बिलासपुर–हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए कहा है कि जातिगत दुर्व्यवहार के मामले में न्यायिक दंडाधिकारी को सीधे संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है।
मालूम हो कि रायपुर स्थित राजकुमार कालेज कैम्पस में रहनेवाली अनुसूचित जाति की महिला आशा माहिंकर ने कैंपस में ही रहनेवाली अर्चना सप्रे के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में जातिगत दुर्व्यवहार करने की शिकायत की थीय़ कोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए पिछले दिनों महिला के नाम समंस जारी किया था। इसे सेशंस कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सेशंस कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया था।
दोनों कोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए अर्चना सप्रे ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए कहा है कि जातिगत दुर्र्व्यवहार जैसे मामलों के लिए प्रत्येक जिले में स्पेशल एट्रोसिटी कोर्ट की स्थापना की गई है। लिहाजा ट्रायल कोर्ट और सेशंस कोर्ट का आदेश सही नहीं है।