पढ़ें..अजीत जोगी की वसीयत..जाने क्या..कुछ लिखा है पूर्व मुख्यमंत्री ने

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी अंतिम और अनन्त यात्रा में निकल चुके हैं। अंतिम क्रिया कर्म के बाद गौरेला में जोगी की वसीयत को पढ़ा गया। वसीयत के शब्द और इच्छाए बिलकुल जोगी की तरह गूढ हैं। वसीयत में जोगी ने अपनी इच्छाओं को कवित्त अंदाज में पेश किया है। पढ़ने के दौरान जिसने भी सुना वह स्तब्ध और भावुक हो गया। परिवार और उनके समर्थकों ने वसीयत के अनुसार अंतिम इच्छा पूरी करने का संकल्प लिया है। इसी क्रम में 2 जून को जोगी के इच्छानुसार बिलासपुर से कलश यात्रा निकाली जाएगी.सीजीवालडॉटकॉम के व्हात्सएप NEWS ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

             
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                     अंतिम क्रिया कर्म के बाद गौरेला में परिवार के बीच जोगी की वसीयत पढ़ी गयी। वसीयत की बानगी बिलकुल जोगी के व्यक्तित्व के अनुरूप है। जोगी ने अपनी वसीयत को कवित्त अंदाज में लिखा है। प्रकृति प्रेमी जोगी ने लिखा है कि यदि दपनाने या जलाने की प्रक्रिया के बाद उनकी मिट्टी या राख को नर्मदा के उद्गम स्थल, नर्मदा के ही तट पर या सोनमुड़ा घाटी के नीचे डाल दिया जाए।

                   वसीयत में जोगी ने् बताया कि वह चाहते हैं कि राख मेरी नर्मदा में समाहित हो जाए।
मैं दफन पड़ा रहूं वहीं नर्मदा के शीतल प्रवाह में। जोगी ने वसीयत में अपने बचपन के मित्रों का भी जिक्र किया है। उन्होने लिखा है कि घुटने घुटने पानी में खेलत, पैरो को सहलाता  वैसा ही…वैसा ‘ननुआ’, ‘मोहन’, ‘मुरारी’, ‘शंकर’, ‘शिरिल’, ‘गोविंद’ साथ, बरसों पहले किया करते थे…हम कई बार…।
 
                  जोगी ने अपनी वसीयत में अंतिम यात्रा अमरकंटक, अचानकमार, क्योंचि के जंगलों का जिक्र किया है। यहां जाने की भी बात कही है। उन्होने लिखा है कि यहां जाकर बचपन फिर जी लेना चाहता हूं। अंतिम भोज में महुआ,चार,चिरौंजी, तेन्दू और बेल को शामिल करने की इच्छा जाहिर की है। मौत के बाद अपनी शरीर को मोहलाइन के मखमली पत्तों में लपेटकर दफनाने या जलाने की बात कही है। पढ़ें अजीत जोगी की वसीयत

वसीयत

अंतिम सांसो के सुप्त होने के पहले 
ले चलना मुझे 
‘अमरकंटक’, ‘अचानकमार’, ‘क्योंचीं’, व ‘पीड़ा’ 
के नित्य हरित वनो में ! 
चंद लमहों के लिए सही,
मेरा बचपन फिर जी लेने देना, 
‘महुआ’, ‘चार’, ‘चिरौंजी’, ‘तेंदू’ और ‘बेल’ 
इनका अंतिम भोज करा देना
और बाद मरने के मेरे 
‘मोहलाईन’ के मखमली पत्तों में लपेटकर 
नश्वर नाकाम मेरी देह को 
चाहो तो दफना देना 
वहीं कहीं 
नर्मदा के उद्गम के समीप, 
नर्मदा के ही तट पर 
या सुनमुड़ा घाटी के नीचे 
जिससे 
राख मेरी नर्मदा में समाहित हो जाए या 
मैं दफन पड़ा रहूं वहीं 
नर्मदा के शीतल प्रवाह में 
घुटने घुटने पानी में खेलता 
पैरो को सहलाता 
वैसा ही वैसा
‘ननुआ’, ‘मोहन’, ‘मुरारी’, ‘शंकर’, ‘शिरिल’, ‘गोविंद’ 
के साथ, बरसों पहले
किया करते थे हम कई बार…
 
–अजित प्रमोद जोगी
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