टूटने को मजबूर शिक्षाकर्मियों का परिवार…बनाफर ने जताया दुख…रूंधे गले से कहा…उम्मीद है मरहम लगाएगा पोर्टल

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—शिक्षाकर्मियों को पिछले 22 साल से समय पर वेतन और खुली स्थानांतरण नीति का इंतजार है। पचास हजार लोग ट्रांसफर नहीं होने से पीड़ित हैं। आखिर नेताओं और अधिकारियों को शिक्षाकर्मियों की तकलीफ का अहसास क्यों नहीं हो रहा है। यह बातें सहायक शिक्षक पंचायत कल्याण संघ छत्तीसगढ़ के नेता भूपेन्द्र सिंह बनाफर ने कही। बनाफर ने बताया कि सरकार वेबपोर्टल बनाने की बात कह रही है। देखते हैं कि वेवपोर्टल से क्या कुछ फायदा होता है। अच्छा हो कि पोर्टल बनाते समय सरकार शिक्षाकर्मियों के भी विचारों को सुने।
                          भूपेन्द्र बनाफर ने कहा कि मंहगाई ने कमर तोड़ दी है। स्थानांतरण नीति नहीं होने से शिक्षाकर्मियों के परिवार का जीना मुश्किल हो गया है। खासकर सहायक शिक्षकों को कम वेतन पर परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। जो सहायक शिक्षक घर परिवार से दूर अन्य जिलों में नौकरी कर रहे हैं उन्हें दोहरी जिम्मेदारियों से गुजरना पड रहा है।  इसके चलते घर खर्च चलाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
            भूपेन्द्र ने बताया कि ज्यादातर कम वेतन पाने वाले सहायक शिक्षक घर से बहुत दूर नौकरी पर हैं। एक तरफ उन्हें घर को संभालना पडता है। दूसरी तरफ जिस स्थान पर रहते हैं वहां का भी खर्च उठाने को मजबूर होना पड़ता है। ऐसे में कम वेतन पाने वाले सहायक शिक्षकों को परिवार चलाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुकिन हो गया है।
                   बनाफर ने कहा कि यदि खुली स्थानांतरण नीति लागू हो जाए तो सबसे ज्यादा फायदा कम वेतन पाने वाले सहायक शिक्षकों को होगा। शिक्षक अपने घर परिवार के पास रहेंगे। दोहरे खर्च से भी उन्हें छुटकारा मिल जाएगा।
              दुक जाहिर करते हुए बनाफर ने कहा कि सरकार ने शिक्षाकर्मयों को शासन का सेवक मानने से इंकार कर दिया है। शासन का तर्क है कि हमारी नियुक्ति जनपद, जिला पंचायत से हुई है। बताते हुए आंखे भर आती है कि कई सहायक शिक्षक खुली स्थानांतरण  नीति का स्थानांतरण करते रिटायर्ड हो गए। कई लोग तो इस दुनिया से ही चले गए। काश सरकार हमारी पीड़ा को कभी समझ तो पाती। सरकार हमारे दुख को समझे और नियमित  शिक्षको की तरह से शिक्षाकर्मीयो को सुविधाएं दे।
             बनाफर के अनुसार 50,000 शिक्षाकर्मी खुली स्थानांतरण नीति नहीं होने से परेशान हैं। चूंकि आजिविका का साधन मात्र शिक्षाकर्मी पद है। इसलिए  नॉकरी छोड़ने से भी डरते हैं। बावजूद इसके पचास हजार से अधिक  शिक्षाकर्मियों को आज भी अच्छे दिन का इंतजार है । लेकिन शिक्षाकर्मियों की जिन्दगी में अच्छे दिन बिना अधिकारियों और नेताओं के सहयोग से संभव नहीं है। जब तक जिम्मेदार लोग शिक्षाकर्मियों को परिवार का हिस्सा नहीं समझेंगे तब तक न्याय मिलना नामुमकिन है। तब तक शिक्षाकर्मियों का संयुक्त परिवार घुट घुट कर जीता रहेगा। बिखरने के लिए मजबूर रहेगा।
                  शासन ने आदेश जारी किया है कि  शिक्षको के स्थान्तरण का वेब पोर्टल बनाया जाएगा। लेकिन स्वरूप कैसा होगा अभी तक स्पषट नही है। बनाफर ने कहा कि अच्छा होगा कि शासन पोर्टल बनाने से पहले शिक्षाकर्मियों से भी विचार विमर्श करें। ताकि तकनीक और स्थान्तरण की आस लगाए पीड़ित शिक्षाकर्मयों के लिए पोर्टल वरदान साबित हो।
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