बिलासपुर की पहचान-रावत नाच महोत्सव…छत्तीसगढ़ी लोक कला के अनूठे संगम में एक डुबकी

Chief Editor
8 Min Read

IMG_5605IMG_5518(गिरिजेय)यूं तो शनिवार का दिन साल में कई बार आता है …….। लेकिन 11 नवंबर को गुजरा कल का शनिवार कुछ अलग था……। यह शनिवार रावत नाच महोत्सव का शनिवार था….। जिस दिन छत्तसीगढ़ के गांव- देहात की संस्कृति , बिलासपुर शहर को अपने आगोश में ले लेती है…..। और पूरा शहर गुड़दुम बाजे की गमक और … रावत नाच दलों की कुहुक से गूँजने लगता है….।इस शनिवार की शाम कुछ अलग ही होती है, जब पूरे शहर में रावत नाच महोत्सव की धूम होती है। मेनरोड, सदर बाजार –गोलबाजार से लेकर शहर के तमाम गली –मोहल्लो में झूमते-नाचते रावत नाच दलों का ही शोर गूंजता है। मुख्य समारोह इस बार भी हमेशा की तरह शहर के बीच बने लालबहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में आयोजित किया गया। जहां पहुंचते ही बाकी ध्वनियां गुम हो जाती हैं । और डफडा- निशान-मोहरी –टिमकी की थाप के बीच खुशी से तुलसी- कबीर के दोहे के साथ नर्तकों की कुहुक ही सुनाई देती है…..। सारा मैदान कहीं गुलाबी…. कहीं लाल…..कहीं हरी …. कहीं सुनहरी चलती –फिरती जीवंत झांकियों में तब्दील हो जाता है……।

Join Our WhatsApp Group Join Now

कुछ देर के लिए पूरी दुनिया को भुलाकर दुधिया रोशनी के बीच यदि रावत नाच महोत्सव के इस अनूठे रंग में उतरकर देखें तो एक अद्भुत अनुभूति होती है….। गुड़दुम बाजे का गगनभेदी स्वर पूरे माहौल को वीर रस में सराबोर करता है, तो हाथों में लाठी-फरी लिए धोती-बंडी-जेकेट और सिर पर रंगीन पगड़ी से सजे-धजे नर्तक किसी युद्ध में शामिल होने जा रहे योद्धा की तरह लगते हैं….। लेकिन यह अनूठा संगम ही है कि जब इन नर्तकों के पांव बाजे की धुन पर थिरकते हैं और एक साथ घुंघरू की झम-झम सुनाई देती है तो यही मैदान युद्ध का नहीं बल्कि प्रेम-उमंग-उल्लास और खुशी का मैदान बन जाता है….। ऐसा लगता है जैसे सबकी खुशी में अपनी खुशी तलाश रहा छत्तीसगढ़ का आम जन पूरे माहौल को खुशियों की लहर में डुबो दे रहा है…..।ओशो कहते हैं- नृत्य एक ध्यान है, जिसमें नृत्य ही बच जाता है, नर्तक खो जाता है…….. यहां भी तो लोक नृत्य परंपरा के इस अनूठे संगम में सिर्फ नृत्य ही बचता है….. नर्तक भी खो जाता है और दर्शक भी खो जाता है…….। इस संगम में डुबकी लगाने का अनुभव भी अनूठा है…..।
IMG_5651

