महिला प्राध्यापक का आयुक्त को पत्र…जातिगत भेदभाव से खो रही मानसिक सन्तुलन..कैंसर पीड़ित हूं..कई दिनों से नहीं खुला विभाग

BHASKAR MISHRA
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बिलासपुर— राघवेन्द्र राव विज्ञान महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापिका ने साथी महिला प्राध्यापक पर जातिगत भेदभाव करने का आरोप लगाया है। सहायक प्राध्यापिका ने कलेक्टर और उच्च शिक्षा विभाग को मामले में लिखित शिकायत की है। सहायक प्राध्यापिका ने बताया है कि साथी प्राध्यापिका हिन्दी विभाग में ताला जड़ दी है। जबकि वह हिन्दी की प्रोफेसर हैं। बावजूद इसके मुझे विभाग में घुसने नहीं दिया जाता। यह जानते हुए भी कैन्सर की मरीज हूं।

             
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                                     ई.राघवेन्द्र राव विज्ञान महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापिका ने कलेक्टर और उच्च शिक्षा विभाग आयुक्त को पत्र लिखा है। हिन्दी विभाग में कार्यरत सहायक प्राध्यापिका डॉ.सुनन्दा मरावी ने साथी सहायक प्राध्यापिका डॉ.उषा तिवारी पर जातिगत भेदभाव करने का आरोप लगाया है। डॉ.मरावी ने अपने पत्र में लिखा है कि वह कैन्सर मरीज है। बावजूद इसके डॉ.उषा तिवारी परेशान करने से बाज नहीं आ रही हैं।

              अपने शिकायत पत्र में सुनन्दा मरावी ने आयुक्त और कलेक्टर को बिन्दुवार जानकारी दी है। लिखा है कि वह हिन्दी विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। 9 नवम्बर 2019 से महाविद्यालय में हिन्दी विभाग का ताला नहीं खोला जा रहा है। चाभी हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.उषा तिवारी के पास में रहता है। ताला बन्द होने से ना केवल मेरा विभागीय काम काज प्रभावित होता है। बल्कि वाशरूम के लिए परेशान होना पड़ता है।

                सुनन्दा मरावी के अनुसार वह कैन्सर की मरीज हैं। स्वास्थगत परेशानी के चलते असुविधाओं का सामना करना पड़ता है। डॉक्टर ने सीढियां चढ़ने से मना किया है। सन्तुलन बिगड़ने से कई बार महाविद्यालय परिसर में गिर चुकी हैं। सीढियों से भी गिर चुकी हूं। इस बात की जानकारी डॉ.उषा तिवारी को भी है। बावजूद इसके वह मुझसे जातिगत भेदभाव रखती हैं।

          सुनन्दा अधिकारियों को बताया है कि उषा तिवारी लायब्रेरी की प्रभारी हैं। चूंकि अनुसूचित जनजाति से हूं। इसलिए हिन्दी विभाग में ताला जड़कर दुरी बनाते हुए हमेशा ग्रन्थालय में रहती है। विभाग में ताला बन्द होने से कई प्रकार की परेशानी होती है। चूंकि मैं भी उनकी तरह द्वितीय श्रेणी की राजपत्रित अधिकारी हूं। लेकिन वह जातिगत भेदभाव रखती हैं। नीचा दिखाने के लिए दुर्र्व्यवहार करने का कोई मौका नहीं छोड़ती। जातिगत मामलो के साथ अन्य गैर जरूरी बातों को लेकर मेरे खिलाफ दुष्प्रचार भी करती हैं। जिसके चलते हमेशा लज्जित होना पड़ता है।

                अपने पत्र में सुनन्दा ने लिखा है कि कैन्सर पेसेन्ट होने के कारण मैं पहले से ही जिन्दगी से निराश हूं। ऐसी परिस्थितियों में मुझे जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है। रोज हर घंटा अपमान और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। जिसके चलते उसका मानसिक सन्तुलन दिनों दिन बिगड़ता जा रहा है। अनुरोध है कि न्याय मिलेगा।

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