नोट वापसी का दंगलः किसानों के बैंक को भूल गयी सरकार

BHASKAR MISHRA
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SAHKARITA_GRADE_VISUAL 003बिलासपुर—सबका साथ सबका विकास की बात करने वाली वाह रे भारत सरकार…पांच सौ और एक हजार नोट बदलो अभियान में केन्द्रीय सहकारी बैंक को राजपत्र में शामिल करना भूल गयी….सरकारी पत्र में सभी बैंकों को तो शामिल किया गया …आम आदमी में विश्वास के प्रतीक केन्द्रीय सहकारी बैंक को मुहिम से दूर रखा गया। जानकारों का मानना है कि केन्द्रीय सहकारी बैंक के साथ हमेशा से दोयम व्यवहार किया गया…इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है। सरकार ने गरीबों और किसानों के बैंक को ठीक उसी तरह किनारे लगा दिया…जैसे गरीबों और किसानों को चुनाव के बाद किनारे लगा दिया जाता है। मलाई खाने के लिए कोई दूसरा सामने आ जाता है।

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                                   भारत सरकार के राजपत्र पत्र में देशी,विदेशी,सरकारी, गैर सरकारी,अपेक्स समेत छोटे, मझोले और बड़े बैंकों को नोटों के दंगल में शामिल किया गया है। लेकिन देश के सर्वाधिक क्षेत्रों में प्रभाव रखने वाले केन्द्रीय सहकारी बैंक को मुहिम से दूर रखा गया है। जानकारों में चर्चा का विषय है कि आखिर ऐसा क्यों किया …। यह जानते हुए भी कि देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला केन्द्रीय सहकारी बैंक…आधे से अधिक भू-भाग को सीधे सीधे प्रभावित करता है।

                                             सहकारिता के क्षेत्र में केन्द्रीय सहकारी बैंक का अपना गौरवपूर्ण इतिहास है। किसानों की तरह ही इसकी नीतियां भी सरल और सहज हैं। किसानों के अलावा रोज कुआं खोदकर प्यास बुझाने वाले लोग इसके खाताधारक है। केन्द्रीय सहकारी बैंक दूरस्थ गांव के अंतिम घर के दरवाजे को अच्छी तरह पहचानता है। जब भी देश और गरीबों के विकास की बात होती है सबसे पहले केन्द्रीय सहकारी बैंक ही मदद के लिए हाथ बढ़ाता है।बावजूद इसके नोटों के चुनावी दंगल में किसानों के बैंक को सरकार ने भूला दिया।

                           भारत में केन्द्रीय सहकारी बैंक के करीब साढ़े तीन सौ शाखाएं हैं। उत्तर प्रदेश समेत भारत के कमोबेश ज्यादातर राज्यों में केन्द्रीय सहकारी बैंक को विश्वास का प्रतीक माना जाता है। छत्तीसगढ का किसान और गांव गरीब के लोगों की भी पहली पसंद केन्द्रीय सहकारी बैंक ही है। सबका चहेता होने के बाद भी सहकारी बैंक को मोदी के इकानामिक स्ट्राइक में जगह नहीं मिली। यह जानते हुए भी कि बैंक से जुडा़ सर्वहारा वर्ग देश का भाग्य विधाता है। यदि मोदी के इकानामिक स्ट्राइक में केन्द्रीय सहकारी बैंक को अवसर मिलता तो इसका आर्थिक और मनोवैज्ञानिक फायदा निश्चित रूप से किसानों और गरीबों को मिलता। बैंक के विश्वास को बल मिलता। जाहिर सी बात है..ऐसा नहीं होने से खाताधारकों,आम जनों और कर्मचारियों के विश्वास पर अविश्वास ने घर बना लिया तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

                                                            छत्तीसगढ़ में कुल छःकेन्द्रीय सहकारी बैंक हैं। प्रदेश के करीब बीस लाख से अधिक लोग केन्द्रीय सहकारी बैंक से सीधे-सीधे जुड़े हैं। बिलासपुर केन्द्रीय सहकारी बैंक में साढे चार लाख किसान और गरीबों दिल धडकता है। बावजूद इसके मोदी के इकानामिक सर्जिकल स्ट्राइक के काबिल बैंक को नहीं समझा गया। दबी जुबान में ही सही लेकिन चर्चा का विषय है कि किसानों के हितों की जुगाली करने वाली सरकार…नोटों के दंगल में किसानों के बैंक को भूलाकर ठीक नहीं किया है। ऐसा क्यों…आज नहीं तो कल सही…लेकिन सरकार को बताना ही होगा…कि आम आदमी के बैंक साथ ऐसा क्यों हुआ…।

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