाओं की घोषणा करती है.

वैसे तो बजट (Budget) एक जटिल विषय है और इसे समझना मुश्किल होता है, लेकिन अगर आप इससे जुड़े कुछ खास तथ्‍यों के बारे में जानते हैं तो इसे समझना आसान हो जाएगा. जानिए बजट क्या है, बजट के प्रकार, बजट निर्माण के सिद्धांत, बजट निर्माण की प्रक्रिया समेत बजट (Budget) की पूरी कहानी…

सरकारी कर्ज (Public Debt) : सरकार द्वारा सरकारी कर्ज या सरकारी कर्ज का वितरण क्रमशः साल के दौरान लिया जाने वाला कर्ज या कर्ज का वितरण होता है. कर्ज लेने और वितरण के बीच के अंतर को सरकारी कर्ज कहा जाता है. इसको आंतरिक या बाह्य के बीच बांटा जा सकता है. आंतरिक का मतलब देश के भीतर से लिया गया कर्ज और बाह्य कर्ज गैर भारतीय स्रोतों से लिया गया कर्ज होता है.

क्रय क्षमता (Purchasing power) : इसका उद्देश्य के एक देश से दूसरे देश में खरीद क्षमता तय करना है, जो दो देशों के बीच एक्सचेंज रेट के आधार पर निर्भर होती है. विभिन्न देशों में आय के स्तर की तुलना के लिए परचेजिंग पावर पैरिटी का इस्तेमाल किया जाता है. पीपीपी से हर देश से जुड़े डाटा को समझना आसान हो जाता है.

गैर कर राजस्व (Non-tax revenue:) : सरकार को कर से इतर अन्य स्रोतों से होने वाली आय गैर कर राजस्व कहलाती है. इस मद में केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और रेलवे को दिए गए कर्ज पर मिलने वाली ब्याज और सरकारी कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड और प्रॉफिट के तौर पर मिलने वाली प्राप्तियां हैं.

राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) : सरकार को मिलने वाले कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इससे यह भी संकेत मिलता है कि सरकार को कितना कर्ज लेने की जरूरत है.

बजट घाटा (Budget deficit) : बजट घाटा सरकार को राजस्व और पूंजी खाता दोनों में होने वाली सभी प्राप्तियों व व्यय के बीच का अंतर होता है. कुल मिलाकर बजट घाटा राजस्व खाता घाटा और पूंजी खाता घाटा का योग है. यदि सरकार का राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से ज्यादा हो जाता है तो इसे राजस्व खाता घाटा कहते हैं. यदि सरकार का पूंजी वितरण, पूंजी प्राप्तियों से ज्यादा होता है तो इसे पूंजी खाता घाटा कहते हैं. बजट घाटे को जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर जाहिर किया जाता है.

गैर योजनागत व्यय (Non Plan Expenses:): यह काफी हद तक सरकार का राजस्व व्यय होता है, जिसमें पूंजी व्यय भी शामिल होता है. इसमें ऐसे सभी व्यय शामिल होते हैं, जो योजनागत व्यय में शामिल नहीं होते हैं. ब्याज भुगतान, पेंशन, राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को किए जाने वाले सांविधिक हस्तांतरण जैसे बाध्यकारी व्यय गैर योजनागत व्यय में शामिल होते हैं.

By Shri Mi
Follow:
पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
close