बिलासपुर– जीवन चार पहिय़े पर टिका है। सत्य,पवित्रता,दान और आचरण.. सत्य कभी हार नहीं सकता..यदि ऐसा होता तो दुनिया ही खत्म हो जाएगी। सत्य को कलयुग भी नहीं डिगा सकता..। आज यदि दुनिया टिकी हुई है तो उसके केन्द्र में सत्य का वास है। चाहे कोई भी क्षेत्र हो सत्य का मूल्य है। जिस दिन सत्य पर आंच आएगा..उसी दिन दुनिया का स्वरूप बिगडेगा। यह बातें व्यास कथा संत अतुल महराज ने श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन कही।
परसदा स्थित भारतीय जनता पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के निवास स्थान पर आयोजित कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने कपिल अवतार,शिव शक्ति और ध्रुव चरित्र का रसपान किया। अतुल कृष्ण महाराज ने कहा कि कलियुग की उम्र बहुत छोटी है। मात्र चार लाख तीन हजार की उम्र है उसकी। इस युग की सबसे बड़ी विशेषता भगवान को स्मरण करने से ही सारे पाप धुल जाते हैं। उन्होंने कहा कि कलियुग ने सत्य के अलावा जीवन के तीन स्तम्भ को खोखला कर दिया है। लेकिन सत्य आज भी अपने स्थान पर टिका हुआ है। जिस दिन सत्य प्रभावित होगा उसी दिन जीवन में उलट पलट का नजार देखने को मिलेगा।
कथा व्यास संत ने कहा कि परीक्षित अपना बाल्यकाल से ही तेज और प्रतापी थे। पहली बार जब वह नाना कृष्ण के गोद में गए उनके ही बनकर रह गए। भगवान का उन पर भरपूर आशीर्वाद था। पूरी दुनिया में परीक्षित का राज्य था। बैल की कथा को सबके सामने रखते हुए अतुल कृष्ण ने कहा कि एक किसान बैल की तीन टांग को तोड़ दिया। परीक्षित के उग्र होने पर उसने बताया कि वह कलियुग है। इस युग में पाप कर्म का बोलबाला रहेगा। परीक्षित ने कहा कि तुम्हें अपने राज्य में ऐसा करने नहीं दूंगा। चूंकि परीक्षित का राज्य पूरी दुनिया में था। इसलिए उसने परीक्षित से कहा कि मैं रहूं कहा। परीक्षित ने उसे हिंसा,व्यभिचार,मदिरा और असत्य जगहों में रहने का निर्देश दिया। साथ ही राजा ने कहा कि जो सोना गलत तरीके से हासिल किया गया हो वहां भी कलियुग का वास होगा।
अतुल कृष्ण महराज ने बताया कि परीक्षित की यही दानवीरता भारी पड़ी। सोने के मुकुट में कलियुग ने अपना निवास बनाया। जो परीक्षित के मौत का कारण भी बना। कथा व्यास संत ने बताया कि जीवन में जो सत्य की राह पर चलता है उसे परेशानी तो सकती है लेकिन अंत में जीत उसी की होती है। भगवान हमेशा सत्य के साथ रहता है। जो भगवान को सच्चे मन से स्मरण करता भगवान उसके साथ होता है।
कथा व्यास संत ने बताया कि आज हमारी दिनचर्या बिगड़ चुकी है। पाश्चात्य सोच ने हमारे जीवन के आधारभूत सोच को बदल दिया है। एक समय था कि मां अपने आंख के सामने अपने परिवार को भोजन कराती थी। लेकिन आज हम हर घर में पाते हैं कि भोजन खड़े होकर पकाया जा रहा है। पति बच्चे ,बड़े बुजुर्ग पीठ के पीछे खाना खाते हैं। जब तक मां की आंख परिवार के सदस्यों और उसकी थालियों पर नहीं पड़ता है घर के सदस्य पुष्ट नहीं होते हैं। अपवित्रता ने घर में स्थान बना लिया है। नकल ने हमें सत्यमार्ग से दिग्रभ्रमित किया है। यह भ्रम हमें अपने कुपथगामी बना दिया है।