नवोदित कवियित्री ने बटोरी ताली.. विजय ने बांधा समा..व्यंग्यकार राजेन्द्र मौर्य ने व्यवस्था को जमकर कचोटा

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर—भारतेंदु साहित्य समिति के बैनर तले मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। कार्यक्रम में जिले के नामचीन कवियों ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ गीतकार बुधराम यादव और अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेन्द्र मौर्य ने जमकर तारीफ की।
 
                 भारतेन्दु साहित्य समिति के बैनर तले जिले के नामचीन कवियों ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का आयोजन उस्लापर स्थित साईआनन्दम में किया गया। काव्य गोष्ठी में उपस्थित कवियों ने बचपन विषय पर शानदार अभिव्यक्ति दी।
 
                 भारतेन्दु साहित्य संगठन के सचिव वरिष्ठ गीतकार विजय तिवारी ने “मस्तक का चंदन बन जाए लगी धुल जो पांव में, मेरा बचपन मुझे बुलाए कुछ देर ठहर तो गाँव में” गीत पढ़कर गोष्ठी को उंचाई तक पहुंचाया। बुधराम यादव ने “सुंदर निर्मल, पावन होता है, वो बचपन होता है” का पाठ कर लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया।  राघवेंद्र धर दीवान ने “बचपन दुनियादारी से  अनजान, शिशु समान बचपन” शीर्षक की रचना पाठ कर काव्य गोष्ठी को सफल बनाया।
 
           सुनीता वर्मा ने गाय को माता चाँद को मामा बिल्ली को मौसी कहते थे, कुछ ऐसा था अपना बचपन खुशमिजाजी में हम जीते थे” गीत का पाठ किया। गजलकार रविंद्र पाण्डेय ने “बचपन के दिन मामा के घर” पूर्णिमा तिवारी ने “बचपन तुम फिर लौट आओ न” नितेश पाटकर ने “जीवन की तृष्णा के समक्ष बचपन विस्मृत कर जाते हैं का पाठ कर गोष्ठी को नई ऊंचाई तक पहुंचाया।
 
              गोष्ठी में नवोदित कवियित्री प्रिंसी दुबे ने भी पाठ किया। उन्होने अपने कविता के माध्यम से बताया कि “अब कहाँ वो दिन हमे हैं देखने को मिलते, वो दौर था बचपन का जब की है ये कहानी” ।  प्रिसी ने जमकर तालियाँ बटोरी।  गोष्ठी में रविन्द्र पाण्डेय, सत्येन्द्र त्रिपाठी, हरबंश शुक्ल, विजय गुप्ता, रामकुमार सोनी,  प्रवेश भट्ट, रश्मिलता मिश्रा, सुनीता वर्मा, मारिया समीन अली, पूर्णिमा तिवारी, धनेश्वरी सोनी, पूर्णिमा शुक्ला समेत कई कवियों ने गीत के माध्यम से बचपन पर अपना दृष्टि और दृष्टिकोण को साझा किया। आभार प्रदर्शन संस्था के प्रचार सचिव नितेश पाटकर किया।
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