“जो लोग पास के बरगद पेड़ के नीचे खड़े हैं…….उनसे अपील है कि कार्यक्रम के लिए बनाए गए पंडाल में आने का कष्ट करें……अब अजीत जोगी मंच पर आ गए हैं और जल्दी ही अपनी बात करने जा रहे हैं…।“ इतना सुनते ही पुराने पेड़ के नीचे शुकून की छाँव का आनंद ले रही पब्लिक पंडाल की ओर दौड़ी……। फिर बर्गद की छाँव छोड़कर पंडाल में अपनी-अपनी लाल कुर्सियों में सब समा गए……। उस पंडाल में जहाँ तपिश बरगद के नीचे से कहीं अधिक थी…। और कपड़े के टेंट से छनकर धूप भी सर पर आ रही थी…….। पंडाल में आने का न्यौता सभी ने मंजूर कर लिया और बरगद की घनी छाँव से पंडाल में आ गए….। यह आंखों – देखी कहानी उस घड़ी की है, जब अजीत जोगी कोटमी में सोमवार को कांग्रेस से “आजाद” होकर अपनी नई पार्टी का ऐलान कर रहे थे…..। जिन्होने इस सम्मेलन की जगह देखी है, वे बेहतर समझ सकते हैं कि वहां कितना बड़ा बरगद का पेड़ है…।
इतना बड़ा कि जोगी के “मेले” में लगाया गया पंडाल भी उसके आगे छोटा लग रहा था। यह सीन कई अलग-असग कोण की ओर इशारा करता नजर आता है।मसलन अजीत जोगी के कार्यक्रम में जो भी कांग्रेसी आए , वे सभी काँग्रेस के लोग कांग्रेस के बरगद की छाँव छोड़कर जोगी की नई पार्टी के नए पंडाल के नीचे आ गए……। दूसरा पहलू यह है कि भीड़ इतनी कम थी कि एक पोड़ के नीचे आ गई……। समझने का अपना नजरिया हो सकता है …… हम तो नजारा पेश कर रहे हैं…। किसी जलसे के दौरान हुई बारिश को शुभ संकेत मानने वाले लोग उस समय हुई अचानक बारिश को जोगी की पार्टी का “शुभ श्री गणेश” मान सकते हैं। कार्यक्रम के दौरान कई बार उठे व्यवधान और रुकिए……रुकिए……बैठिए-……बैठिए की गुजारिश के बीच भाषण रोक देने जैसी नौबत को भी सम्मेलन में उमड़ रही भीड़ का एक सबूत बताया जा सकता है। लेकिन देखने वालों ने यह भी देखा कि ठीक अजीत जोगी के भाषण के करीब साथ-साथ ही शुरू हुई बारिश की वजह से भी व्यवधान उठता रहा……और जोगी अपनी रौ में भाषण नहीं दे पा रहे थे……। एक तरफ बारिश में जमीन में बैठकर सुनने वाले जुनूनी लोग भी थे। तो दूसरी तरफ टपकते पंडाल मे अपनी लाल कुर्सी को छाता बनाकर बचने की कोशिश के बाद किसी तरह सर छिपाने दूसरे ठिकाने की तलाश में भाग खड़े हुए लोग भी थे……..। लेकिन गोल घेरकर खड़े लोगों की गर्मजोशी और जय जोगी के नारों के बीच जोश-खरोश से भरे जोगी बोलते ही रहे……..।
सियासत और जिंदगी में कई मुश्किल इम्तहानों में “मेरिट” में नाम दर्ज कर चुके जोगी एक नई चुनौती के मुकाम पर बोले और खूब बोले…….। हाथ में मरवाही की माटी लेकर उसकी सौगंध के वजन के साथ कुछ छत्तीसगढ़ी और कुछ हिंदी में अपने मन की बात कही। जिसमें शेरो-शायरी भी थी और चालीस की उमर बताकर यह ललकार भी कि “-गोड़ नई हे त ….का होगे …..बाकी सब त काम करत हे..।“ सुनने वालों की पसंद को भांपकर उस अंदाज में बतिया लेने में माहिर जोगी ने करीब लालू की स्टाइल में अपनी बात रखी..अपनों के बीच अपनी बोली…बतरस..। एक बार तो बरसते पानी को रोकने के लिए काली कुकरी ( मुर्गी) लाने की भी बात कही..और लोगों के बीच से ठहाके उठे..। जलसे में मौजूद तीन पूर्व विधायक और दो मौजूदा विधायकों को पाँच पांडव बताकर यह चेताया भी कि ये कौरवों पर भारी पड़ेंगे…। जोधा-अकबर की आरती थाली और तलवार का भी जिक्र आया और चैतू-बैशाखू-जेठू- मंगलू से भी भीड़ का परिचय करा दिया। व्हील चेयर पर भी बैठकर भी अपने चोरों तरफ झुमटे लोगों को दोनोँ हाथ उठाकर जय-जयकार करने पर मजबूर कर देने वाला अनोखा अंदाज..।
