दबाव बनाकर रीलिविंग आदेश….नहीं किया दीक्षांत समारोह की परवाह…कोर्ट आदेश को भी नहीं मााना…मतलब दाल में काला

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— संयुक्त संचालक कोष लेखा एवं पेंशन विभाग में दो वरिष्ठ अधिकारियों के बीच कुर्सी को लेकर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। रोज नए मामले सामने आ रहे हैं। नई जानकारी के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्लाय के वित्त अधिकारी भावेश दुबे को नया मामला सामने आया है। पहले तो उन्होने आनन फानन में दबाव डलवाकर अपने आपको रीलिव करवाया। इसके पहले रीलिव होेने की जल्दबाजी में उन्होने कुलपति के साथ अभद्र व्यवहार भी किया है। अब कोर्ट के आदेश को भी उन्होने मानने से इंकार कर दिया है। कुल मिलाकर राजेश श्रीवास्तव और भावेश दुबे के बीच विवाद लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
                 मालूम हो कि वित्तिय विभाग ने स्थानांतरण सूची जारी किया। सूची में कई अधिकारियों को इधर से उधर किया। इसी क्रम में अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय के वित्त अधिकारी का स्थानांतरण कोष लेखा एवं पेंशन विभाग में बतौर अधिकारी किया गया। जबकि राजेश श्रीवास्तव का स्थानांतरण विश्वविद्लाय के लिए किया गया। राजेश श्रीवास्तव ने स्थानांतरण के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती दी। उन्होने कहा कि पिछले कुछ सालों तक विश्वविद्यालय में कई सालों तक डेपुटेशन पर सेवाएं दे चुका हूं। डेपुटेशन पर भेजने से पहले सहमति का होना जरूरी है। बावजूद इसके उनसे सहमति नहीं ली गयी। और डेपुटेशन पर जाने का इच्छुक भी नहीं हूं।
                     राजेश श्रीवास्तव की याचिक को हाईकोर्ट ने ना केवल स्वीकार किया। बल्कि स्थानांतरण को निरस्त करते हुए राज्य शासन को भी जवाब देने नोटिस जारी किया। मामले की जानकारी भावेश दुबे के वकीलों को भी दी गयी। बावजूद इसके कोर्ट के निर्देश को दरकिनार कर भावेश ने जबरदस्ती कार्यभार लिया। कार्यभार लेने के बाद उन्होने एक पल के लिए भी कमरा खाली नहीं किया। यदि किया तो कमरे के सामने ताला जड़ दिया। ताकि राजेश श्रीवास्तव उनकी कुर्सी पर कब्जा ना कर लें।
               विश्वविद्यालय से मिली जानकारी के अनुसार भावेश दुबे का स्थानांतरण संयुक्त संचालक कोष लेखा एवं पेन्शन विभाग में हुआ। लेकिन विश्ववदियालय चाहता था कि उन्हें दीक्षान्त समारोह के बाद कार्यभार मुक्त किया जाए। लेकिन उन्होने रायपुर से ना केवल लगातार दबाव बनवाया बल्कि विभाग से एक पत्र भी जारी करवा दिया।
               विश्वविद्यालय प्रबंधन ने बताया कि 6 सितम्बर को जारी पत्र में कहा गया कि भावेश दुबे को तत्काल कार्यमुक्त किया जाए। जबकि प्रबंधन चाहता था कि उन्हें दीक्षान्त समारोह के बाद रीलिव किया जाए। दीक्षान्त समारोह में महामहिम राज्यपाल शिरकत करने वाली थी। प्रदेश और देश के व्हीआईपी भी समारोह में शिरकत कर रहे थे। लेकिन उन्होने प्रबंधन पर ना केवल लगातार दबाव बनवाया। बल्कि कुलपति के साथ अभद्र व्यवहार भी किया।
                       सूत्रों की माने तो कार्यभारमुक्त होने की जल्दबाजी में विश्वविद्यालय के तत्तकालीन वित्त अधिकारी ने ठीक से चार्ज भी नहीं दिया। जरूरी था कि भावेश दुबे कैशबुक का काम पूरा काम खत्म कर चार्ज दें। लेकिन उन्होने गंभीरता को नहीं समझते हुए कैशबुक को अधूरा दिया। आनन फानन मे दबाव बनाकर बिना विधिवत प्रभार दिए कार्यालय छोड़ दिया।
               अटल बिहारी विश्वविद्यालय प्रबंधन ने बताया कि  दीक्षांत समारोह की बेला मे भावेश ने कुलपति के साथ दुर्व्यवहार भी किया। चेकबुक का भी प्रभार नहीं दिया। वित्त विभाग की तिजोरी और फिक्स डिपाजिट में लगभग 50 करोड़ रूपए हैं। अभी तक तत्कालीन वित्त अधिकारी भावेश दुबे ने प्रबंधन के निर्देश पर विधिवत प्रभार शैलेंद्र दुबे सहायक कुलसचिव को नहीं दिया है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आने वाले समय में कोई वित्तीय परेशानी खड़ी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
                              जाहिर सी बात है कि भावेश दुबे की विश्वविदायलय से जल्दबाजी में रीलिव होना और कोर्ट के आदेश को नहीं मानने के पीछे कोई ठोस वजह तो होगी। फिलहाल इसका खुलासा भी जल्द हो जाएगा। यह भी जानकारी हो जाएगी कि आखिर उन्होने दबाव डलवाकर अपने आप को रीलिव क्यों करवाायाय़ यह जानते हुए भी कि 14 सितम्बर को विश्वविद्यालय का दूसरा दीक्षांत समारोह था । बावजूद इसके जिम्मेदार अधिकारी खुद को जल्दी क्यों रीलिव करवाना चाहता था। जबकी भावेश दुबे सात दिन बाद भी रीलिव हो सकते थे। इसका मतलब है कि दाल में जरूर कुछ काला है।
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