नौकरशाही भी जिम्मेदार

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FB_IMG_1441516484068(संजय दीक्षित) संजय बाजपेयी की असामयिक मौत के बाद स्वागत विहार का मामला भी अब खतम समझिए। मगर यह कहने में कोई हिचक नहीं कि इस एपीसोड में नौकरशाही भी बराबरी की दोषी रही। एक रिटायर आईएएस, जो उस समय टाउन एन कंट्री प्लानिंग के डायरेक्टर थे, उनसे पूछिए कि स्वागत विहार का लेआउट पास करने के लिए उन पर कितना प्रेशर था। इसके लिए उन्हें बड़े अफसरों की कितनी झाड़ खानी पड़ी। इस कांड का खुलासा होने के बाद उसकी जांच में रोड़े अटकाने में भी नौकरशाही ने कोई कमी नहीं की। और-तो-और जांच में विभिन्न विभागों द्वारा सपोर्ट न करने पर रायपुर पुलिस ने जब सरकार से एसीबी जांच की सिफारिश की तो उसे भी अटका दिया। अलबत्ता, अपना एक दूत भेजकर सरकार को डराया गया कि अगर एसीबी जांच हो गई तो नान घोटाले की तरह सरकार की छिछालेदर होगी। जबकि, वास्तविकता यह है कि स्वागत विहार केस में एक भी पालीटिशियन का नाम नहीं है। सीधी सी बात है, जमीन के चंद टुकड़ों के लिए नौकरशाहों ने अगर आंख पर पर्दा नहीं डाला होता, तो स्वागत विहार कांड नहीं होता।

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ना ना करके

12 दिसंबर को लगातार 12 साल पूरे करने वाले छत्तीसगढ़ के सीएम डा0 रमन सिंह के संदर्भ में बहुत कम लोगों को पता होगा कि वे राजनीति में आना नहीं चाहते थे। उनकी इच्छा मिलिट्री में जाने की थी। वहां डाक्टर बनने की। उधर, पिता चाहते थे, बेटा वकालत करे। मगर 80 के दशक की एक घटना ने उनके कैरियर की दिशा ही बदल दी। असल में, उनके पिता स्व0 विघ्नहरण सिंह वकालत के साथ जनसंघ से जुड़े थे। जनसंघ का कवर्धा में कोई आफिस नहीं था। इसलिए, अधिकांश बैठकें सिंह के घर पर ही होती थीं। ऐसी ही एक बैठक में पार्टी के लोग परेशान थे। युवा इकाई का अध्यक्ष बनने के लिए कोई तैयार नहीं हो रहा था। मीटिंग के दौरान रमन सिंह घर पर थे। पार्टी नेताओं ने सोचा कि फिलहाल टेम्पोरेरी तौर पर रमन को ही अध्यक्ष क्यों ना बना दिया जाए। पद कम-से-कम खाली तो नहीं रहेगा। इस बारे में रमन से पूछा गया। लेकिन, वे एकदम से बिदक गए। सबने उन्हें समझाया। अश्वस्त किया कि उन्हें अस्थायी अध्यक्ष बनाया जा रहा है। जैसे ही कोई तैयार होगा, तुम्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जाएगा। इसके बाद वे अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हुए। लेकिन, वक्त ने उन्हें टेम्पोरेरी से रेगुलर पालीटिशियन बना दिया। यही नहीं, बल्कि मंजे हुए। आखिर, कांग्रेस को उन्होंने कम-से-कम 15 साल के लिए वनवास पर भेज ही डाला है।

भ्रष्टाचार के खिलाफ और कठोर

अगले तीन साल में भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ कार्रवाइयां और तेज होगी। शुक्रवार को एक मुलाकात में सीएम इस पर बेबाकी से बोले। उनसे जब पूछा गया कि नान घोटाले के बाद जीरों टालरेंस और छापे की कार्रवाइयां जारी रहेंगी? उन्होंने दो टूक कहा कि और मजबूती से यह अभियान चलता रहेगा। भ्रष्ट लोगों को कठोरता से कुचला जाएगा।

