वाक्या करीब 20 साल पुराना है।बिलासपुर के कांग्रेस भवन के पास पार्टी का एक सम्मेलन चल रहा था..।सारे दिग्गज नेता मंच पर पहुंच चुके थे….।सम्मेलन की शुरूआत होने वाली थी…।तभी वहां मौजूद यूथ कांग्रेस के लोगों के बीच से नारेबाजी शुरू है गई…..।यूथ कांग्रेस जिंदाबाद…के नोरों से पंडाल गूँज रहा था। सम्मेलन में वैसे भी पहले ही देर हो चुकी थी…और लोग चाह रहे थे कि नारेबाजी बंद हो, जिससे इसकी शुरूआत हो सके।लिहाजा नारेबाजी बंद करने के लिए कोशिश भी हुई…लेकिन यह सिलसिला चलता रहा….।जब वहां मौजूद उस समय के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने खडे होकर कहा-विजय यह नारेबाजी बंद कराओ। इसके बाद विजय केशरवानी अपनी जगह से उठे और नारेबाजी कर रहे नौजवानों की तरफ इशारा किया और तुरत नारेबाजी बंद हो गई….।फिर सम्मेलन शुरू हो सका….।यह पुराना वाक्या इसलिए याद आया कि वही विजय केशरवानी अब बिलासपुर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बन गए हैं..।और उनके सामने यही बड़ी चुनौती है कि आज के इस नए दौर में उन्हे कांग्रेस को 20 साल पुराने दौर में लाना पड़ेगा.।यदि विजय केशरवानी नए दौर में पुरानी कांग्रेस को जिंदा कर पाए तो पार्टी का यह फैसला उसके लिए फायदेमंद हो सकता है..।
कांग्रेस में संगठन चुनाव को लेकर पिछले कई महीने से सुगबुगाहट चल रही थी।इस दौरान कई बार खबर आई कि संगठन के पदाधिकारियों के नाम घोषित किए जाएंगे। लेकिन केवल अटकबाजी ही चलती रही और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के लिए कई नाम हवा में तैरते रहे। आखिर चुनाव प्राधिकरण ने जिला कांग्रेस कमेटी के नए अध्यक्षों के नाम का एलान कर दिया। जिसके मुताबिक नरेन्द्र बोलर शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने रहेंगे और विजय केशरवानी को बिलासपुर जिला कांग्रेस कमेटी (ग्रामीण) की कमान सौंपी गई है। लिस्ट जारी होने के बाद अटकलों पर विराम लग गया है।साथ ही अब इस बात को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि विजय कोशरवानी के अध्यक्ष बनने के बाद खासकर बिलासपुर जिले में किस तरह के समीकरण बनेंगे ….?और इससे पार्टी को किस तरह का फायदा होगा?
विजय कोशरवानी बिलासुर जिले की राजनीति में छात्र राजनीति की उपज है। शुरूआत कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की। फिर युवक कांग्रेस में रहे। विजय अविभाजित मध्यप्रदेश और अविभाजित बिलासपुर जिले के दौर से राजनीति में सक्रिय रहे हैं। इस नाते बिलासुर ही नहीं , बल्कि कोरबा और जाँजगीर – चाँपा इलाके में भी उनके साथ वालों की अच्छी खासी तादात है। छात्रों और नौजवानों की ताकत की बदौलत विजय ने इलाके के कई बड़े नेताओँ के साथ काम किया है। माना जा रहा है कि चुनाव के साल उन्हे संगठन की कमान सौंपते समय बड़े नेताओँ ने उनकी इन खूबियों पर गौर किया होगा..। दरअसल पार्टी के सामने अहम् सवाल यही है कि कभी कांग्रेस का गढ़ रहे इस जिले में पार्टी की हालत इतनी खराब क्यों है….? पुराने लोगों ने कांग्रेस से क्यों दूरी बना ली है और नए लोग क्यों नहीं जुड़ पा रहे हैं…? इन्ही सवालों का जवाब अब विजय केशरवानी को देना पड़ेगा।नए – पुराने सभी कांग्रेसियों को साथ लेकर चलना और बूथ लेबल तक पार्टी को फिर से खड़ा करने की चुनौती उनके सामने है। घर बैठ गए लोगों को फिर से सक्रिय करते हुए अपनी पुरानी टीम के साथ नए लोगों को जोड़कर विजय अपने चयन को सार्थक कर सकते हैं।
हालांकि हमेशा की तरह इस बार भी कांग्रेस को अपने इस फैसेल के लिए काफी उठा-पटक के दौर से गुजरना पड़ा है। जाहिर सी बात है कि अपनी खूबियों की वजह से विजय केशरवानी को पार्टी के अंदर विरोध का भी सामना करना पड़ा होगा। लेकिन अब वक्त है कि उन्हे अपना काम कुछ इस तरह से करना पड़ेगा ,जिससे संगठन चुनाव के दौर में पेश हुई खींचतान को भुलाकर कांग्रेस की बेहतरी के लिए अपनी पूरी काबिलियत का इस्तेमाल करना पड़ेगा। कांग्रेस संगठन भले ही यह मानकर चल रहा है कि आने वाले समय में “विजय अभियान” के लिए एक “विजय” की तलाश पूरी हो गई है ।लेकिन अपने पुराने अनुभव और संगठन की ताकत का इस्तेमाल वे कितना कर पाएंगे और चुनाव के साल अपनी पार्टी के लिए खुद को कितना कारगर साबित कर पाएंगे?यह जानने के लिए आने वाले वक्त का इंतजार ही बेहतर होगा।