बिलासपुर—प्रदेश शासन की फ्रीहोल्ट जमीन आवंटन नीति के खिलाफ हाईकोर्ट में सुशांत शुक्ला की याचिका पर सुनवाई हुई। सुशांत की तरफ से रोहित शर्मा पैरवी की। रोहित ने कोर्ट को बताया कि फ्रीहोल्ड स्कीम संविधान के निर्देशों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता के वकील रोहित शर्मा ने कोर्ट को बताया कि शासन की फ्रीहोल्ड नीति में बहुत खामियां है। नीति के अनुसार 7500 वर्गफिट जमीन आवेदन करने पर कलेक्टर के माध्यम से केवल आवेदक को दिया जाएगा। भू आवंटन की कार्रवाई से केवल भू-माफियों को ही फायदा होगा। सामान्य वर्ग के व्यक्ति योजना से लाभान्वित नहीं होंगे।
शासन की नीति छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता और छत्तीसगढ़ नगर के अलावा ग्राम निवेश अधिनियम के खिलाफ है। यह जानते हुए भी कि ऐसे ही एक मामले में उच्चतम न्यायालय ने अखिल भारतीय उपभोक्ता कांग्रेस विरुद्ध मध्यप्रदेश शासन में निर्णय आ चुका है। उच्चतम न्यायालय ने 20 एकड़ जमीन कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट को दिए जाने के मामले में सुनवाई के बाद मध्यप्रदेश सरकार के निर्णय को अपास्त कर दिया था। यह फैसला भी छत्तीसगढ़ सरकार पर भी लागू होता है।
रोहित ने कोर्ट को यह भी बताया कि निर्देश के बाद भी आज तक रिक्त शासकीय भूमि जिन्हें सूचीबद्ध किया गया है। वेवसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है। नीतियों की खामियों को गिनाते हुए रोहित ने बताया कि निजी आवेदक को भूमि आवंटन के चारो तरफ बाउंड्रीवाल नहीं करने की छूट है। जबकि शासकीय विभाग को भूमि आवंटित किए जाने को लेकर संबधित विभाग के पास बाउन्ड्रीवाल निर्माण के लिए राशि का होना जरुरी है।
याचिका में बताया गया कि 2001 के मुकाबले 2011 के अनुसार स्लम एरिया बढ़ गया है। बिलासपुर में सर्वाधिक स्लम एरिया है। रोहित ने जानकारी दी कि इस प्रकार जमीन आवंटन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है।इसलिए शासन के 11 सितम्बर .2019 के आदेश को विधि विरूध होने के कारण निरस्त किया जाए।
कोर्ट ने सुनवाई के बाद मामले में प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब मांगा है। सुशांत शुक्ला की याचिका पर सुनवाई मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश पीपी साहू की खंडपीठ में हुई।