85 लाख का गेट

वन विभाग का गेट कांड इन दिनों सुर्खियों में है। अफसरों ने बिना किसी नियम-कायदों का पालन किए, न्यू रायपुर के जंगल सफारी में 85 लाख का गेट बनवा डाला। इतना बड़ा काम बिना टेंडर का। बताते हैं, वन मुख्यालय के अफसरों ने नागपुर के अपने खास ठेकेदार से यह काम करवाया। लेकिन, अब उसका भुगतान पचड़े में पड़ गया है। वन मंत्री महेश गागड़ा ने उसका पेमेंट करने से इंकार कर दिया है।

दो करोड़ गड्ढे में

संस्कृति विभाग की समीक्षा बैठक में सीएम ने जब राजधानी में बन रहे बहुआयामी संस्कृति भवन का प्रोग्रेस पूछा तो पीडब्लूडी के अफसर बगले झांकने लगे। बाद में, अफसरों ने बताया कि पांच करोड़ मिला था। दो करोड़ खर्च हुआ है। क्या किया? सर! गड्ढा खोदा गया है। इस पर सीएम ने कटाक्ष किया, दो करोड़ गड्ढे में गया! इस पर पीडब्लूडी के अफसर बुरी कदर झेंप गए।

किस्मत कोस रही महिला सिकरेट्री

सरकार का एक अहम महकमा संभाल रही एक महिला सिकरेट्री इन दिनों सिस्टम से बेहद खफा हैं। सरकार ने उन्हें बड़े विभाग की कमान तो सौंप दी मगर उन्हें ना तो उपर से सपोर्ट मिल रहा और न नीचे से। मंत्री तो मंत्री, मंत्री का भाई भी मंत्रिगिरी झाड़ जाता है। जरा सा तेवर दिखाया नहीं कि व्यापारी आकर चेम्बर में धमक जाते हैं। इसी के चलते दाल की कालाबाजारी के खिलाफ छापेमारी बंद करनी पड़ गई। उल्टे, जब्त दाल भी व्यापारियों को लौटाना पड़ा। लिहाजा, महिला सिकरेट्री अब किस्मत को कोस रही है, सरकार ने मुझे कहां फंसा दिया। ऐसा ही रहा, तो ताज्जुब नहीं कि वे फिर से डेपुटेशन पर निकल जाएं।

शहीद को बधाई

नारायणपुर में गुरूवार को शहीद जवान की़ डोंगरगढ़ में अंत्येष्टि के दौरान ए़क महिला विधायक ने जवान को श्रद्धांजलि की बजाए शहादत के लिए बधाई दे डाली। वो भी दो बार। काश! विधायक और सांसद बनने के लिए कोई मिनिमम क्वालिफिकेशन निर्धारित हो जाता।

नो किच-किच

कांग्रेस की चुनाव समिति की दिल्ली में हुई बैठक बिना किसी किच-किच के निबट गई। इधर-उधर की बातें ना जोगी बोले और ना ही भूपेश एवं सिंहदेव। सिर्फ काम की बातें हुई। सभी सुग्धड़ नेता बनकर चुपचाप बैठे रहे। कांग्रेस को अब इस पर शिद्दत से विचार करना चाहिए कि क्यों न पार्टी की सारी बैठकें दिल्ली में की जाए।

फर्जी जाति नहीं

भिलाई नगर निगम समेत 11 निकायों के चुनावों में कांग्रेस ने तय किया है कि विवादित जाति वालों को टिकिट ना दिया जाए। इससे बाद में पार्टी की फजीहत होती है। रायपुर और बिलासपर में एक-एक पार्षद जाति के चक्कर में फंस चुके हैं। लेकिन, इस चक्कर में कांग्रेस के करीब आधा दर्जन मजबूत प्रत्याशी फंस गए हैं। पार्टी के सर्वे में उन्हें जीतने वाला उम्मीदवार बताया गया था।

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