बेटी की युगांतकारी कदम..पिता को मुखाग्नि देकर…सदियोंं की एकतरफा सोच को ललकारा..समाज ने भी की तारीफ

BHASKAR MISHRA
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 तखतपुर–( टेकचंद कारड़ा)– यह सच है कि इंसान परम्पराओं का गुलाम है। यह भी सच है कि भौतिक गुलामी की जंजीर को तोड़ा जा सकता है। लेकिन वैचारिक गुलामी की जंजीर को तोड़ने के लिए असीम ताकत की जरूरत होती है। मतलब सदियों की चली आ रही परम्पराओं से अलग हटकर कुछ करने की ताकत के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना बहुत जरूरी है। यह सच है कि परम्परा टूटने पर समाज को बहुत चोट पहुचती है। लेकिन यह भी देखने मे आया है कि यदि तोड़कर बनायी गयी परम्परा स्वागत योग्य है तो समाज का बुद्धिजीवी धड़ा उसको हाथो हाथ लेने से भी नहीं चूकता है। कुछ ऐसा ही हुआ है तखतपुर में वाजपेयी परिवार के साथ बेटी ने बेटा बनकर पिता को मुखाग्निन दी और समाज ने उसे स्वीकार भी किया है।
                                      भारतीय हिन्दू परम्परा में पुत्र ही अंतिम संस्कार में मुखाग्नि देने का अधिकारी होता है। पुत्र ही पिता से जुड़ी कमबोश सभी धार्मिक रीतियों का निर्वहन भी करता है। लेकिन इस मिथक को तखतपुर की बेटी ने ना केवल तोड़ा है..बल्कि समाज ने भी मुहर टूटने पर आक्रोश जाहिर नहीं करते हुए स्वागत किया है। ऐसा कर समाज ने मौन समर्थन कर जाहिर कर दिया है कि पुत्री की हैसीयत किसी भी सूरत में बेटे से अधिक नहीं तो कम हरगिज नहीं है।
             एक दिन पहले नगर के प्रतिष्ठित लोगों में शामिल वाजपेयी परिवार के 54 वर्षीय संजय वाजपेयी का आकस्मिक निधन हो गया। वाजपेयी परिवार पर संजय की मौत किसी वज्रपात की तरह है। दुख की घड़ी में विचार होने लगा कि आखिर संजय वाजपेयी के पार्थिव शरीर को मुखाग्नि कौन देगा? क्योंकि संजय बाजपेई की संतान के नाम पर एक 23 साल की बेटी नेहा ही है।
                              समाज में मुखाग्नि को लेकर अभी विचार विमर्श हो ही रहा था कि स्वर्गीय संंजय की बेटी नेहा ने एलान किया कि अपने पितो को मुखाग्नि देगी। एक बेटे की तरह ही पिता के अंतिम संस्कार के सारे रिवाजों को अंजाम देगी। इतना सुनते ही नेहा कि मांं ने बेटी का दृढ़ता के साथ समर्थन किया। इसके पहले गांव के लोग कुछ बोलते वाजपेयी परिवार के रिश्तेदारों ने भी नेहा की भावनाओं का सम्मान किया। परिवार के सदस्य और रिश्तेदारों ने बताया कि स्वर्गीय संजय वाजपेयी पुत्री नेहा को बेटे की तरह पाला। यदि नेहा मुखाग्नि देगी तो निश्चित रूप से संजय की आत्मा को शांति मिलेगी।
                 परिवार और समाज से फैसला होने के बाद नेहा अपने पिता की अंतिम यात्रा में शामिल हुई। श्मशान घाट पहुचकर पंडित के मार्गदर्सन मेंं सभी संस्कारों को बखूबी से निभाया। रीति रस्मो का निर्वहन करते हुए नेहा ने पिता को मुखाग्नि देकर अंतिम विदाई दी। नेहा बाजपेई के साहसिक और ऐतिहासिक कदम की हर किसी ने ना सिर्फ सराहना की….बल्कि एक नए युग की तरफ बढ़ते मजबूत कदम बताया।
             इस दौरान लोगों ने बताया कि लोगो को भ्रम से बाहर आना होगा कि बेटा और बेटी मेंं फर्क होता है। जो लोग ऐसा महसूस करते हैं उन्हे नेहा की युग परिवर्तनकारी कदम को देखने के बाद खुद में बदलाव करना होगा। क्योंकि आज दुनिया समझ चुकी है कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहींं है।
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