कोटमी में अजीत जोगी के भाषण का अँदाज पुराना था और लगा जैसे वे एक बार फिर मुख्यमंत्री ( भावी ) की जगह पर खुद को रखकर बोल रहे हैं। जिन्होने 2000 से 2003 के बीच मुख्यमंत्री की हैसियत से उनका भाषण सुना हो उन्हे याद आ जाएगा कि यह वही जोगी हैं…। अमीर धरती के गरीब लोगों को अमीर बनाने की बात….बिजली बोर्ड के बंटवारे की बात…धान खरीदी की बात….मजदूरों के भुगतान की बात….टैक्स-फ्री स्टेट बनाने की बात…छत्तीसगढ़ के विकास की बात…। लेकिन बात आगे बढ़ती गई तो लगा कि जोगी 2003 की तस्वीर से कुछ अलग सी अपनी पहचान पेश करने की कोशिश में भी हैं। लिहाजा स्थानीयता की बात….सर्व-वर्ग के सम्मान की बात…छत्तीसगढ़ का फैसला छत्तीसगढ़ में करने की बात……जैसी कई बातें उनके भाषण में जुड़ती चली गईं। जिससे लगा कि 2003 के चुनाव में पराजित जोगी की छवि से अलग एक नया जोगी छत्तीसगढ़ के अवाम् के सामने पेश करने की रणनीति हैं। पूर्व मुख्यमंत्री – वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजीत जोगी और कोटमी के जोगी में एक बड़ा फर्क यह भी था कि इस मंच पर उन्होने सोनिया और पंजा निशान- तिनरंगिया पार्टी का नाम तक नहीं लिया…।अलबत्ता “आजाद” होकर एक नई पार्टी बनाने का ऐलान करते हुए इसके नाम-निशान को लेकर लोगों से अपनी राय देने की गुजारिश की। एक अहम् बात यह भी कि उनका निशाना सीधे रमन सरकार पर था । जिसके जरिए वे कांग्रेस को जिक्र करने के लायक भी न बताकर आगे की लड़ाई को “रमन वर्सेस जोगी” बनाने की तरफ बढ़ते हुए नजर आते हैं। हां…छत्तीसगढ़ के कांग्रसी नेताओँ को “ठीक” करने की जिम्मेदारी पूर्व विधायक धरमजीत सिंह की थी। साफगोई के साथ एक खास अंदाज में अपनी बात रखने वाले धरमजीत सिंह को लोगों ने भावुकता और नराजगी में डूबे लफ्जों के साथ सुना…। वे यह भी बोले कि “हाइकमान के आंखे तरेरने की खबर छपती है…कभी हमारे पिताजी ने अपनी आंखें नहीं तरेरी तो …..अपने निष्कासन की चिँता होती तो मरवाही नहीं आता..।“ विधायक सियाराम कौशिक ने बड़ी सफाई से सूबे की मौजूदा सरकार को निशाने पर लेकर अपनी बात खतम कर दी…।
घने जंगल और पहाड़ों को पार करते हुए कोटमी से लौटते वक्त – प्रदेश में तीसरी ताकत के उदय….पर्यावरण दिवस के दूसरे दिन कोटमी में बड़े बरगद के बाजू में रोपे गए नए पौधे की सेहत ….प्रदेश की सियासत पर इसके असर ……काँग्रेस-बीजेपी को होने वाले नफा-नुकसान जैसे सवाल मन में घुमड़ते रहे………। इस पर फिर कभी बात करेंगे। लेकिन कोटमी के “जोगी मेले” में बिक रहे फुग्गे की हवा के साथ हम यही संदेश लेकर लौटे हैं कि नई पार्टी के साथ नए अंदाज में अब अजीत जोगी पेश होने वाले हैं। 2003 की गल्तियों से सबक लेकर एक नया कलेवर जो एसटी-एससी से लेकर अगड़े-पिछड़े तक सब को अपना अमिताभ बच्चन ( हीरो) लगने लगे। मंच पर सिनेमाई काले चश्मे के साथ उनकी आमद कुछ ऐसा ही बयां कर रही थी…। इतिहास में कई मेनीफेस्टो दस्तावेज के रूप में दर्ज हैं। कोटमी मेनीफेस्टो भी एक इतिहास बन जाएगा…। लेकिन फिल्म देवदास और मुगले –आजम की तरह उनकी इस पुरानी फिल्म का रि-मेक छत्तीसगढ़ में हिट होगा या फ्लाप,इसका फैसला यहाँ के दर्शक ( वोटर ) करेंगे और पूरा दारोमदार इस बात पर होगा कि इस लोकल फिल्म के हीरो अजीत जोगी के डॉयलाग पर उन्हे भरोसा कितना है..? विश्वसनीयता और भरोसे की डोर पर ही जोगी की नई फिल्म का भविष्य टिका हुआ है..। कोटमी में खड़े होकर सोलह साल पुराने छत्तीसगढ़ के छोटे से इतिहास पर गौर करें तो पूरी कवायद का यही निचोड़ समझ में आता है..।