इस नृत्य की खासियत यह तो है ही कि तुलसी-कबीर के दोहे हमें अपनी पुरानी परंपरा से जुड़े रहने का संदेश देते हैं, साथ ही एक बड़ी खासियत यह भी है कि करमा- सुआ जैसी छत्तीसगढ़ की नृत्य शैलियों का संगम भी इसमे नजर आता है……..। जो दर्शक को भी झूमने पर मजबूर कर देता है। वैसे भी लोकपरंपरा में ऐसा कोई आयोजन शायद ही होगा जहां हजारों पैर एक ही साथ थिरकते हों…… इस मायने में भी यह आयोजन अनूठा है। रावत नाच दलों के साथ परियों की थिरकन तो आकर्षित करती ही है ….. वजनदार निशान (बाजा)  कमर में बाँधकर अपने नृत्य का प्रदर्शन करने वाले बजगरी भी हर किसी का मन मोह लेते हैं।शास्त्री स्कूल के मैदान में देर रात तक नर्तक दलों के आने का सिलसिला चलता रहता है और करीब एक सैकड़ा गोल इसमें हिस्सा लेते हैं। प्रवेश द्वार की तरफ नजर डालें तो दूर से सिर्फ नर्तकों के पांव के साथ थिरकती और चमचमाती लाढियां ही दिखाई देती हैं। मैदान के बीच आकर दल अपना प्रदर्शन करते हैं और जब उनकी विदाई के लिए सीटी बजती है तो लगता है प्रदर्शन से न उनका जी भरा है और न देखने वाले का मन ही भर पाया है…। फिर भी समय की कमी और नर्तक दलों की अधिकता के बावजूद मौका सभी को मिल जाता है। चाहे नृत्य हो या लाठी चलाने का प्रदर्शन हो ठेठ गाँव की लोक संस्कृति में डूबे माहौल में सभी डूब से जाते हैं….।
IMG_5547

रावत नाच आयोजन समिति का इंतजाम भी अद्भुत नजर आता है। पूरी तरह से अनुशासित व्यवस्था, सभी को मौका और दूर – दराज से आकर इस महोत्सव में हिस्सा लेने वाले सभी दलों के भोजन के इंतजाम में कहीं कोई खामी नजर नहीं आती। वक्त के साथ चीजे बदल भी रही हैं….। जिससे कहीं – कहीं किसी नर्तक की कलगी पर रंगीन एलईडी लाइट भी जलती नजर आती है…… कोई नर्तक के साथ सेल्फी लेता हुआ दिखाई देता है….. तो शहर में कई जगह स्कूटी-बाइक पर एक साथ सवार कई नर्तक नजर आते हैं…। लेकिन आयोजन की आत्मा अभी भी बरकरार है, जो हर बदलते दौर के बीच भी लोकसंसकृति को बचाए और बनाए रखने के रास्ते पर अपनी कामयाबी का सफर जारी रखे हुए है…..।
IMG_5524

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिलाई बिलासपुर को पहचानः अमर
रावतनाच महोत्सव के आयोजन में बरसों से अपनी हिस्सेदारी निभा रहे शहर के विधायक और प्रदेश सरकार के मंत्री अमर अग्रवाल ने इस बार भी बतौर मुख्यअतिथि शिरकत की। उन्होने कहा कि इस आयोजन ने देश ही नहीं पूरी दुनिया में बिलासपुर की पहचान बनाई है। उन्होने याद किया कि करीब तीन दशक पहले जब इस आयोजन का प्रसारण एकमात्र टीवी चैनल दूरर्शन पर होता था तो अपने बिलासपुर शहर का नाम देख-सुनकर लोग रोमांचित होते थे। उन्होने संस्कृति को कायम रखने की दिशा में इस आयोजन की तारीफ की। साथ ही इसके आयोजन में स्व. बी.आर.यादव की भूमिका को भी याद किया।

रावत नाच महोत्सव के पर्याय डॉ. काली चरण यादव
चार  दशक से चल रहे इस आय़ोजन में अपनी अहम् भूमिका निभाने वाले समिति के संयोजक डॉ. कालीचरण यादव इस बार भी जोश और उत्साह से भरे नजर आए। पूरे समय तक वे व्यवस्था में जुटे रहे । एक-एक चीज पर उनकी नजर लगी रही। उनकी सहजता और सरलता के साथ लगनशीलता को ही इस आयोजन की ऐतिहासिक कामयाबी का राज कहा जा सकता है। उनकी सरलता का नमूना इस बार भी देखने को मिला , जब वे मंच से दूर रहकर इंतजाम में मशगूल नजर आए…… । और जब मंच से मुख्यअतिथि का भाषण चल रहा था तब  खुद मंच के नीचे खड़े होकर उनकी बात सुनते दिखाई दिए। उन्हे देखकर लगा जैसे यह समझने की कोशिश कर रहे हों कि इसमें आगे और क्या बेहतर करना है……। यही है छत्तीसगढ़ की असली संस्कृति…….।

close