अक्षर-अक्षर हमें सिखाते, शब्द- शब्द का अर्थ हमें बताते, कभी प्यार से कभी डॉट से जीवन जीने की कला सिखाते जिसे आम भाषा में गुरु का नाम दिया जाता है और उसे गुरु-शिष्य परम्परा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है । यह कहना है महासमुंद ज़िला सरायपाली ब्लॉक के अंतर्गत प्राथमिक शाला बोड़ेसरा में शिक्षक के रूप में सेवा दे रही बनमोती चिन्तामणि भोई का कहना है कि गुरु का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है । मेरा सौभाग्य है कि मैं एक शिक्षिका हूं मुझे परिवार की जिम्मेदारियों के साथ शिक्षिका के कर्तब्य एवं दायित्व के निष्ठापूर्वक निर्वहन से सुखद आनंद की अनुभूति होती है जिसके लिए शब्द नहीं है ।
बनमोती भोई का कहना हैं कि आपदा को अवसर में महिला शिक्षको ने बखूबी बदला है। एंड्राइड मोबाइल और लैपटॉप का उपयोग महिला शिक्षको ने किया.छात्रो के हित में स्वप्रेरित हो कर ऑनलाइन क्लास , पढ़ाई तुहार द्वार ,मोहल्ला क्लास लाउडस्पीकर क्लास, ब्लटू ,मिस्सकॉल गुरुजी आदि माध्यम से अपने कर्तव्यों का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं ।
करोना काल में भी हमारे राज्य के शिक्षक साथी करोना वारियर के रूप में ड्यूटी निर्वहन के साथ इसमे महिलाओं की भूमिका अहम है ।सरायपाली की शिक्षिका बनमोती चिन्तामणि भोई का कहना है कि प्रदेश की महिला शिक्षको के कर्तव्यपथ में कठिनाईयां हैं,संघर्ष हैं , वैश्विक महामारी कोरोना के विषम परिस्थिति में भी छात्र हित में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने का प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से अपेक्षायों पर महिला शिक्षिका जुटी हैं और उनसे आशीर्वाद की उम्मीद है।