बिलासपुर शहर के बीच बनाए जा रहे क्वॉरेंटाइन सेंटर पर उठ रहे सवाल …. ?

Chief Editor
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(मनीष जायसवाल)-कोरोना काल के दौर में छत्तीसगढ़ सरकार का अपने  मजदूरों को दूसरे राज्यों से लाने के निर्णय का स्वागत होना चाहिए।हर छत्तीसगढ़िया राज्य शासन के इस निर्णय से खुश है। परन्तु देश के तमाम प्रदेशों से आने वाले मजदूरों के क्वारांटाइन सेन्टरों के लिए जारी जिला स्तरों पर निर्देश चिंता का विषय है। कमजोर महल के खंबो पर नया निर्माण महल के निवासियों के लिए संकट ला सकता है।प्रदेश के दूसरे  सबसे बड़े शहर बिलासपुर में ही  शहर के बीचों बीच  घनी आबादी के आसपास सामुदायिक भवनों में क्वारांटाइन सेंटर बनाए जाने का निर्णय लिया जाना अव्यवहारिक प्रतीत जान पड़ता है। सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप NEWS ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

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जिसका विरोध अब शुरू हो गया है। राजकिशोर नगर वासी इसका बिगुल फूंक चुके है।सामुदायिक भवनों व स्कूलों को भी क्वारांटाइन सेंटर बनाये जाने और शिक्षकों व सामान्य कर्ताओं, आरक्षको के भरोसे 14 दिन 24 घन्टे क्वारांटाइन सेंटर के मानकों को बनाये रखना भी संदेह उत्पन्न करता है। इन्ही सब विचारों को लेकर आम शहरी, आम शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता में चिंता की रेखाएं खिंच गई है। अधिकारी कर्मचारी ऊपर के आदेश का हवाला देकर शॉर्टकर्ट पर फोकस कर रहे है।…घनी आबादी के बीच मजदूरों के लिए बनाए जा रहे क्वारांटाइन सेंटर। आम शहर वासियों के लिए कही लाक्षागृह ना बन जाए..!  कई लोग सोशल मीडिया में राज्य शासन व नगरीय निकायों के इस फैसले के पर सोशल मीडिया में अपनी भड़ास निकल रहे है। 

क्वारांटाइन सेंटर से जुड़े कई विषयों को  लेकर एक चर्चा के दौरान उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता व समाजसेवी  रोहित शर्मा ने बताया कि मान लिया जाए कि बिलासपुर जिला प्रशासन की मंशा सही है…! परन्तु अगर प्रबंधन में चूक हुई तो मजदूरों के साथ  पूरे शहर में कोई विपदा आ सकती है। जिला प्रशासन इस तथ्य को  नजर अंदाज नही कर सकता कि यह कोरोना वायरस का काल है। कोई भूकंप या बाढ़ जैसी कोई प्राकृतिक घटना नही है। कोई भी निर्णय हो तो ठोस होने चाहियें … व्यवहारिक, चिकित्सकिय तकनीकी औऱ भौगिलिक तथ्यों पर मंजे हुए होने चाहिए .. मजदूरों को घनी आबादी के बीच कोरोंटाइन करने से रायता फैलना तय है

रोहित शर्मा का कहना है कि जिला प्रशासन छत्तीसगढ़ में अब तक कोरोंटाइन सेंटर में हुई अव्यवस्था से कोई सिख नही ले पाया हैं।  प्रशासन सम्भाग की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी से लगे हुए व्यापार विहार से लगे त्रिवेणी भवन शहर के हृदय गोंड़पारा,टिकरापारा, जरहाभाठा सहित नगरीय निकाय क्षेत्र में कोरोंटाइन सेंटर बनाने के पीछे  कौन से वास्तुविद शास्त्र का सहारा ले रहा है इसे जनप्रतिनिधियों सहित जनता को बताना चाहिए।

विप्र महाविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी के छात्र रहे अधिवक्ता रोहित शर्मा बताते है कि जिला प्रशासन क्‍वारंटाइन के अर्थ से भटक रहा है। जबकि इस का सार तो यह है कि यह उन लोगों पर लगाए  जाने वाले उस प्रतिबंध को कहते है.. जिनसे किसी बीमारी के फैलने का खतरा होता है। ऐसे में लोगों को एक जगह पर नजर बन्द करके रखा जाता है।  और इस दौरान उन्‍हें किसी से मिलने-जुलने, बाहर निकलने तक नही दिया जाता है। 

 क्‍वारंटाइन सेंटर घनी आबादी से दूर बनाया जाता है। ताकि हवा और दूषित जल भी आबादी के सम्पर्क में न आये। परन्तु जिला प्रशासन का कोरोना काल मे प्रवासी मजदूरों को क्‍वारंटाइन करने लिए बनाए जाने वाले क्‍वारंटाइन  सेंटर बाढ़ राहत आपदा या भूकंप राहत आपदा केंद्र लग रहा है। क्योकि यह कोविड 19 कोरोना वायरस के रोकथाम के  लिए बनाए जाने वाले क्‍वारंटाइन सेंटर के पैमाने में कही फिट नही बैठता है।

बिलासपुर के कुछ अन्य आम लोगो से हुई चर्चा में लोग बताते है कि  धान कटने बाद जब प्रदेश के गरीब तबके के कुछ मजदूर रोजी रोटी की तलाश में   जम्मूतवी या दिल्ली ओर यात्रा करते है तब जिस ट्रेन कि एक जरनल बोगी जिसमे में 72 लोगो के बैठने की क्षमता होती है। उसमें ढाई गुना लोग सफ़र करते है। जिसमे आधे से अधिक प्रदेश के मजदूर रहते है।  …. जिन्हें मजदूरी करने जाने से  रोकने के लिए श्रम विभाग जिला प्रशासन कुछ नही कर पाता है। स्लीपर में घुसे मजदूरो को आरपीएफ व रेल्वे प्रशासन  निकाल नही पाता है। इन्हें चार दिवारी में 14 दिन शहर में  बांध के रखने की उमीद रखना बेईमानी है। बिलासपुर नगरीय निकाय क्‍वारंटाइन बनाना अव्यवहारिक है।

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