पहली सालगिरह में हम कहाँ …… ?

Chief Editor
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दिल्ली सरकार की पहली सालगिरह का शोर कई जगह सुनाई दे रह है..। आमसभा – प्रेस कांफ्रेस  औऱ इश्तहारों के जरिए बताने की कोशिशें हो रहीं हैं कि तीन सौ पैंसठ दिनों में क्या हुआ…क्या कुछ बदल गया और कितने अच्छे दिन आ गए…… वगैरह….वगैरह….। हर एक शहर का वाशिंदा इस जश्न में शामिल होना चाहता है । लेकिन बिलासपुर में खड़े होकर अगर क्या हुआ ….क्या मिला …क्या बदला ….और दिन कितने अच्छे से गुजरने लगे ????  इन सवालों को कोई अपने – आप से पूछे तो क्या जवाब निकल कर आएगा ? जवाब तो समझ में नहीं आता लेकिन कई सवाल जरूर अपने – आप से टकराने लगते हैं।

             
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अहम् सवाल तो यही है कि देश भर में अच्छे दिन लाने के लिए अपनी ओर से हिस्सेदारी के नाम पर बिलासपुर वालों ने क्या नाम से…… जिस रहनुमा को अपना नुमाइंदा बनाकर भेजा वह कहां है…। साल भर से वे कहां थे …..यहां के लिए क्या क्या किए …. ? इसका कहीं कुछ पता नहीं लग सका…? जवाबदेही तो बनती है कि जिन सपनों और वायदों के सहारे वे देश की सबसे बड़ी पंचायत तक का अपना सफर पूरा करने में कामयाब रहे , उन सपनों – वायदों क्या हुआ यह भी लोगों के सामने आकर लोगों को बताएं, जिस तरह साल भर पहले वोट हासिल करने के लिए लोगों के सामने प्रकट हुए थे। चूँकि इस साल भर में कौन सी उपलब्धि उनके नाम पर दर्ज हुई है यह वही बता सकते हैं। आम आदमी को तो  फिलहाल ऐसा कुछ महसूस हो नहीं रहा है।

सरकार में बैठे लोग अपनी ओर से बहुत कुछ कह रहे हैं औऱ कह भी सकते हैं। लेकिन क्या इस इलाके का आम आदमी इसे  सौगात मानकर गले लगाए कि ठीक सालगिरह के समय बिजली की दरें बढ़ाने की खबर एक झटके के साथ आई। दिल्ली जैसे प्रदेश में बिजली की दरे घटाने की खबरे हैं औऱ छत्तीसगढ़ जैसे बिजली पैदा करने वाले सूबे में दाम बढ़ रहे हैं। ऐसे मे लोग अगर अच्छे दिनों  का जुमला आते ही लतीफे की तरह हँस पड़ते हैं तो इसे क्या अपनी बदकिस्मती ही मान लें। मौजूदा सरकार के आने के बाद हर आदमी यह उम्मीद भी कर रहा था कि काला धन आते ही अपने बैंक खाते में लाखों रुपए जमा हो जाएंगे। खाते में रुपया तो आ रहा है….जरूर। मगर रसोई गैस की सब्सिडी का पैसा गोल घूमकर  वापस आ रहा है। अब तो लोग यह कहकर कहकहे लगाते हैं कि मोहल्ले के ठेले वाले ने समोसे के दाम पाँच से बीस रुपए कर दिए हैं और सब्सिडी का पैसा समोसा खरीदने वाले के खाते में जमा करने का भी इंतजाम कर दिया है। दिल्ली सरकार अपनी पहली  सालगिरह पर एक असरदार दलील पेश कर रही है कि इस बीच किसी मंत्री का नाम घोटाले में नहीं आया। बात दमदार है। लेकिन इस सवाल के जवाब के लिए भी लोग उनकी ओर ही देख रहे हैं कि प्रदेश स्तर पर घपले – घोटालों की छूट क्या ‘’ स्पेशल – ऑफर ‘’ के तहत दी गई है। जाँच – पड़ताल में चाहे जिसका भी नाम आए , उसे फ्री – हेन्ड ही रखा जाएगा  ? लोग यह सब देख – सुन – समझ रहे हैं।

बिलासपुर में खड़े होकर सरकार की पहली सालगिरह पर अपने – आप से यह पूछने का भी मन करता है कि क्या इस प्रदेश में नई राजधानी के अलावे  और किसी भी शहर में लोग नहीं रहते हैं..? न्यायधानी का गौरव – पथ ऐसा क्यों नहीं है कि हम उस पर  ‘’गौरव ‘’ कर सकें….?न्यायधानी और राजधानी को जोड़ते हुए ऐसी कोई फास्ट ट्रेन क्यों नहीं चल सकती जिससे हमें सबसे अधिक कमाई देने वाले रेल – जोन होने का अहसास हो सके ? न्यायधानी और राजधानी को जोड़ने वाली सड़क को फोरलेन में तब्दील करने की रफ्तार कछुआ से भी मात खाने की होड़ में क्यों है….? बिलासपुर को हवाई सेवा से जोड़ने का मुद्दा अब तक  ‘’हवा – हवाई ‘’ क्यों है…? रातों – रात पेड़ काटने के बाद शहर की शानदार  ( जो सड़क पहले से ही शहर की कुदरती गौरव – पथ थी ) लिंकरोड को गड्ढे, गिट्टी – पत्थर के ढेर में तब्दील कर वहा से रोजाना गुजरने वालों के धैर्य की परीक्षा साल भर से क्यों ली जा रही है…..? सिवरेज के नाम पर सड़कों को खोदना – फिर डामर लगाना और फिर जब – पाए – तब खोद देना…..। इसमें गिरते – हपटते लोग रोजाना जो दर्द महसूस करते हैं, क्या उसकी सुध लेने वाला कोई है…..? इस शहर ने खुद अपनी लड़ाई लड़कर सेन्ट्रल युनिवर्सिटी हासिल की है, उसका क्या हाल – चाल है….? कितना अरसा हो गया वहां पूर्णकालिक कुलपति नहीं है …..? ऐसे पता नहीं कितने ही सवाल हैं । सवालों की फेहरिश्त काफी लम्बी है जिसके जवाब के साथ शहर यह भी पूछना चाह रहा है कि … पहली सालगिरह पर हम कहां हैं…..?????

रुद्र अवस्थी

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