बिलासपुर– क्या बिलासपुर का पानी उतारने की साजिश हो रही है। यदि नहीं तो शहर को चारो तरफ से कोलवाशरी के धंधेवाजों ने क्यों घेर लिया है। गांव का गांव बंजर हो रहा है। किसान खून के आंसू लेकर पलायन को विवश हैं। बावजूद इसके प्रशासन मौन है। बिलासपुर के उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक कोलवाशरी के जंगल स्थापित हो गए हैं। जहां नहीं है वहा कभी भी स्थापित हो सकते हैं। आम शहरी सिवरेज को सबसे बड़ा समझ रहा है..लेकिन सीमांत गांव धीरे-धीरे बंजर हो रहा है..इसकी उसे जानकारी ही नहीं है…यदि है भी तो उसे अपने दर्द के सामने ग्रामीणों के दर्द को महसूस करने की फुर्सत नहीं है। बिलासपुर कलेक्टर पानी के गिरते स्तर को लेकर चिंतित हैं। बावजूद इसके उनकी चिंताओं को नजरअंंदाज कर कोलवाशरी और क्रशिंग उद्योग में पानी को मानसून में उफनती नाली की तरह बहाया जा रहा है। जिन गांवों में कोलवाशरी और कोल क्रशर है वहां पर्यावरण नाम का कोई सिस्टम ही नहीं है। ग्रामीण कोयले के डस्ट से बंजर होती जमीन को लेकर दिन रात अधिकारियों के सामने नाक रगड़ रहे हैं। लेकिन कोलवाशरी संचालकों पर कोई असर होते दिखाई नहीं दे रहा है।
बिलासपुर शहर के सीमान्त गांव जहां कोलवाशरी..या फिर कोलक्रशिंग प्लांट स्थापित है…वहां की जमीन पूरी तरह बंजर हो चुकी है। बिलासपुर शहर से लगे कोल प्लाट प्रभावित गांव विभिन्न ब्लाक में आते हैं। गांव की खेती पूरी तरह से चौपट हो गयी है। हवा में सांस लेना मुश्किल हो गया है। विरोध के बाद भी कोल व्यापारियों को कोलवाशरी के लिए जमीन आसानी से मिल जाती है। कोल क्रशिंग और कोल डिपो के लिए जमीन हासिल करना उनके लिेए कठिन नहीं है। कहने को तो कोल प्लाट और डिपो खोलने से पहले प्रशासनिक अधिकारी गांवों में आमसभा कर रायशुमारी करते हैं। रायशुमारी में कोलवाशरी और क्रशिंग प्लांट का हमेंशा से विरोध हुआ है। बावजूद इसके ग्रामीणों के ना नुकुर के बीच गांव का सरपंच जमीन अधिग्रहण दस्तावेज पर सील सिक्का लगा देता है। बाद में विरोध करने वाले ग्रामीण डंडे के सामने गूंगे और बहर हो जाते हैं। क्योंकि उद्योगपतियों के सामने उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती साबित होती है।
कोलवाशरी, क्रशिंग प्लांट और कोल डिपो के लिए निश्चित जमीन ही अधिग्रहित किया जाता है। बाद में आधा गांव प्लांट मालिकों का हो जाता है। जिस किसान ने जमीन बेचने से इंकार किया उसका जीना मुश्किल हो जाता है।
जिला कलेक्टर इस समय पानी संरक्षण को लेकर गंभीर हैं। उन्हें शायद ही मालूम हो कि कोलवाशरियों में पानी को पानी की तरह बहाया जा रहा है। कमोवेश सभी कोलवाशरियों, क्रशिंग प्लांट और डिपो में पानी से खेला जा रहा है। कृत्रिम कोयले के पहाड़ को नहलाया जा रहा है। जबि उसी गांव के लोग पानी के लिए दर दर भटकने को मजबूर हैं।
सीजी वाल की टीम ने जिले के सीमान्त गांव चाहे वह बिल्हा ब्लाक में आते हो या मस्तूरी…कोटा ब्लाक में आते हो या तखतपुर..बेलतरा ब्लाक में..या फिर बिलासपुर शहर सीमा में ही क्यों ना आ रहे हो….वहां के निवासी कोयले के प्रभाव से समय से पहले बूढे हो गए हैं। जमीन तो पहले से ही बांझ हो गयी है।
माइनिंग विभाग के आंक़ड़़े बताते हैं कि बिलासपुर शहर के चारो तरफ 6 कोलवाशरी समेत कोल डिपो और कोल क्रशिंग के कुल संख्या 74 हैष। इनमें से एक चौथाई प्लांट हाइकोर्ट के ईर्द गिर्द हैं। 6 में से चार कोलवाशरी हाईकोर्ट के मुहाने पर ही हैं।
पेन्ड्रा और मरवाही के तीन प्लाटं को छोड़ दें तो बाकि सभी 71 कोल प्लांट बिलासपुर शहर से लगे हुए हैं। इनमें 6 कोलवाशरी भी शामिल हैं। कोल क्रशिंग का डस्ट ग्रामीणों में कैंसर बांटने का काम कर रहा है। किसानों का तो जीना मुश्किल हो गया है। लेकिन प्रशासन कहीं से भी गंभीर नजर आता नहीं दिखायी दे रहा है।
जिले में कुल 6 कोलवाशरियों में हिन्द कोल एनर्जी…हिन्दाडीह..मस्तूरी,हिन्द कोल एनर्जी..गतौरा..मस्तूरी, फिल मिनरल्स बेनिफिकेशन…बेलतरा..बिलासपुर, सीपीसीबीत…सिरगिट्टी..बिलासपुर, महेश्वरी कोल…परसदा..बिलासपुर, इन्स्पायर एनर्जी…बेलमुण्डी..तखतपुर में है।
कोल प्लांट किसके हैं…कौन है कोल डिपो का मालिक..कोल क्रशिंग प्लांट का कर्ताधर्ता कौन है…कोयले के डस्ट का जमीन,पर्यावरण और आम जनता पर क्या असर हो रहा है। पर्यावरण विभाग अपनी जिम्मेदारियों को लेकर कितना गंभीर है। सड़कों की क्या है हालत…सारे सवालों के जवाब के लिए पढ़े सीजी वाल की विशेष रपट…बिलासपुर का पानी उतारने की साजिश.…।
जारी है…..