दिल से काम करें तो ब्रह्माण्ड से भी मिलती है मदद

Chief Editor
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बिलासपुर ।  विचारमंच की संगोष्ठी में मधुसूदन अग्रवाल (अहमदाबाद) ने रविवार को  ‘दिल की सुनें’ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया।

उन्होने  कहा कि जब आप दिल से कोई काम करना चाहते हैं तो पूरा ब्रह्मांड मदद करता है। धन कमाना या व्यापार करना मेरा स्वभाव नहीं रहा इसलिए मैंने उसे नहीं चुना बल्कि ऐसे कार्य किए जिनसे आंतरिक प्रसन्नता हासिल करने में मुझे मदद मिली। मेरी पढ़ाई और दक्षता मेरी आजीविका बन सकती थी ।लेकिन ज़िंदा रहना सब कुछ नहीं, जीवित रहना महत्वपूर्ण है। जीवित रहना यानि सार्थक जीवन व्यतीत करना, खुद को बदलना और सत्य की खोज करना है। मेरा अतीत जो भी था, मैंने अपने दिल की बात सुनी और अपना वर्तमान व्यवस्थित कर रहा हूँ।

मधुसूदन अग्रवाल ने  आगे कहा कि   सबसे बड़ी चुनौती है- देने का भाव विकसित करना। पेड़ में फल होते हैं, फल देते समय वह पात्र-कुपात्र का चयन नहीं करता। वह केवल देने में विश्वास करता है। इसी प्रकार अगर हम मदद करते समय न्यायाधीश बन जाएंगे तो हम सबकी मदद नहीं कर पाएंगे और प्रेम विकसित नहीं होगा। जीवन देने में ही है, हो सकता है कि बुद्धू बन जाएँ, बुद्धू बनकर बुद्ध बनेंगे। जब हम सत्य से जुड़ेंगे तब प्रेम से जुड़ेंगे। सबसे मैत्रीभाव बनाना ही जीवन का लक्ष्य है, मैं उसी ढंग से दूसरे के हृदय में प्रवेश कर सकता हूँ। जब हम किसी से मिलें तो नमक की तरह मिल जाए। सब्जी-दाल में नमक रहता है तो उसकी उपस्थिति का भान नहीं होता लेकिन जब नमक नहीं रहता तब उसका तुरंत ख्याल आता है। मित्र ही इसी तरह बनना है कि आपका होना महत्वपूर्ण न लगे पर आपका न होना आपकी याद दिलाए। इसी ढंग से स्वयं का व्यक्ति-निर्माण होता है।

डेढ़ घंटे तक चले कार्यक्रम में बहत्तर प्रबुद्धजनों ने अपनी उपस्थिति दी। मनहर स्वर्णकार, प्रथमेश मिश्रा, कमलेश मिश्रा, जफर अली, सत्यप्रकाश चतुर्वेदी और किशोर वैभव अभय (रायपुर) ने प्रश्नोत्तर सत्र में भाग लिया।

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