बिलासपुर। जगन्नाथपुरी गोवर्धन मठ के जगद्गुरू शकराचार्य स्वामी श्री निष्चलानंद सरस्वती जी महाराज दो दिवसीय प्रवास में बिलासपुर आ रहे है। वे 27 व 28 मार्च को आसमां एनक्लेव, सकरी में डाॅ. सी.वी.रामन् विष्वविद्यालय के कुलसचिव षैलेश पाण्डेय के निवास में रहेंगे। आसमां एनक्लेव में 27 मार्च की षाम 6 बजे पादुका पूजन होगा और षाम 6.30 बजे से धर्म सभा होगी। जिसमें उनका दिब्य उद्बोधन होगा। इस अवसर पर पाण्डेय परिवार के अलावा अखिल भारतीय पीठ परिशद,आदित्य वाहिनी व आनंद वाहिनी के सदस्य उपस्थित रहेंगे।
जगद्गुरू शकराचार्य जी के आगमन के बारे में जानकारी देते हुए शैलेश पाण्डेय ने बताया कि शकराचार्य जी का छत्तीसगढ़ से विषेश लगाव है और खासकर बिलासपुर के लोगों को उनका आषीर्वाद का सौभाग्य मिलता रहता है। षहर के लिए बड़े सौभाग्य की बात है कि शकराचार्य जी दो दिवसीय प्रवास में बिलासपुर आ रहे हैं। दो दिनों तक सभी को उनका आषीर्वाद व सानिध्य प्राप्त होगा। इस दौरान 27 मार्च की षाम 6 बजे आसमां एनक्लेव में चरण पादुका पूजन किया जाएगा। इसके बाद धर्म सभा होगी,जिसमें उनका दिव्य उद्बोधन होगा। इस अवसर पर षहर और आसपास के अंचल के लोग षंकराचार्य जी के दर्षन का लाभ लेने और दिव्य उद्बोधन श्रवण करने के लिए पद्वारें। इसके लिए पूरी व्यवस्था की जा रही है।
शिक्षा नीति में अध्यात्म निहीत हो-शैलेश
शैलेष पाण्डेय ने बताया कि युवाओं के जीवन के सर्वागीण विकास के लिए जरूरी है कि शिक्षा नीति में अध्यात्म निहित होना चाहिए। जिस शिक्षा नीति में अध्यात्म नहीं है उस षिक्षा की कोई सार्थकता नही है। उन्होंने कहा कि षिक्षा का उद्देश केवल अर्थ और काम तक नहीं है। यदि कोई संस्था सिर्फ इसलिए ही शिक्षा देती है तो वह निरर्थक है। श्री पाण्डेय का कहना है कि गणित, भौतिकी और रसायन सहित सभी विशय के पौराणिक और आध्ुानिक महत्व का युवाओं को सिंद्वात एवं समीकरण आज बताए जा रहे हंै, उनका पुराणों में स्पश्ट उल्लेख है। बस उसे समझने की जरूरत है। श्री पाण्डेय ने बताया कि वाणी की प्रधानता विद्या से होती है। मूक व्यक्ति हाथ-पाव और भाव भंगिमाओं से भाव व्यक्त करता है यह कला है। स्वार्थ के साथ परमार्थ अतिआवष्यक है और परमार्थ के साथ स्वार्थ। इसी तरह कला के साथ विद्या और विद्या के साथ कला जरूरी है। युवाओं का धर्म है कि वह अपने माता-पिता और गुरूओं का देवतुल्य सम्मान करें। उन्होने कहा कि माता-पिता के सेवा के बिना इस संसार से मुक्ति नहीं मिल सकती। पाण्डेय का कहना है कि षिक्षण संस्थानों को पितामह भीष्म के अनुसार पालन करना चाहिए। भीश्म ने आदर्श शिक्षा और शिक्षण संस्थानों का उल्लेख किया हैं। आज के विष्वविद्यालयों को ऐसे ही आदर्षों का पालन करना चाहिए।