ठाठापुर’ में ‘भक्ति’ ‘मरवाही’ में ‘शक्ति’

Shri Mi
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20160621_135614पेंड्रा(शरद अग्रवाल)। अपनी ‘ढपली’ अपना ‘राग’ की तर्ज पर जो​ कुछ भी देखने सुनने और समझने को मिला तो वह है विगत 6 जून से कल 21 जून की उन दो जनसभाओं के दौरान जिसमें सामान्य लोगों को उनकी ‘उम्मीद’ के अनुसार तो कुछ हासिल नहीं हुआ पर जहां 6 को छत्तीसगढ़ की राजनीति में अलगाव से एक नये सूरज का उदय हुआ तो वहीं 21 जून को जबकि यह दिन साल का ‘सबसे बड़ा दिन’ था इस दिन दो ग्राम पंचायतों ‘ठाठापुर’ और ‘मरवाही’ में प्रदेश के राजनैतिज्ञों का जमावड़ा था तो प्रदेश पर सही मायने में इसे सत्ता हासिल करने के लिये पहली कोशिशों का दिन कहा जा सकता है।

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                IMG-20160621-WA0012ठाठापुर के पहले कोटमी में जहां एक उम्मीद थी कि यहां कम से कम छोड़ी जा रही पार्टी के उन दो दिग्गज नेताओं के खिलाफ तो कुछ ​न कुछ ‘कड़वा’ बोला जाएगा जिनके पद तो अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के हैं पर रिश्तों में ये मां बेटे हैं। खैर, मां—बेटे के खिलाफ नहीं बोलना तो समझ में आता है पर जिनके कारण ‘परित्याग’ को मजबूर होना पड़ा उनके खिलाफ भी सुनने को कोटमी के साथ ही साथ प्रदेश की जनता इसलिये उत्सुक थी ​क्योंकि जनता जानना चाह रही थी वे कारण जिनकी वजह से ‘अलगाव’ हुआ। मनभेद से मतभेद तक जो कुछ भी हुआ उसका परिणाम ही हम ‘सर्ववर्ग के लोगों को के हित’ और ‘सर्वधर्म के लोगो के सुखद’ संदेश के रूप मे आने वाले समय में दिखाई देगा। ठाठापुर के ठाठ तो कल देखते बनते रहे होंगे जहां एक ऐसा नेता जिसकी प्रदेश में कही भी आयोजित होने वाली सभा में भीड़ आनी सामान्य सी बात होती है, अपनी पार्टी  के बरहों संस्कार (एक ऐसा संस्कार जिसमें नवजात बच्चे का नामकरण होता है) के आयोजन के जरिये ठाठापुर को पार्टी के नामकरण के स्थान के रूप में आने वाले समय में देखे जाने का गौरव दिलाया।

                ठाठापुर के ठाठ पहले से भी कायम है जहां अमनपसंद प्रदेश के मुखिया रमन के गृहग्राम होने का गौरव हासिल है। अपने शीर्षक में आउं तो ठाठापुर में भक्ति कहने के पीछे वजह यह कह सकता हूं कि ठाठापुर में पार्टी प्रमुख के ‘परिवार’ के प्रति शुरू से ही रूझान रखने वाले लोगों का जमावड़ा नयी पार्टी के गठन के बाद ‘नवागंतुकों’ से कहीं ज्यादा रहा। नयी उम्मीदों, नये सपनों को लिये नयी पार्टी के नाम की उत्सुकता और नामकरण संस्कार के ऐतिहासिक पल का गवाह बनने पहुंचे हजारों लोगों के चेहरे पर खुशी और आत्मविश्वास भी गजब का था। हम भले ही मरवाही में रहे हों पर नजर ‘ठाठापुर’ में भी बराबर की थी। यह कोई मेरा ही नहीं बल्कि जोगी क्षेत्र के हर बासिंदों के साथ ही ‘संकल्प’ लेने पहुंचे हर उस व्यक्ति का था जो कि चाहे संकल्प पार्टी के ‘सदस्य’ के रूप में पहुंचा था या फिर वहां ‘देखने सुनने’ पहुंचा हो अथवा अपने दायित्वों का निर्वहन करने पहुंचा कोई भी ​मीडियाकर्मी।

