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बिलासपुर । ‘ दो सदी ईसा पूर्व की नगरी मल्हार में कभी जैन,शाक्त,बौद्ध, वैष्णव,शैव धर्म पनपने के बाद वे पुरावशेष छोड़ गए,खुदाई या खेतों में सिक्के.ताम्रपत्र और मूर्तियाँ इसके अतीत के वैभव को बताती हैं । केन्द्रीय पुरातत्व विभाग का संग्रहालय भी है । पर बिखरी प्रतिमाओं की दुर्दशा हो रही है’। {मल्हार छ्तीसगढ़ के बिलासपुर से 33 किमी दूर है..!}
1980 के आसपास पत्रकार महेंद्र दूबेजी ने यहाँ किसी के घर की दीवार में कछुए को अकाल से बचाने हंस की आकाशमार्ग से ले जाते हुए [ एक शिला में खुदी पञ्चतन्त्र की कथा से जुड़ी प्रतिमा की फोटो] अपने अकाल सम्बधित आलेख के साथ लगाई थी,।लेख नवभारत में प्रकाशित हुआ,पर आज वहां खोजे ये प्रतिमा नहीं मिलती..!
, मैंने उसके पहले देखा मल्हार में शिवरात्रि के मेले में आये रात ग्रामीण भोजन के लिए चूल्हा खंडित प्रतिमाओ से अन्जाने में बनाते ..! इस बार जब मल्हार गया तो नगर के भव्य प्रवेशद्वार के करीब दो प्रतिमा को जमीन में दबी हुई पाया,,,! चलो इस तरह वो चोरों से बचीं रही हैं ,,नहीं तो इस इलाके में मूर्ति चोरी गाहे – बगाहे होती रहीं हैं ..!!