“भाषण नहीं राशन दो,मुझे मेरे परिवार,मेरी झोपडी,मेरी मिटटी से मिला दो।मुझे रोटी दे दो”

Shri Mi
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रायगढ़(गणेश कछवाहा)।प्रधान मंत्री के संबोधन को पूरा देश बड़ी गंभीरता से रेडियो, टीवी में सुन -देख रहा था।और सोच रहा था कि एक फकीर प्रधानमंत्री लाखो करोड़ों गरीब मजदूरों के हितों के बारे में बहुत कुछ घोषणा करेंगे।जिन गरीब मजदूरों के दृश्य को देख कर जहां पूरी दुनिया ,देश व इंसानियत मर्माहत,दुखी व विचलित हो रही थी,उन्हें अब बहुत कुछ राहत मिलेगी।कुछ लोग तो डरे हुए भी थे कि ताली ,थाली,घंटी,दिया बाती और फूल बरसाने की तरह अब और कोई नया इवेंट या कार्यक्रम तो नहीं बता देंगे?शंका,संशय और संभावनाओं से भरा हुआ था।सीजीवालडॉटकॉम के व्हाट्सएप NEWS ग्रुप से जुडने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये

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परन्तु माननीय प्रधान मंत्री जी का संबोधन ऐसा लग रहा था , मानो वे किसी उत्सवपर्व या विश्व व्यापी सत्संग सभा को कोई महात्मा संबोधित कर रहा है संयम,शालीनता,संकल्प,त्याग,तपस्या,धीरज,वसुधैव कुटुंबकम्, गौरव,गरिमा,अनुशासन,महानता,और आत्मनिर्भरता के दिव्य ज्ञान जैसे महान शब्दों से परिपूर्ण लगभग 30 मिनट के भाषण में 20 लाख करोड़ के पैकेज और आत्मनिर्भर भारत की घोषणा कर गए।भाषण समाप्त हुआ।

देश स्तब्ध हो गया।चैनल बड़े बड़े बहसो में व्यस्त हो गए।पर गरीब मजदूरों की भूख ,पीड़ा,तड़फ,घायल-जख्मी -छाले पड़े पांव,सड़क पर भूखे प्यासे चलती गर्भवती भारत माताएं , सड़क पर प्रसव की पीड़ा,रेल की पटरी में बिखरी रोटियां,सड़कों परसमाप्त होते सपने,खत्म होती जिंदगियां,घर की देहरी के कुछ पहले भूख से होती मौतें ,सड़कों पर बदहवास भटकते ,तड़फते जीवित मनुष्यो पर एक शब्द भी नहीं। सड़कों पर वही दृश्य निरंतर जारी है। वहीं दर्दनाक स्वर आज भी गूंज रहे हैं “भाषण नहीं राशन दो”। मुझे मेरे परिवार, मेरी झोपडी,मेरी मिटटी से मिला दो ।मुझे रोटी दे दो।

इस पैकेज से किसको लाभ होगा? —

20 लाख करोड़ रुपए राहत पैकेज के बाद भी गरीब, मजदूरों बच्चो, बूढों,गर्भवती महिलाओं का भूखे,प्यासे, कराहते,तड़फते अपने घर जाने के लिए पैदल सड़कों पर निकल पड़ना सरकार की घोषणाओं और योजनाओं की यथार्थता व सार्थकता की प्रमाणिकता को बड़ी सच्चाई के साथ आइना दिखा देता है। सवाल यह उठता है कि आखिर इस पैकेज से किसको राहत मिल रही है? क्या कहीं यह भी कोई नया जुमला तो नहीं?क्या वास्तव में यह पैकेज गरीब मजदूरों को राहत पहुंचाएगा या हमेशा की तरह गरीबों, मजदूरों के नाम पर अमीर और धन्ना सेठों को लाभ पहुंचाने की एक और राष्ट्रभक्त कोशिश है।

यदि यह आत्मनिर्भरता है तो गुलामी किसे कहते हैं? —

अर्थशास्त्रियों व समाज शास्त्रियों यहां तक कि अनुभवी बूढों बुजुर्गों का भी यह मानना है कि कर्ज, आत्मनिर्भर नहीं गुलाम बनाता है।सहायता, कमजोर , पीड़ित व शोषित को दी जाती है न कि समृद्ध व शोषक को।नियम,कानून, शर्तों एवं प्रावधानों को उनके लिए उदार बनाया जाता है जो उनसे पीड़ित व परेशान हैं। यहां तो उल्टे श्रमिक को मिले कानूनी अधिकार को ही ख़तम कर मालिकों के हितों में कानून को उदार बनाया जा रहा है।यह कौन सा समाजिक विज्ञान और अर्थ शास्त्र है?किस विश्वविद्यालय में ऐसा सिखाया जाता है? यह कौन सा समाजशास्त्र है? तमाम नियम कानून प्रावधान पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के हित में बदलकर,यह बताया जा रहा है कि इससे गरीबों और मजदूरों का भला होगा। 08 घंटे काम का अधिकार लम्बे संघर्षों,त्याग,कुर्बानी,शहादत और बलिदान के बाद अर्जित किया गया था।यह कैसा आत्मनिर्भर भारत बनेगा जहां 08 घंटे काम के अधिकार को समाप्त कर भूखे प्यासे गरीब,असहाय मजदूरों से 12 घंटे काम कराया जाएगा और मजदूरी मालिक अपने मन मर्जी से देगा।कोई उनका ट्रेड यूनियन अधिकार नहीं होगा? मेहनत कश चिंतित है और जानना चाहता है कि यदि यह आत्मनिर्भरता है तो गुलामी किसे कहते हैं?

समाजिक एवं आर्थिक ढांचा तहस नहस हो जाएगा। देश की अर्थवयवस्था को बहुत नुकसान पहुंचेगा। —-

समाज शास्त्रियों ,कर्मचारी संगठनों,ट्रेड यूनियनों एवं जन संगठनों ने सरकार की इन नीतियों को पूंजीपति परस्त अमानवीय एवं संविधान की मूल भावनाओं के विपरित बतलाते हुए कड़ा विरोध किया है।उनका यह मानना है कि सरकार की इस गरीब मजदूर किसान विरोधी नीतियों से देश में गहरी असमानता पैदा होगी। अमीर और गरीब के बीच की खाई और बढ़ेगी । समाजिक एवं आर्थिक ढांचा तहस नहस हो जाएगा। देश की अर्थवयवस्था को बहुत नुकसान पहुंचेगा।

क्या यह अपने आप को धोखा देने सरीखा नहीं है?—

20 लाख करोड़ का राहत पैकेज और आत्मनिर्भर भारत की घोषणा का पूर्ण विवरण माननीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जी एक बार के प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पूरा नहीं बता पाई या शायद जितना कहने को कहा गया था उतना बताया जब सवाल खड़े हुए तो दूसरे दिन 6-6 सहयोगियों सुरक्षा कवच के साथ दोबारा प्रेस कॉन्फ्रेन्स लेना पड़ा। इससे महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता पर भी शायद गहरे सवाल खड़े हुए हैं ? आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा को शायद सरकार खुद सही सही समझने की कोशिश कर रही है। जैसे नोटबंदी और जी एस टी को आज तक सरकार समझने की कोशिश ही कर रही है।क्या यह अपनेआप को धोखा देने सरीखा नहीं है?

By Shri Mi
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पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर
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