महाराष्ट्रीयन परिवारों में 3 दिन के लिए विराजी श्री महालक्ष्मी

Chief Editor
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बिलासपुर।आज से महाराष्ट्रीयन घरो में तीन दिनों के लिए विराजी श्री महा लक्ष्मी । भाद्रपद माह की षष्टि सप्तमी और अष्ठमी को महाराष्ट्रीयन परिवारो में श्री माह लक्ष्मी पूजन का कार्यक्रम होता है। विवाहित महिलाये अपने सोभाग्य की सफलता और बच्चो की उन्नत्ति के लिए इस पूजन का पालन करती है । देवी पूजन के प्रथम दिवस ज्येष्ठा और कनिष्ठा देवियो का आगमन निश्चित मुहूर्त पे घरो में होता है । उनके साथ उनके पुत्र और पुत्री का भी आगमन होता है ।कुल की परंपरा के अनुसार देवियो की स्थापना होती है उनकी स्थापना के समय प्रवेश दरवाजे से स्थापना स्थल तक देवी जी क पद चिन्ह रंगोली की सजावट की जाती है । उनकी स्थापना के स्थान पर गेहू और चावल की ओळी रखी जाती है ।

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दोनों देवियो ज्येष्ठा और कनिष्ठा को 16 चक्र धागे से सुतया जाता है । घर की महिलाये प्रति वर्ष नविन वस्त्र जो वो स्वयं धारण करती है उन्हें पहनाया जाता है । फिर देवियो और बच्चों का सोलह श्रृंगार किया जाता है । इनकी पूजा में 16 का अत्यंत महत्त्व होता है । 16 श्रृंगार 16 प्रकार के आभूषण 16 प्रकार के फूलो से पूजन 16 प्रकार के पत्तियो से 16 – 16 की जुडियो का बण्डल बनाकर पूजा में चढ़ाये जाते है । 16 प्रकार के फल 16 प्रकार की मिठाईया 16 प्रकार के नमकीन 16 प्रकार की चटनियां 16 प्रकार की सब्जिया बनाकर उनका पूजन और भोग लगाया जाता है।

भोग का कार्यक्रम पूजन के दूसरे दिन अर्थात सप्तमी को किया जाता है । इस दिन माह पूजा आयोजित होती है घर परिवार के सभी रीस्तेदार इस दिन घर पर इकठे होते है ।देवी पूजन में बनने वाले 56 भोग भोजन को को परंपरागत तरीके के तौर पर कमल के पत्ते पुरइन पान में भोजन परोसा जाता है । कमल के पत्ते आजकल नहीं मिलने के कारण भोजन थालियों में परसा जाता है ।पूजन के तीसरे दिन सुहागन महिलाओ के लिये हल्दी कुमकुम का कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। अंतिम दिवस अष्टमी को पुत्र कामना की पूजा की जाती है ।

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