बिलासपुर—मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं सभी दौर में प्रासंगिक हैं। उस दौर के आम आदमी को केंद्र में रख उन्होंने कहानियां, उपन्यास लिखी। वह दौर कुछ ऐसा नहीं था जैसा आज है…विशुद्ध अधिनायकवाद का दौर था । किसान, मजदूर की बात कोई नहीं करता था। धनपतराय बहुत दूरदर्शी लेखक थे…उन्हें मालूम था कि आने वाला दौर कैसा होगा। यह बातें प्रेमचंद जयंती पर आयोजित गोष्ठी में वक्ताओं ने सबके सामने रखीं। कार्यक्रम का आयोजन प्रेस क्लब और प्रगतिशील लेखक संघ के संयुक्त प्रयास से किया गया।
ईदगाह चौक स्थित प्रेस ट्रस्ट भवन में सोमवार को प्रेमचंद और उनकी रचनाधर्मिता पर विचार गोष्टी का आयोजन किया गया। उपस्थित लोगों ने जयंती पर प्रेमचंद को याद किया। वक्ताओं ने प्रेमचंद की रचनाओं पर प्रकाश डाला। साहित्यप्रेमियों ने बताया कि प्रेमचंद की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। क्योंकि तब और अब के हालात में बहुत अधिक अंतर नहीं है।
कार्यक्रम को शिक्षाविद प्रोफेसर मंगला देवरस ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद हर दौर में प्रांसगिक हैं। हर कालखंड में उनकी कहानियों के पात्र देखने को मिल जाते हैं। वैसी परिस्थितियां भी दिखाई देती हैं। प्रेमचंद बेहद दूरदर्शी लेखक थे…जानते थे कि आने वाला समय कैसा होगा…किसका होगा। बूढ़ी काकी कहानी, गबन, गोदान समेत उनकी अन्य रचनाओं को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि आज की पृष्ठभूमि पर लिखी गई हैं।
रफ़ीक खान ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य सर्वजन का साहित्य था। आम लोगों के लिए साहित्य उपलब्ध होने की शुरूआत दरअसल प्रेमचंद से ही होती है…प्रेमचंद का समय उपनिवेशवाद का था। प्रेमचंद में देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी थी। इसीलिए प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार होते हुए भी पत्रकारिता के क्षेत्र में काम किया। उनका प्रयास रहा कि जनता से सीधा संवाद हो…ज्यादा से ज्यादा लोगों में स्वाधीनता की अलख जगा सकें। क्योंकि पत्रकारिता सीधे जनमानस को प्रभावित करती है । प्रेमचंद की रचनाओं में ग्राम्य जीवन को शिद्दत के साथ महसूस किया जा सकता है।
डाक्टर कल्याणी वर्मा ने उपस्थित लोगों को प्रेमचंद के रचना काल को समझाने का प्रयास की। उन्होंने कहा कि वह समय दो विश्व युद्ध का दंश झेल चुका था। समाज एक नई इकानामिक, नए समाजवाद की बाट जोह रहा था। ऐसे समय में प्रेमचंद की कहानियों ने जनता की सच्ची तस्वीर सामने रखी। डाक्टर वर्मा ने कहा मुंशीजी की कहानियाँ समय से संवाद करती हैं। समय से टकराने का माद्दा भी रखती है। प्रेमचंद का समय आज भी है और हम अपने आस-पास के परिवेश में सब कुछ देखते हैं जो मुंशी जी के दौर में था।
नवल शर्मा, द्वारिका प्रसाद अग्रवाल , राजेश दुआ, विश्वेश ठाकरे ने खुले पत्र में कई सवाल उठाए और विचार भी रखे। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार और प्रलेस के प्रांतीय महासचिव नथमल शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन प्रेस क्लब के अध्यक्ष तिलकराज सलूजा ने किया।