बिलासपुर।नगर पालिका तिफरा यदुनंदन नगर में चल रही परस पावनी सर्व कलमय हारिणी श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन भगवान् शुकदेव के रूप में चित्रकूट पीठाधीश्वर राजगुरु तपोनिष्ठ परम पूज्य स्वामी बद्री प्रपन्नाचार्य महाराज ने,परीक्षित के रूप में शुक्ला परिवार को दूसरे स्कंध के क्रम में गंगा जी के किनारे भागवत की कथा सुनाते हुए कहा की हे राजन ! आपने जो प्रश्न किया है वह बहुत ही उत्तम है तथा संसार के हित का है।जीवन के अंत में भगवान का स्मरण करना चाहिए, “अंते नारायण स्मृतिः” यही भागवत का सार है। स्वामी जी ने सृष्टि के विस्तार की व्यापक कथा सुनाई व कहा की संसार में निर्लिप्त भाव से रहिये।
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कथा के प्रसंग में स्वामी जी ने बताया कि सर्वप्रथम नारायण में ब्रम्हा जी को चतुश्लोकी भागवत कथा सुनाइए उसी कथा को व्यास जी ने 18000 श्लोकों में संसार के कल्याण के लिए विस्तार से सुनाया भागवत के 10 लक्षण बताएं। तृतीय स्कंध में स्वामी जी ने विदुर जी के प्रसंग को बताया व कहा कि जिस ने संसार को छोड़ दिया उसी को कथा मिलती है यदि आप सब कुछ छोड़ दोगे तो सब कुछ मिल जाएगा भगवान की भक्ति से अंतःकरण विशुद्ध हो जाता है।जब तक जीवन में शांति नहीं है तब तक सुख नहीं है।शांति के लिए भाव तथा भाव के लिए भक्ति चाहिए।
जीवन में कृष्ण मिल जाए तो जीवन धन्य हो जाए, सुख देने वाला आश्रम है राग तथा दुख देने वाला आश्रम है द्वेष। कथा के प्रसंग में पूज्य गुरु जी ने बताया कि सुख को पाने के लिए तथा दुख को दूर करने का उपाय करने के लिए नहीं बल्कि भगवान को पाने का उपाय जीवन में करो।ब्रह्मा जी ने मानसी सृष्टि का विस्तार किया,मनु और सतरूपा सबसे पहले पुरुष और स्त्री के रूप में संसार में प्रकट हुए।स्वामी जी ने हिरण्याक्ष उद्धार की पावन कथा सुनाई। कथा के प्रसंग में हिरणाकश्यप उद्धार भगवान नृसिंह अवतार तथा अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद के पावन चरित्र की सुंदर सरस तथा पवन कथा को सुनाते हुए भक्तों को भागवत ज्ञान गंगा में गोते लगाते रहे। कथा के प्रकट में कपिल भगवान की सुंदर कथा सुनाई जिसमें भगवान कपिलमुनि ने संसार से निवृत्ति का मार्ग मां को सुनाया।स्वामी जी ने कहा भगवान को प्राप्त करने के तीन मार्ग प्रेम मार्ग,ज्ञान मार्ग तथा भक्ति मार्ग है। पहली भगवान कपिल जी ने अपनी मां को सुनाया उससे संसार के प्रति जो मोह था जो आसक्ति थी वह समाप्त हो गई।