प्राण चड्ढा:दूबराज चावल अब खोजते रह जाओगे

Shri Mi
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IMG-20160705-WA0020बिलासपुर(प्राण चड्ढा)।धान के कटोरे से छतीसगढ़ की पहचान दूबराज चावल अब किसी भाग्यशाली के घर में ही मिले. दूबराज के सामने बासमती भी गुणवत्ता में कम बैठता था. दूबराज के बाद अब छोटे दाने वाले चावल, जवाफूल,[अंबिकापुर-लेलूँगा,बस्ती-बगरा], विष्णुभोग, [गौरेला-पेंड्रा] भी खतरे की जद में आ चुके हैं. ये दौर है चावल के बाज़ार में एचएमटी का जो कई रूप में उपलब्ध है. सुगन्धित चावलों के दिन तो गुजरे ज़माने की बात हो चली है।

             
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                  छतीसगढ़ से राईस रिसर्च सेंटर का बंद होना और फिर डा. रिछारिया का न होना ऐसी क्षति रही जिसकी भरपाई नहीं हो सकती. उधर एक के बाद के धान की नई प्रजातियाँ खेतों तक पहुँचाना शुरू हो गई. लालच था कम दिनों में अधिक पैदावार मिलेगी. पर ये पैदावार परम्परागत धान की किस्मों पर महंगी साबित हो गई. एक मेड़ के फासले में नई प्रजातियाँ और दूबराज सा शानदार धान बोया जाने लगा. जिससे किनारे लगा  दूबराज का बीज परम्परागत मौलिकता खोता गया. अगली बार जब-जब इस तरह ये बीज फिर बोया जाता रहा तब-तब सुगन्धित धान ख़त्म होते गया।

               जल्दी पकने वाली धान की प्रजातियों के खेतों में आ जाने के कारण देर से फसल देने वाली देसी सुगन्धित धान से किसानों का ध्यान हट गया. महामाया, १०१०, १००१,किस्में एक सौ बीस दिन के आसपास कटाई के योग्य हो जाती हैं, स्वर्णा, इसके कुछ दिन बाद.इसके साथ हाइब्रिड धान ६४४४-गोल्ड,6129 ‘धनी’ जैसे धान की प्रजातियाँ बाजार में आई जो जितना खाद उतनी पैदावार,पर कीटप्रकोप साथ बोनस में. खेती के क्षेत्र में बाजारवाद प्रभावी हो गया. ये धान दूबराज से जल्दी खेत खाली कर देते और पैदावार भी अधिक देते.गांवों में इसके बाद मवेशियों को खेतों में चराई के जाने का मौका मिल जाता है, फिर यदि देर से तैयार होने वाली दूबराज की फसल खेतों में खड़ी रही तो किसान हो फसल बचाने रखवाली करना अतिरिक्त कार्य बन जाता है .नतीजतन दूबराज धान का उतपादन  का रकबा कम होता गया. नगरी-सिहावा का दूबराज दूर-दूर तक प्रसिद्ध था।

                   सुबह किसान खेतों से गुजरते तो इस धान की सुगंध मन मोह लेती,पर आज लीपापोती का दौर है,कुछ बारीक़ चावल को एसेंस से सुगन्धित चावल बना दिया जाता है ,ये चावल बिक तो जाता है, मगर बनाने के बाद न सुगंध न स्वाद. कुछ तो ये कहते हैं की चावल में स्वाद होता ही कहाँ है स्वाद तो मसालों और नमक,मिर्च में होता है जो सब्जी में प्रयुक्त होते हैं. शायद उन्होंने पुराने दूबराज का स्वाद नहीं चखा.

               आज छतीसगढ़ में रिकार्ड धान उत्पादन होता है, और समर्थन मूल्य पर रिकार्ड खरीदी पर इसमें एक बड़ी त्रुटि हो गई है यदि सरकार राज्य की अस्मिता से जुड़े दूबराज धान खरीदी का लाभकारी समर्थन मूल्य अलग तय करती तब इस धान की प्रजाति इस तरह लुप्त न होती. हो सकता है, किसी किसान की कोठी में आज भी सही दूबराज हो, उस किसान से बीज मोल ले कर इसको बचाने-बढ़ने का अंतिम प्रयास किया जा सकता है,अन्यथा देर हो जाएगी, जैसे दूबराज लुप्त हुआ वैसे ही जिन, छोटे सुगन्धित चावलों पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है वो भी एक-एक कर लुप्त होते जायेंगे..! विरासत पर छाये इस खतरे से निपटने राज्य सरकार को हाथ पर हाथ रख कर नहीं बैठना चाहिए.

कुछ और..

मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में 5 हज़ार साल पुराना धान मिला है.अथर्ववेद और कौटिल्य की रचना में चावल का उल्लेख है. महर्षि कश्यप ने शाली [धान] की 26 किस्मों के बारे में लिखा और इसकी खेती के तरीके बताये. चीन और जापान चावल के पुराने भी उत्पादक हैं, सिकन्दर वापसी के दौर धान फ़लस के लिए के कर गया. आज विश्व में सभी अनाज में धान की पैदावार सबसे अधिक है. (फोटो गूगल से साभार)

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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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