                    ठाठापुर में जाने वाले लोगों में मरवाही के भी कुछ नामीगिरामी चेहरे थे जोकि अपनी निष्ठा दिखलाते चले आ रहे हैं और उनकी निष्ठा नवगठित पार्टी के लिये निश्चित ही संबल प्रदान करने वाली होगी। नववगठित पार्टी के मुखिया परिवार के प्रति पूरे प्रदेश के लोगों की यही निष्ठा सही मायने में ‘राजनैतिक भक्ति’ है जिसे सामान्य तौर पर समर्थक का तमगा दिया जा सकता है। छत्तीसगढ़ की जनसंख्या बढ़ रही है इसकी चिंता किसी को हो या न हो पर ठाठापुर में ज्यादा ‘जन’ पहुंचे या फिर मरवाही में यह चिंता जरूर उनके—उनके लोगों को सताये जा रही थी। मसलन हमसे भी बार बार फोन पर संपर्क कर यही जानने की कोशिश की जा रही थी कि मरवाही में कितनी मुंडी पहुंची। ‘संतोष का प्रसाद’ हमने भी खूब बांटा जो जितने से संतुष्ट हो उसको उतना प्रसाद बांटा।  बहरहाल, मरवाही में बड़े आयोजन के पंडाल में भी ठाठापुर की बात मरवाही के ​कमिया के कद का अहसास कराने के लिये काफी है।

                दूसरी ओर, संकल्प ने सबसे पहले यदि कुछ काम किया तो वह है मरवाही के नाम बिगाड़ने का। मरवाही को ‘सरेआम’ मंच के मुख्य पंडाल ‘मारवाही’ लिखा गया जबकि हर नेता के जुबानी संबोधन पर सच्चाई के रूप में मरवाही ही उच्चारित होता रहा। लिहाजा जब नाम में ‘मात्रा’ बढ़ाई गयी तो फिर सभा समाप्ति होने पर उपस्थित जनों की ‘मात्रा’ बढ़ाये जाने का अहसास तब हुआ जब संकल्प समर्थकों ने सभा समाप्त होने के बाद अपना आंकलन हमसे ‘जस्ट डबल’ बतला दिया। खैर हम गलत या ​वो सही या फिर वो गलत और हम सही इससे हासिल तो कुछ नहीं होने वाला लिहाजा इस गिनती को सुनकर—सुनाकर तो खतम कर दिया पर इसके बाद तो पूरी चिंता इसी बात की बनी रही कि गिनती हमने गलत सीखी या अब हमे गलत सिखला रहे हैं।

                संकल्प का आयोजन गौरवशाली इस बात को लेकर था कि यहां उस दल के प्रदेश से संबंधित अधिकांश नामचीन चेहरे मंच और आसपास मौजूद रहे जोकि मरवाही जैसे बड़ी पहचान लिये एक सामान्य से गांव के ​गौरव को बढ़ाने वाला है। मरवाही की सभा में एक ‘शक्ति’ दिखाये जाने का अहसास सियासी गलियारे में चर्चा का विषय होता रहा कि ‘मरवाही के कमिया’ के जाने के बाद भी ‘हम’ संकल्प लेने आए लोग कमतर नहीं हुये। हालांकि, दूसरी शक्ति मंच में और मंच के निकटतम आने और अपनी उपस्थिति तथा पहचान दर्ज कराने वालों की भी दिखाई ​दी पर इस शक्ति से संकल्प के मुखियाजनों को कोई फर्क अंतिम तक पड़ता नहीं दिखाई दिया। जैसा कोटमी में ​कमिया ने परहेज किया वैसे ही मरवाही में इन संकल्पियों ने किया। वह ऐसे कि कोटमी में कमिया ने सीधा निशाना लगाने से परहेज किया तो यहां तो ‘जोगी’ शब्द का उच्चारण तक किसी भी नेता ने नहीं किया।

                 मंच पर अलग अलग लोगों से जब मरवाही—संकल्प में आने का अनुभव और प्रतिकृया लेने पहुंचे तो पार्टी मुखिया, पूर्व वजीर, विरोधी दल के नेता सबने अपने अपने शब्दों में पार्टी के हित को ध्यान में रखते हुये प्रतिकिृया तो दिया पर दिल्ली से आए महानुभाव ने तो मुंह पर उंगली ही रख ली उनका सीधा इशारा था कि ‘मरवाही के बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा और मैं चुप ही रहूंगा’। हालांकि मरवाही की धरती पर किसी भी नेता के द्वारा अलगाव करने वाले कमिया के बारे में कुछ भी नहीं कहना इस बात का स्पष्ट संकेत दे रहा था कि पूरी पार्टी ने पहले से तय कर लिया था ‘न नाम लेंगे न बदनाम करेंगे’। संगठन में शक्ति है को संकल्प शिविर में पहुंची भीड़ चरितार्थ कर रही है पर चुनावी मोड़ में छत्तीसगढ़ की सियासत अभी से चुनाव जैसे माहौल का अनुभव करा रही है। ठाठापुर की भक्ति पर मरवाही की शक्ति भारी पड़ी अथवा कमजोर पर एक बात तो तय से ठाठापुर और मरवाही से होने वाले ये आगाज आने वाले दिनों मे कई नये राजनैतिक समीकरणों को जन्म देगी।
और अंत में:—
     अ से अमित अ से अजीत, नित चल रहे नये सियासी चाल
     ब से बघेल क से कांग्रेस, सब भुलाकर उबरना चाहे जोगी काल।

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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