भय बिन होत

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संजय दीक्षित। फील्ड में रिजल्ट देने के नाम से पहचाने जाने वाले एक प्रिंसिपल सिकरेट्री काम में ढिलाई होेने पर छोटे अफसरों पर ही नहीं बरसते। बल्कि, मौका मिले तो आईएएस को भी नहीं छोड़ते। हाल ही की बात है। मीटिंग के दौरान बैड पारफारमेंस पर पीएस मातहत आईएएस पर बुरी तरह उखड़ गए। उन्होंने यहां तक पूछ डाला, मिस्टर तुम आईएएस कैसे बन गए? तुम घोखे में सलेक्ट हो गए होगे। अब तुम अगर यूपीएससी में बैठे, तो पक्का फेल हो जाओगे। मीटिंग में पूरे स्टेट के अफसर बैठे हुए थे। पीएस के तेवर देखकर सभाक़क्ष में सन्नाटा पसर गया। आईएएस भी सकपका गए। बाद में, पीएस को लगा कि कुछ ज्यादा हो गया है। आईएएस की पत्नी भी आईएएस हंै। सो, पीएस ने इस तरह से बात संभाली, वैसे यूपीएससी में अब मैं भी बैठूं तो मैं भी फेल हो जाउंगा। बहरहाल, पीएस की झाड़ का बड़ा असर हुआ है। डायरेक्टर लेवल के आईएएस अब दौड़ने लगे हैं। मीटिंग दो रोज बाद उन्होंने शौचालय निर्माण में लापरवाही बरतने वाले 22 मैदानी अफसरों की इंक्रीमेंट रोक दी। ठीक ही कहते हैं, भय बिना…….।

सम्मान का ध्यान

आईएफएस आलोक कटियार ने हैंडलूम बोर्ड में एमडी बनने से लगभग इंकार ही कर दिया है। आर्डर निकलने के महीना भर बाद भी उन्होंने अब तक ज्वाईन नहीं किया है। हैंडलूम बोर्ड की नई पोस्टिंग से वे नाखुश बताए जाते हैं। हालांकि, हैंडलूम बोर्ड भी एकदम ड्राई नहीं है। नारायण सिंह, सीके खेतान, रेणू पिल्ले जैसे कई आईएएस इसके एमडी रह चुके हैं। मगर कटियार का अपना कद है। सत्ताधारी पार्टी के एक वरिष्ठ सांसद से ताल्लुकात रखते हैं। ऐसे में, सरकार को भी उनके कद और सम्मान का ध्यान रखना चाहिए न।

लकी बैच

छत्तीसगढ़ के आईएएस कैडर में 2005 बैच पहला बैच होगा, जिसके तीन अफसर डायरेक्टर पब्लिक रिलेशंस बनें। पहले, ओपी चैधरी, फिर रजत कुमार। और अब राजेश टोप्पो। कलेक्टरी में भी यह बैच आगे है। रायगढ़, जांजगीर, राजनांदगांव, दुर्ग, कोरिया के कलेक्टर 2005 बैच के हैं। मई तक तो टोप्पो भी बलौदा बाजार के कलेक्टर रहे। किसी एक जिले में सर्वाधिक समय तक कलेक्टर रहने का रिकार्ड उनके नाम ही दर्ज है। सवा तीन साल से अधिक। बलौदा बाजार जिला बनने पर ओएसडी बनकर गए थे। फिर, वहीं कलेक्टर बनें।

हींग लगे ना….

देश के सभी राज्यों के सरकारी प्रिटिंग प्रेसों में सिर्फ सरकार के काम होते हैं। सरकारी डायरी, कलेंडर, गजट आदि का प्रकाशन। छत्तीसगढ़ में भी साल भर पहले तक ऐसा ही होता था। मगर अब दीगर काम भी होने लगे हैं। माध्यमिक शिक्षा मंडल से 90 लाख उत्तर पुस्तिका छापने का काम मिल गया है। कई दूसरे विभागों के काम भी मिल रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा हाइट यह है कि प्रायवेट प्रेसों से काम कराए जा रहे हैं। इसे इस तरह समझ सकते हैं, सरकारी प्रेस के नाम पर सरकार से काम लिए जा रहे हैं और प्रायवेट में उसे कराए जा रहे हैं। याने हींग लगे ना फिटकिरी वाला मामला है।

जोगी पर नजर

कांग्रेस का संगठन चुनाव टलने के बाद पार्टी द्वारा अब अजीत जोगी की हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। जाहिर है, संगठन चुनाव से जोगी कैंप को बड़ी उम्मीदें थी। वह खतम हो गई है। अब, एक साल बाद क्या होगा, कौन जानता है। भूपेश बघेल इसी तरह बैटिंग करते रहे, तो जोगी के लिए अपने लोगों को बचाना मुश्किल होगा। ऐसे में, जोगीजी शांत थोड़े ही बैठेंगे। कुछ-न-कुछ करेंगे ही। इसलिए, वे अब किससे मिल रहे हैं, इसे वाच किया जा रहा है। तभी तो जोगी की दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात पर सवाल उठाने पर संगठन के नेताओं ने देर लगाई। नेताओं ने कैमरे पर दावा कर दिया कि जोगी की सोनिया से कोई मुलाकात नहीं हुई है।

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