पटरी से उतरी 10 राज्यों की धड़कन…सिहर उठा देश…हादसे का जिम्मेदार कौन..

BHASKAR MISHRA
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IMG_20170819_225752बिलासपु_20170820_144118र ( गिरिजेय ) उत्कल कलिंगा एक्सप्रेस केवल ट्रेन नहीं…संस्कृति और संस्कार की पटरी पर चलने वाली विज्ञान की बेटी है। जगन्नाथ धाम को हरिद्वार धाम से जोड़ने वाली उत्कल कलिंगा का दूसरा नाम राष्ट्रीय एकता भी है। चार दशक से अधिक समय से उत्तर को दक्षिण से जोड़ने वाली उत्कल कलिंंगा एक्सप्रेस करीब दस  राज्यों की धड़कन भी है। सभी राज्यों की धर्म कला संस्कृति की खुश्बू को देश के कोने कोने तक बांटती है। अपनेपन का अहसास कराती है उत्कल कलिंगा रेलगाड़ी। खतौली में हादसे के बाद देश सिहर गया है।

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                                  उत्कल कलिंगा एक्सप्रेस  वैज्ञानिक तकनिकी से चलने वाली लौह से बनी गाड़ी नही है। भारतीय संस्कृति,परम्परा,संस्कार और राष्ट्रीय एकता का दूत भी है। सात राज्यों की हवा पानी को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचाती है…उत्कल कलिंगा एक्सप्रेस । हरिद्वार से भोलेनाथ के संदेश को जगन्नाथ पुरी तक और कृष्ण के संदेश को हरिद्वार तक पहुंचाती है। निजामुद्दीन औलिया को भी प्रणाम करती है उत्कल कलिंगा एक्सप्रेस। खतौली में संस्कृति और संस्कार की पटरी से साथ छूटते ही देश सदमे में आ गया। देश का एक-एक व्यक्ति अपने आप से  सवाल कर रहा है कि सद्भावना दूत के साथ ऐसा क्यों हुआ। हादसे में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गयी। दो गुना लोग घायल हो गए। हादसे का  शिकार हिन्दू भी हुआ और मुस्लिम भी। अन्य धर्मों के लोग भी चपेट में आये।

                              प्रतियोगी परीक्षाओं में खासतौर पर छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में उत्कल को लेकर हमेशा प्रश्न रहता है। जिस तरह भूगोल के छात्रों से पूछा जाता है कि कर्क रेखा देश की कितने राज्यों से गुजरती है। ठीक उसी तरह प्रश्न होता है कि उत्कल कलिंगा एक्सप्रेस कितने राज्यों की सीमाओं को पार करती है। समझा जा सकता है कि उत्कल एक्सप्रेस विज्ञान का अविष्कार ही नहीं बल्कि संस्कृति और संस्कारों का संवाहक भी है। ज्ञान विज्ञान का कोष भी…। उत्कल के रूट चार्ट में साफ देखा जा सकता है कि यह ओडीसा से निकलकर पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश ,राजस्थान, दिल्ली,हरियाणा की सरहद को छूते हुए उत्तराखंड तक जाती है।

                                              यात्रा के दौरान यात्रियों की नजर अक्सर स्टेशनों पर रहती है। नाम जानने की जिज्ञासा होती है। नाम के साथ बोर्ड पर समुद्र तल से ऊंचाई को पढ़ना भी लोग नहीं भूलते । जगन्नाथ धाम से हरिद्वार जाने वाले या फिर बीच के स्टेशनों से चढ़ने वाले शहर की ऊंचाई समुद्र तल से देखना नहीं भूलते हैं। उत्कल कलिगा एक्सप्रेस दशकों से ऊंचाई और गहराई को बिना थके नापती नापती है। साथ ही अपने दामन में लोगों को भरकर दूरियों को पाटती भी है।

     up-train.-620x400                खाल्हे राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़,ओडिसा,झारखण्ड,पश्चिम बंगाल में उत्कल को भारत का धड़कन कहा जाता है। ओडिशा  के लोग आज भी उत्कल कलिंगा के बहाने पुराने नाम को पढ़कर मुदित हो जाते हैं। छात्रों को ट्रेन से अशोक के कलिंग युद्ध और पुराणों में उत्कल को याद करने में आसानी होती है। उत्कल को निजामुद्दीन औलिया का सद्भावना दूत भी कहा जाता है। दरअसल उत्कल एक्सप्रेस भारतीय संस्कृति और अखंडता का दूसरा नाम है। जहां से भी गुजरी लोगों को अपना बना लिया है।

                                                ओडिशा में कलिंगवासियों की..बंगाल में बंगवासियों की…झारखण्ड में मुण्डाओं की… तो छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ियों की हो जाती है। मध्यप्रदेश में घुसते ही बघेलखण्ड, महाकौशल, बुन्देलखण्ड, और मध्य भारत की शान हो जाती है। उत्तर प्रदेश में चंबल का पानी पीकर निकलते के बाद  राजाओं की धरती राजस्थान में उत्कल को विशेष सम्मान हासिल है। दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया का आशीर्वाद लेकर उत्तराखण्ड में भोले नाथ की बेटी बन जाती है।

                    उत्कल एक्सप्रेस भोलेनाथ की बेटी गंगा की तरह चरणों से निकलकर बंगाल की खाड़ी को जाती है। उत्तर और मध्य भारत की कला,संस्कृति संस्कार और विश्वास को हासिल कर बंगाल की खाड़ी क्षेत्र जगन्नाथपुरी धाम समुद्र से मिलने पहुंचती है। लेकिन गंगा से अलग उत्कल अपने भोलेनाथ को कृष्ण का संदेश देने रोज लौटती है।

                                    उत्कल एक्सप्रेस सैकड़ों स्टेशन में सात प्रांत और अंचल के घरों की सोंधी खुश्बू बांंटती है। खाना पीना रहन सहन का छाप सभी स्टेशनों पर छोड़ आगे बढ़ जाती है। अफसोस खतौली में भारतीय संस्कृति के संवाहक उत्कल कलिंगा एक्सप्रेस का संस्कार और गंगा जमुनवी संस्कृत की पटरी से उतरना दुखद ही नहीं हृदय विदारक है। सीजी वाल की टीम सभी मृतकों को श्रद्धांजलि देती है। लेकिन दुबारा हादसे की कल्पना भी नहीं करती।

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